‘यूपी का वो प्यासा गांव, जहां जल था न जीवन’…आजादी के 76 साल बाद मिला पानी

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(www.arya-tv.com) जल ही जीवन कहलाता है। लेकिन ये पंक्तियां सही भाव में अब यूपी के एक गांव के लोगों के लिए लागू होंगी। क्योंकि इस गांव में आजादी के 76 साल बाद अब नल से पानी पहुंचा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की पहाड़ियों में स्थित लहुरिया दाह गांव की। यहां पहली बार लोगों को पेयजल आपूर्ति नसीब हुई है। गांव वालों की खुशी का ठिकाना नहीं है। एक 6 वर्षीय बच्चे के परिजन बताते हैं कि कैसे उनके बेटे शिवांश ने पहली बार पानी में उछल कूद कर अपनी खुशी का इजहार किया। गांव में लगभग 1200 लोग रहते हैं, जो पानी के लिए झरनों पर निर्भर थे। गर्मियों में सूख जाते थे। जिसके कारण लोगों को परेशान होना पड़ता था। लोगों को टैंकरों से अधिक पैसे देकर पानी मंगवाना पड़ता था।

तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट दिव्या मित्तल ने लोगों के लिए कवायद की। लेकिन जलापूर्ति पाइप बिछाने में कठिनाइयों के चलते काम बंद हो गया। निवासी कौशलेंद्र गुप्ता बताते हैं कि उनको पानी के लिए अलग से बजट बनाना पड़ता था। काम बंद होने के कारण उनको एक दशक पहले जल जीवन मिशन से बाहर कर दिया गया। निवासी जीवनलाल यादव ने बताया कि वे दूध बेचने जाते थे। आते समय उसी ड्रम में पानी लाते थे। लेकिन 25 साल पहले यहां आबादी बढ़ने के साथ ही टैंकरों से पानी आने लगा।

गांव में बढ़ने लगे थे झगड़े के मामले

गांव का सारा बजट इसी पर लग जाता था। गांव में तनाव होने के साथ लड़ाई के मामले में भी बढ़ने लगे थे। लोग एक बार फिर डीएम दिव्या मित्तल से  मिले और 10 करोड़ में पानी के लिए परियोजना को मंजूर करवा लिया। स्थानीय प्रशासन ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भूभौतिकीविदों और दूसरे लोगों की मदद ली। जल जीवन मिशन और यूपी जल निगम ने भी मिलकर प्रयास किए। इसके अलावा नमामि गंगे के अधिकारियों और मुख्य विकास अधिकारी की संयुक्त टीमों ने जलापूर्ति लाइनें बिछाने में खासी भूमिका निभाई। गांव चट्टानी सतह पर है, जिसके लिए विशेष तौर पर प्रस्ताव भेजा गया।आखिर में योजना पर 31 अगस्त 2023 को काम शुरू हुआ। गांव में कुएं को बारिश का पानी संचयन करने के लिए यूज किया जाता है। पशुओं के लिए अलग से तालाब बनाया गया है। चोटी पर पानी पहुंचाने के लिए लिफ्ट पंपों का प्रयोग होता है। यह गांव जिला मुख्यालय से 49 किलोमीटर दूर है। गांव में कोल, यादव, पाल, केशरवानी और धारकर समुदाय के लोग अधिक रहते हैं।