काशी के पास दिखा सांची जैसा स्तूप:बुद्ध प्रतिमा और 50 हजार साल पुरानी रॉक पेंटिंग दिखी

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(www.arya-tv.com)  काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के पुराविदों ने उत्तर भारत का पहला पत्थर निर्मित स्तूप खोजा है। ऐसे स्तूप सांची में देखे जाते हैं। यहां से भीमबैठका जैसी रॉक पेंटिंग भी दिखी है। स्तूप करीब 2200 साल प्राचीन मौर्य काल का है। अब खंडहर हो गया है। इसकी ऊंचाई 10 फीट और 16 फीट चौड़ाई है। ग्रामीण इसपर टीका-चंदन लगाकर शिवलिंग की तरह से पूजते हैं। हालांकि, उनका कहना है कि यहां पर कभी बौद्ध भिक्षु भी निवास करते थे।

वाराणसी से 20 किलोमीटर दूर चंदौली के एक गांव में फिरोजपुर गांव की कोठी पहाड़ी में यह ऐतिहसिक स्थापत्य मिला है। यहां पर भगवान बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा और शैल चित्र भी मिले हैं। BHU पुराविदों का कहना है कि स्तूप की बनावट से लग रहा है कि महान सम्राट अशोक ने बनवाया होगा। वहीं, यहां पर 5 हजार से लेकर 50 हजार साल पुराने उपकरणों के साथ महाश्म समाधियां (मेगलिथिक) और ऐतिहासिक काल के मृदभांड भी मिले हैं।BHU के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. महेश प्रसाद और उनके शोध छात्र परमदीप पटेल को स्टडी के दौरान यह स्तूप मिला है। रिसर्च टॉपिक था ‘चंद्रप्रभा नदी घाटी के विशेष संदर्भ में चंदौली जिले का सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक अध्ययन’।

ऐसे स्तूप सांची में दिखते हैं
प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने कहा कि इस तरह के स्तूप मध्यप्रदेश के सांची और उसके आसपास मिलते हैं। ऐसे स्तूप अपनी कलात्मक सौंदर्य और निर्माण शैली के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। प्रो. अहिरवार के अनुसार ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से उत्तर भारत में पहली बार मौर्ययुगीन पाषण स्तूप देखा गया है। उत्तर भारत में अब तक प्राप्त स्तूप ईंटों से बने मिलते हैं या फिर मिट्टी के।जिस कोठी पहाड़ी पर यह स्तूप मिला है, वहां से पुरापाषाण काल के उपकरणों के साथ महाश्म समाधियां (मेगलिथिक) और ऐतिहासिक काल के मृदभांड भी मिले हैं। वहीं, भीखमपुर और दाउदपुर की पहाड़ियों से प्राप्त पाषाण युग के औजारों, चित्रित शैलाश्रयों और कुषाण युगीन बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियां भी प्राप्त हुईं हैं। ये 5 हजार से लेकर 50 हजार साल तक प्राचीन हैं। पहले यह क्षेत्र वाराणसी में आता था। इस तरह से पता चलता है कि यहां पर प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक युग तक की सभ्यता और संस्कृति का अस्तित्व रहा होगा।

क्या होती है स्तूप की पहचान

दूसरे रिसर्चर परमदीप पटेल ने कहा कि यहां पर सबसे नीचे अंडाकार क्षेत्र मिला है। चारों ओर टूटा हुआ प्रदक्षिणा पथ है। इसके बीच में एक पत्थर का पोल है। जिसे येष्टि कहते हैं। यही स्तूप की पहचान होती है। नंवबर, 2022 में इसे खोजा गया है। अब इसका प्रकाशन किया गया है।

आदि मानवों ने उकेरी थी लाल रंग की चित्रकला
सर्वेक्षण के दौरान पुराविदों ने देखा कि भीखमपुर नाम के गांव में स्थित पहाड़ियों में जो प्राचीन शैलचित्र मिले हैं, वे आदि मानव द्वारा लाल रंग से उकेरे गए हैं। मगध शैली के कई चिन्ह भी हैं। वैसे ही चिन्ह जैसे मगध शैली के आहत सिक्कों में देखे जाते हैं। इस पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति और पहाड़ी की चोटी पर बने आधुनिक मंदिर में स्थित बोधिसत्व की प्रतिमा मिली है। ये प्रतिमाएं प्रतिमा लक्षण की दृष्टि से कुषाण कालीन प्रतीत होती हैं। पहाड़ी पर स्थित पुराने भवनों के जमींदोज खंडहरों की बिखरी ईंटों से भी इसकी पुष्टि होती है।