लालू-तेजस्वी के प्रेशर से परेशान नीतीश कुमार फिर से बदलेंगे पाला? 5 प्वाइंट से समझें इन अटकलों में कितना दम

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(www.arya-tv.com) बिहार की सियासत में क्या फिर से कुछ बड़ा होने वाला है? ये चर्चा यूं ही शुरू नहीं हुई। जिस तरह से सीएम नीतीश को विपक्षी एकता गठबंधन INDIA में खास तवज्जो नहीं मिली उसके बाद से सियासी माहौल बदला-बदला दिख रहा।खास तौर पर सीएम नीतीश के व्यवहार में बड़ा अंतर नजर आ रहा।

भले ही वो INDI अलायंस में किसी भी नाराजगी से इनकार करें लेकिन ऐसा कहा जा रहा कि उनका मन खट्टा हो चुका है। इसके कई कारण बताए जा रहे, सबसे बड़ी वजह है कि दिग्गज जेडीयू नेता दबाव की राजनीति बर्दाश्त नहीं करते।कहा जा रहा कि लालू यादव की बस एक ही हसरत है

वो बेटे तेजस्वी को सीएम बनते देखना चाहते हैं। इसे लेकर कथित तौर पर नीतीश के ऊपर एक दबाव भी बनाया जा रहा, ऐसे आरोप बीजेपी की ओर से भी लगाए गए हैं। तो क्या लालू-तेजस्वी की प्रेशर पॉलिटिक्स से भी बिहार सीएम परेशान हैं? क्या सच में नीतीश कुमार की तरफ से कोई बड़ा कदम उठाया जा सकता है?

विपक्षी एकता गठबंधन में नहीं मिली तवज्जो तो बदला नीतीश का अंदाज!
नीतीश कुमार कब क्या करते हैं ये कोई भी नहीं जान सकता। बिहार की सियासत में उन्होंने कई मौकों पर अपने फैसलों से चौंकाया है।

चाहे महागठबंधन छोड़कर एनडीए में जाने का फैसला रहा हो या फिर एनडीए से आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में वापसी का निर्णय। नीतीश कुमार ने हर बार अपने ही अंदाज में राजनीति की। यही नहीं अपने लिए गए फैसलों को सही साबित करने के लिए उन्होंने जरूरी वजहें भी बताई।

हालांकि, अब एक बार फिर नीतीश कुमार बदले-बदले नजर आ रहे। इसकी मुख्य वजह विपक्षी गठबंधन INDIA में खास जिम्मेदारी नहीं मिलना है। उनकी पार्टी चाहती है कि नीतीश कुमार को विपक्ष की ओर से सीएम कैंडिडेट घोषित किया जाए, हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। यहां तक की नीतीश को गठबंधन का संयोजक तक नहीं बनाया गया। इससे नीतीश का मन जरूर खट्टा हुआ है।

नीतीश को नहीं पसंद दबाव की राजनीति

नीतीश कुमार को लेकर कहा जाता है कि वो दबाव की राजनीति बर्दाश्त नहीं करते। उनका सीधा सोचना है कि सरकार उनके मुताबिक चलनी चाहिए। हालांकि, महागठबंधन सरकार में नीतीश कुमार कुछ बंधे-बंधे महसूस कर रहे।

आरजेडी नेताओं की ओर से कई मौके ऐसे आए जब नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी की गई। यहीं नहीं पार्टी सुप्रीमो लालू यादव भी इन नेताओं पर रोक लगाने में असफल नजर आए। वहीं नीतीश कुमार को शासन-प्रशासन में किसी का भी दखल बर्दाश्त नहीं है। इन वजहों से भी बिहार सीएम कुछ खफा नजर आ रहे।

लालू की हसरत तेजस्वी बनें सीएम और नीतीश की टेंशन

इसके अलावा ऐसी खबरें भी आ रहीं कि लालू यादव की बस एक ही हसरत है वो बेटे तेजस्वी को जल्द से जल्द सीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। इसे लेकर आरजेडी की ओर से एक तरह की प्रेशर पॉलिटिक्स भी चल रही। हालांकि, नीतीश कुमार ने खुद ही ये ऐलान किया है कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

इसे लेकर जेडीयू के भीतर सवाल भी उठाए गए। बावजूद इसके नीतीश ने कभी इस पर रिएक्ट नहीं किया। इसके पीछे मुख्य वजह यही थी कि नीतीश कुमार की नजरें 2024 लोकसभा चुनाव पर जमीं हैं। उन्हें लग रहा था कि लालू यादव साथ मिलने से उन्हें विपक्षी गठबंधन में बड़ी जिम्मेदारी जरूर मिलेगी। हालांकि, ऐसा होता दिख नहीं रहा, इससे भी जेडीयू नेता कुछ निराश होंगे।

ललन सिंह के अध्यक्ष पद छोड़ने की खबरें और नीतीश का कमेंट

नीतीश कुमार की टेंशन बढ़ने की एक वजह और भी है। दरअसल, जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह को लेकर खबर है कि वो अपना पद छोड़ना चाहते हैं। अब अंदरखाने वजह चाहे जो भी हो लेकिन ललन सिंह की ओर से अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश की गई है।

हालांकि, नीतीश कुमार उन्हें मनाने में जुटे हैं। वहीं बीजेपी नेता सुशील मोदी के जेडीयू में फूट और अध्यक्ष ललन सिंह के हटाए जाने वाले बयान पर नीतीश ने कहा कि कौन क्या बोलते हैं, हम ध्यान नहीं देने जा रहे।

आजकल कुछ लोग जो मन में आता है, वह बोलते रहते हैं, जिससे उसको फायदा मिले। लेकिन, इससे किसी को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। कुल मिलाकर नीतीश कुमार लगातार ललन सिंह मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाने में लगे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे कि जेडीयू कार्यकारिणी की 29 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली बैठक के बाद नीतीश अपना अगला कदम बढ़ा सकते हैं। इसका मतलब ये है कि खरमास या उसके बाद बिहार में कुछ बड़ा होता है तो कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी।

कहा ये भी जा रहा कि नीतीश कुमार कई मौकों पर प्रेशर पॉलिटिक्स वाला दांव चल चुके हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में वो यही चाहेंगे कि एनडीए की तरह से उन्हें महागठबंधन में भी मजबूत नुमाइंदगी मिले। उनकी कोशिश यही होगी कि वो पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी 17 सीटें मिलें।

उनको पता है कि अगर उनकी पार्टी को पिछली बार से कम सीटें मिलीं तो जेडीयू में टूट तय है। बीजेपी ने पहले से ही जेडीयू कोटे की 17 सीटें खाली रखी हैं। अभी बीजेपी में उम्मीदवार चयन की जो कवायद चल रही है,

उसमें उसकी जीतीं 17 सीटें ही शामिल हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि सीटों के बंटवारे में सहमति न बन पाने की स्थिति में जेडीयू के कई सांसद बीजेपी की ओर भागेंगे। नीतीश कुमार ऐसी स्थिति आने से पहले ही सेफ गेम-प्लान चाहते हैं।