- विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत
नई दिल्ली। अभी हाल में ही भारत सरकार की नीति के विपरीत विपक्षी पार्टी कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसराइल के समर्थन की नीति को दी हिंदू नामक समाचार पत्र में संपादकीय के रूप में लिखकर आतंकवाद को अपना समर्थन देने का इरादा बिल्कुल स्पष्ट कर दिया। यहां पर यह ध्यान देने वाली बात है इटली इस समय इजरायल के साथ खड़ा हुआ है लेकिन इटली की बेटी इजरायल के विरोध में भारत में वक्तव्य देकर अपने मुस्लिम वोट साध रही है। इससे सिद्ध होता है अपने मतलब के लिए किसी भी स्तर तक गिरा जा सकता है। अपने आधे अधूरे लेख में उन्होंने यूएनओ में प्रधानमंत्री की नीति के अंतर्गत इजरायल युद्ध में मतदान से बहिष्कार करने को लेकर अपनी तुष्टिकरण नीति के अंतर्गत मुस्लिम वोटों को बटोरने के लिए इजरायल के प्रत्युत्तर हमले को आतंकवादी बता दिया और हमास द्वारा इजराइल में किए गए बर्बर और इस सदी के क्रूरतम अत्याचारों के ऊपर अपने मुंह पर टेप लगा लिया।
कुछ इसी भांति इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपने ट्वीट में खुफिया एजेंसी के अधिकारियों को फटकारते हुए बोला था की 7 अक्टूबर के हमले की कोई जानकारी उनको नहीं थी यह अधिकारियों का बहुत बड़ा असफलता का उदाहरण है बाद में जब उनकी आलोचना आरंभ हुई तब उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट भी कर दिया लेकिन तब तक दुनिया के अनेक समाचार पत्र इसको प्रकाशित कर चुके थे।
अब बिल्कुल भारत की तरह विपक्ष इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के ऊपर हमले करने लगा है। हालांकि जासूसी संस्थाओं के प्रमुख ने अपनी असफलता को स्वीकार करते हुए किसी भी प्रकार की टिप्पणी से इनकार किया और सुना की प्रवक्ता ने कहा उनका सारा ध्यान अभी युद्ध की ओर है इसलिए इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
अपनी निराशा को व्यक्त करते हुए नेतनन्याहू ने कहा युद्ध के बाद मुझे विपक्षियों को और इजराइल सहित विश्व की तमाम शक्तियों को जवाब देना होगा कि मैं क्यों विफल हो गया जबकि इसकी जिम्मेदारी तो जासूसी एजेंसियों की है।
विपक्षी नेता एविगडोर लिबरमैन ने तो बिल्कुल एंटोनियो माईनो यानि सोनिया गांधी की तरह अपनी बात करते हुए यह कहा कि मैंने रात भर नेतन्याहू के चेहरे की स्टडी की है तो मैंने यह पाया कि वह न तो इजरायल की जनता की जान की चिंता करते हैं न बंधकों की जान की परवाह है और न ही उनको सुरक्षा की किसी प्रकार की चिंता है। वे बस राजनीति करना जानते हैं।
ऐसा लगता है भारत के साथ इजराइल ने बहुत गंभीरता के साथ मित्रता की इस कारण भारत के दुर्गुण और भारत के नेताओं की बदबू इजराइल के नेताओं को भी भाने लगी है। यह बहुत आश्चर्यजनक है क्योंकि भारत में तो विपक्ष सरकार को अस्थाई करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है यहां तक कुछ वर्ष पूर्व तो कांग्रेस ने चीन के साथ गुप्त समझौता भी किया था और वर्तमान में सत्ता से बाहर रहते हुए भी चीनी राजदूत से मुलाकात की थी। इस प्रकार के आरोप प्रत्यारोप को संसद में लगते ही रहते हैं लेकिन अब इस तरह का वक्तव्य हैरान करने वाला है और देखना यह है कि इजरायल भारत के विपक्ष की कितनी अधिक गंदगी अपने नेताओं में पैदा कर सकता है यह तो समय ही बताएगा?