जब लोअर कोर्ट में ही ओशो का मुकदमा हार गए राम जेठमलानी, क्या था वो सनसनीखेज केस?

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(www.Arya Tv .Com) आचार्य रजनीश या ओशो (Rajneesh Osho) ने जब पुणे के कोरेगांव में अपना आश्रम बनाया तो एक वर्ग उनके खिलाफ हो गया. अश्लीलता फैलाने से लेकर तमाम तरह के आरोप लगने लगे, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की. एक मौका ऐसा आया जब उनके उपर जानलेवा हमला हो गया. उस वक्त वो पुणे के आश्रम में प्रवचन दे रहे थे. अचानक एक शख़्स ने उनपर छूरा चला दिया. ओशो बाल-बाल बच गए, लेकिन पूरी घटना रिकॉर्ड हो गई.

पहले पुलिस को बताया फिर कर दिया अटैक
शशिकांत ‘सदैव’ अपनी किताब ‘ओशो की जीवन यात्रा’ (Osho Ki Jeevan Yatra) में लिखते हैं कि हजारों लोग इस घटना के गवाह थे. यहां तक कि टेप रिकॉर्डर में भी हमलावर का चिल्लाना, हमला करना, चाकू गिरने की आवाज आदि सब रिकॉर्ड हो गई थी. वह सनकी शख़्स पहले ही पुलिस को सूचित करके आया था कि ओशो (Osho) को खत्म करने जा रहा है. हमले के बाद ओशो के शिष्यों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.

लोअर कोर्ट में हार गए राम जेठमलानी
पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया और मुकदमा शुरू हुआ. शशिकांत लिखते हैं कि ओशो (Osho) ने खुद अपनी तरफ से रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी, लेकिन मुकदमा शुरू हुआ तो उन्हें पैरवी करनी पड़ी. ओशो की तरफदारी में देश के सबसे नामी-गिरामी वकील, राम जेठमलानी (Ram Rethmalani) नियुक्त थे. उन्हें निचली अदालत में मुकदमा लड़ा, लेकिन हार गए.

ओशो पर हमला करने वाला लोअर कोर्ट से निर्दोष साबित हो गया. बाद में ओशो ने कहा कि मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने की जरूरत नहीं. बस, यहीं फाइलें बंद हो जाने दो.

क्यों जलवा दी थीं अपनी किताबें?
ओशो को विद्रोही स्वभाव वाला संत कहा जाता है. एक मौके पर तो उन्होंने अपने ही जीवन पर आधारित किताबें जलवा दी थीं.ओशो के जीवन पर आधारित किताब ”रजनिशज्म” है और ”रजनीश धर्म” की लाखों प्रतियां बिक चुकी थीं और ये दोनों किताबें उनके शिष्यों में खूब मशहूर थीं, लेकिन ओशो ने सार्वजनिक तौर पर इन दोनों किताबों की होली जलवा दी. कहा कि मैं जीवन भर इस ‘वाद’, ‘इज्म’ और संगठित धर्म के खिलाफ लड़ा. करीब साढ़े तीन साल मौन रहा. इस बीच शीला (उनकी निजी सचिव) ने ये पुस्तकें मेरे ही नाम पर प्रकाशित कर डालीं. इन किताबों का जितना स्टॉक है, उनमें आग लगाकर उत्सव मनाया जाए.

क्यों नेताओं को बताया अपराधी?
ओशो ने ‘पंडित, पुरोहित और राजनेता: मानव आत्मा के शोषक’ नाम की एक किताब लिखी और कहा कि दुनिया के तमाम नेताओं को जेल में होना चाहिए. ये सारे वैसे ही अपराधी हैं, जिस तरह के अपराधी जेलों में बंद हैं, लेकिन यह लोग पढ़े लिखे होशियार लोग हैं इसलिए जेल जाने से बचते रहते हैं. बल्कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बन जाते हैं. सच्चाई ये है कि जेल में ज्यादातर निर्दोष लोग बंद हैं, क्योंकि वो चतुर नहीं हैं और साबित नहीं कर पाते हैं कि निर्दोष हैं.

कपड़ों के साथ भी किया प्रयोग
शशिकांत ‘सदैव’ अपनी किताब में लिखते हैं कि आचार्य रजनीश बहुत प्रयोगधर्मी आदमी थे. 35 साल के बाद अक्सर टेरीकॉट की लुंगी और शर्ट में रहने लगे. कभी लुंगी और लंबी शर्ट, फिर लुंगी और गाउन, कभी सफेद गाउन, कभी हीरे-मोती वाले रंगीन गाउन और टोपी, फिर आखिर में काले गाउन और टोपी पहनने लगे.