कोरोना का कहर:अमेरिका में वायरस से मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी

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(www.arya-tv.com)अमेरिका में कोरोना वायरस संक्रमण फिर से बढ़ने के बाद कुछ समय तक मौतों की संख्या कम रही। वसंत में जानलेवा दौर के मुकाबले मौतों की गति धीमी थी। नए इलाज से उम्मीद थी कि नुकसान कम होगा। लेकिन, अब स्थिति बदल गई है। औसतन हर दिन एक हजार से अधिक अमेरिकी जान गंवा रहे हैं। आयोवा, मिनेसोटा, न्यू मेक्सिको, टेनेसी और विस्कांसिन राज्यों में बीते सात दिनों में जितनी मौतें हुई हैं, उतनी महामारी के बीच किसी सप्ताह में नहीं हुई थीं। दूसरी ओर राज्यों के पास वैक्सीन लगाने के लिए जरूरी साधनों का अभाव है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वैक्सीन रिसर्च के लिए दवा कंपनियों को तो भरपूर पैसा दिया है। लेकिन, वैक्सीन वितरण से जुड़े इंतजाम के लिए राज्यों को पर्याप्त पैसा नहीं दिया गया है।

जॉन्स हॉपकिंस हेल्थ सिक्यूरिटी सेंटर में महामारी विद जेनिफर नुजो कहती हैं,’ स्थिति खराब हो रही है। आगे और अधिक बदतर हो सकती है’। अमेरिका में कोरोना वायरस से दो लाख 44 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। विशेषज्ञ कहते हैं, आने वाले सप्ताहों में नई मौतों की गति बढ़ सकती है। शुक्रवार को देशभर में एक लाख 81 हजार नए मामले दर्ज किए गए। इतने अधिक मामले पहले कभी नहीं आए थे। वसंत के मौसम में मरने वालों की संख्या हर दिन 2200 पहुंच गई थी। इधर, कुछ अनुमान बताते हैं, अमेरिका जल्द ही उस स्तर तक या उससे आगे जा सकता है।

अमेरिका में वायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद बीमारी के इलाज में सुधार हुआ है। आशा थी कि वैक्सीन आने से पहले मामले बढ़े तब भी मौतों को रोका जा सकेगा। डेक्सामीथासोन स्टीरॉयड से गंभीर लोगों को आराम मिला था। यह थैरेपी राष्ट्रपति ट्रम्प पर भी आजमाई जा चुकी है। डॉक्टरों को अनुभव हो चुका है कि ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने से भी मरीजों को फायदा होता है। विशेषज्ञों के अनुसार मृत्यु दर में लगातार गिरावट आती रही है। वैसे, टेस्ट की संख्या में बढ़ोतरी और युवाओं के अधिक प्रभावित होने से ऐसी स्थिति बनी है। अब अस्पतालों में मरीजों की संख्या बहुत अधिक बढ़ने से समस्या खड़ी हो गई है। एक समय में ज्यादा लोगों के बीमार पड़ने से सिस्टम की उपयोगिता कम होने लगती है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ जेसिका जस्टमैन कहती हैं,’हेल्थ सिस्टम पर अधिक बोझ पड़ने से किसी का इलाज ठीक से नहीं हो पाता है’।

संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ने और मौतों में वृद्धि के खतरे को देखते हुए कुछ विशेषज्ञों ने देशभर में चार से छह सप्ताह के लॉकडाउन का सुझाव दिया है। अन्य विशेषज्ञों ने मास्क लगाने, टेस्टिंग बढ़ाने, क्वारंटाइन में रहने वाले लोगों की मदद और स्थिति के हिसाब से लॉकडाउन की वकालत की है। मिशिगन यूनिवर्सिटी में महामारी के इतिहासकार डॉ. हॉवर्ड मर्केल का कहना है, वायरस को रोकने के गंभीर उपायों के बिना संक्रमण और मौतों में भारी वृद्धि हो सकती है।

लेकिन, राष्ट्रपति ने बढ़ते संक्रमण के बीच नए उपायों की घोषणा नहीं की है। देश के अधिकतर हिस्सों में कारोबार चल रहा है। कुछ राज्यों में गर्वनरों ने प्रतिबंध लागू किए हैं। न्यू मेक्सिको के गवर्नर मिशेले लुजन ग्रिसम ने दो सप्ताह के लिए घर से काम करने के आदेश दिए हैं। ओरेगॉन में गवर्नर केट ब्राउन ने राज्य में बुधवार से दो सप्ताह के आंशिक लॉकडाउन की घोषणा की है। व्योमिंग के गवर्नर मार्क गोर्डन ने कहा, कई माह की हिचक के बाद अब वे मास्क की अनिवार्यता और अन्य प्रतिबंधों पर विचार कर रहे हैं।

दवा कंपनियों को 74 हजार करोड़ रु., राज्यों को सिर्फ 1500 करोड़ रु.

फाइजर की वायरस वैक्सीन के अगले माह तक इमर्जेंसी इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होने की संभावना है। उधर, राज्यों का कहना है कि पैसे की घोर तंगी और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण वैक्सीन लगाने में मुश्किल आएगी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार ने वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को अरबों रुपए दिए हैं पर स्थानीय सरकारों को पर्याप्त पैसा नहीं दिया गया है। यह जानकारी अधिकारियों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दी है। बीमारी नियंत्रण केंद्रों (सीडीसी) ने राज्यों को वैक्सीन लगाने से संबंधित इंतजाम के लिए लगभग 1500 करोड़ रुपए दिए है। स्वास्थ्य विभागों ने संसद से वैक्सीन वितरण के लिए 62 हजार करोड़ रुपए मांगे हैं। सीडीसी के डायरेक्टर डॉ. रॉबर्ट रेडफील्ड का कहना है, कम से कम 44 हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। लेकिन, कोरोना वायरस पैकेज पर ट्रम्प सरकार और डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुमत की कांग्रेस के बीच गतिरोध जारी है। कांग्रेस ने वैक्सीन की रिसर्च और ट्रायल के लिए कंपनियों को 74 हजार करोड़ रुपए दिए हैं।