(www.arya-tv.com) मणिपुर में बीते तीन महीने से लगातार हिंसा हो रही है। लोग मारे जा रहे हैं. आगजनी, लूटपाट, बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें इसे काबू करने में फिलहाल विफल हैं। इस मसले से खफा विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सदन में वक्तव्य देने की मांग की। लोकसभा अध्यक्ष से इस पर विस्तार से चर्चा की मांग की है। बात बनती न देख विपक्ष ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है।
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने इसे स्वीकार कर लिया है। वे आने वाले दिनों में इसकी तिथि तय करेंगे।ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय संविधान में जब अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र नहीं है तो भला विपक्ष अक्सर किस नियम के तहत यह प्रस्ताव लेकर आता है? इसकी शर्तें क्या हैं? अब तक किन-किन प्रधानमंत्रियों ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है? किसकी सरकार बची और किसकी चली गई?
संविधान और अविश्वास प्रस्ताव
यह बात सही है कि भारतीय संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र नहीं है लेकिन लोकसभा के नियम 198 (1) और 198 (5) के तहत इसकी व्यवस्था है। नियम 184 में भी इसका उल्लेख मिलता है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे कहते हैं कि इसकी व्यवस्था लोकसभा और विधान सभाओं के नियमों में है। ऐसा ही बाकी जितने भी लोकतांत्रिक संगठन हैं, हर जगह नियम है। यह तभी लाया जाना चाहिए जब विपक्ष को यह लगे कि सरकार अब हर मसले पर फेल हो चली है। सब कुछ बेकाबू हो गया है। देश में अब दूसरी सक्षम सरकार की आवश्यकता है।
इस सूरत में लोकसभा का कोई सदस्य कम से कम 50 लोकसभा सदस्यों के समर्थन के साथ स्पीकर के सामने यह प्रस्ताव ला सकता हैं कई बार स्पीकर इसे अस्वीकार भी करते रहे हैं लेकिन स्वीकार करने की घटनाएं ज्यादा हैं. इस बार भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने विपक्ष के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। अब वे इसी मानसून सत्र में कोई दिन तय करेंगे। फिर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद पक्ष और विपक्ष में मतदान कराया जाएगा।
हालांकि यह तय है कि अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा क्योंकि सत्ता पक्ष के पास पर्याप्त बहुमत है और विपक्ष की कुल संख्या बमुश्किल 150 के आसपास है। इनमें प्रमुख रूप से कांग्रेस, टीएमसी, जदयू, एनसीपी, शिवसेना उद्धव गुट, डीएमके आदि हैं। बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति के लोकसभा सदस्यों को भी जोड़ दिया जाए तब भी अविश्वास प्रस्ताव के पास होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रही है। हालांकि, बीजद और वाईएसआर कांग्रेस आम तौर पर ऐसे मसलों में सत्ता पक्ष के साथ किसी न किसी रूप में खड़े होते आए हैं।
इस बार भी पूरी संभावना है कि या तो ये सदन में मौजूद नहीं रहेंगे या फिर सत्ता के पक्ष में मतदान करेंगे। ऐसे में इस अविश्वास प्रस्ताव की परिणति सबको पता है लेकिन चूंकि यह विपक्ष का हथियार है। अभी-अभी बने विपक्षी गठबंधन INDIA की एकजुटता को प्रदर्शित करने का एक तरीका भर है।
पहले भी आया मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
यह महज संयोग हो सकता है कि साल 2019 चुनाव से ठीक पहले साल 2018 में इसी जुलाई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था और इसमें मतदान के दौरान प्रस्ताव के पक्ष में 126 और विपक्ष में 325 मत पड़े थे। प्रस्ताव धड़ाम हो गया था इस बार भी साल 2024 चुनाव के ठीक पहले जुलाई महीने में ही प्रस्ताव आया है। हालांकि, गिरना इसे भी है। पर, लोकतंत्र में यह अधिकार विपक्ष के पास है, इसलिए वह अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कब चर्चा में रहे थे अविश्वास प्रस्ताव?
यूं तो पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा, राजीव, अटल बिहारी वाजपेई समेत अनेक प्रधानमंत्री अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर चुके हैं। कुछ सरकारें गिरने का भी इतिहास है लेकिन ज्यादातर बची हैं। पडित नेहरू के खिलाफ साल 1963 में अविश्वास प्रस्ताव आया था। इसे आचार्य कृपलानी लेकर आये थे। उस समय अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 62 और विपक्ष में 347 वोट पड़े थे।
नेहरू सरकार बच गई थी।कालांतर में जो सरकारें गिरीं उनमें मोरार जी देसाई, वीपी सिंह, अटल बिहारी बाजपेई एवं चरण सिंह की सरकारें शामिल हैं, इनमें से चरण सिंह ऐसे पीएम थे जिन्होंने मतदान से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।