विनोद उपाध्याय…जिसे जननेता बनना था, लेकिन माफिया बन गया

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(www.arya-tv.com) अतीक-अशरफ की हत्या के बाद यूपी सरकार ने 61 माफियाओं और बाहुबलियों की एक लिस्ट जारी की है। इसमें गोरखपुर के विनोद उपाध्याय का भी नाम है। फतेहगढ़ जेल में बंद विनोद पर गंभीर धाराओं में 25 केस दर्ज है। किसी मामले में अभी सजा नहीं मिली है। अवैध संपत्तियां जरूर जब्त हुई हैं। विनोद अपराध की दुनिया में नहीं, राजनीति में नाम बनाना चाहता था। लेकिन, उसकी संगत ऐसी रही कि वह गोरखपुर का सबसे बड़ा माफिया बन गया।

विनोद की कहानी एकदम फिल्मी है। इस कहानी में दुस्साहस है। सबक है। थप्पड़ का बदला मर्डर है। विनोद के अपराधों को जानने के लिए विनोद की जिंदगी को शुरू से जानते हैं।

जिसने जेल में थप्पड़ मारा, उसकी हत्या हो गई

साल था 2004…। नेपाल के भैरहवा का शातिर अपराधी जीतनारायण मिश्र गोरखपुर जेल में बंद था। उसने विनोद उपाध्याय को किसी बात पर एक थप्पड़ मार दिया। उस वक्त विनोद कुछ नहीं कर सका। कुछ दिन बाद जमानत मिली। उधर जीतनारायण को गोरखपुर से बस्ती जेल ट्रांसफर कर दिया गया। 7 अगस्त, 2005 को जीतनारायण को जमानत मिली। उसे रिसीव करने उसका बहनोई गोरेलाल आया था। वह जीप पर बैठ कर संतकबीरनगर के बखीरा पहुंचे। दोनों जैसे ही गाड़ी से उतरे अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई। 70 सेकंड तक लगातार गोलियां चली। फायरिंग बंद हुई, तो जीतनारायण और गोरेलाल की लाश जमीन पर पड़ी थी।

जिसे चाहता, उसे यूनिवर्सिटी का चुनाव जिता लेता
1970 के दशक में गोरखपुर की राजनीति का मुख्य केंद्र गोरखपुर यूनिवर्सिटी हुआ करती थी। यहां जो तय होता, वही गोरखपुर में विधायक-सांसद बनता। हरिशंकर तिवारी, बलवंत सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे छात्र-नेता राजनीति की मुख्य धारा में आ गए। इसके बाद तो ट्रेंड बन गया। जो लड़के यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाते, उनकी दो कैटेगरी थी। पहली- यहां से पढ़-लिखकर अपना उद्देश्य पूरा करूंगा। दूसरा- यहां एडमिशन लेकर नेता, माफिया या फिर बाहुबली बनूंगा। विनोद दूसरी कैटेगरी में आते थे।

बाहुबली हरिशंकर तिवारी का खास था विनोद

यूनिवर्सिटी से करीब 10 साल जुड़े रहने के बाद विनोद ने छात्रों की एक बड़ी गैंग बना ली। यह वह वक्त था, जब गोरखपुर में जातीय आधार पर गैंग हुआ करते थे। हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के रॉबिनहुड थे और विनोद उनके खास चेले। हरिशंकर के चेलों में श्रीप्रकाश शुक्ला भी था। दूसरी तरफ ठाकुरों का नेता हुआ करते थे महाराजगंज जिले के बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही। शाही को श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में गोलियों से भून दिया था।

यह वह वक्त था, जब विनोद का नाम अपराध जगत में नहीं दर्ज था। विनोद को अपने आसपास हो रहे अपराध को देखते हुए अपराध करने की हिम्मत आई। तभी श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर हो गया। इसके बाद विनोद सत्यव्रत के खास हो गए। ये सत्यव्रत राय कभी श्रीप्रकाश शुक्ला को सलाह देने वाले बताए जाते थे। दोनों साथ हुए तो इनका नाम अपराध में आने लगा। 1999 में एक के बाद एक दो मुकदमा गोरखनाथ थाने में दर्ज हुआ। पहला धमकी का था, दूसरा एक दलित व्यक्ति से मारपीट से जुड़ा था।

रेलवे के ठेके लिए हिंदूवादी नेता को दौड़ाकर पीटा
रेलवे के अलावा विनोद की नजर FCI के ठेके पर भी थी। एक बार इसी के ठेके को लेकर विनोद का हिंदू युवा वाहिनी के नेता सुशील सिंह से विवाद हो गया। विनोद और उसके लोग दिन में 2 बजे सुशील सिंह को उठा ले गए। सुशील को गोरखपुर शहर के अंदर विजय चौराहे से गणेश होटल तक पीटते हुए ले गए। सुशील छोड़ देने की विनती करते रहे, लेकिन पीटने वाले पीटते रहे। बाद में मामला दर्ज हुआ लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।

बसपा से चुनाव लड़ा, पर जीत नहीं मिली
ठेकों के बलबूते विनोद पैसों से संपन्न होता चला गया। राजनीति में आने का फैसला किया। उस वक्त बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा से विनोद की नजदीकी थी। पार्टी में पद मांगा। बसपा ने विनोद को गोरखपुर का प्रभारी बना दिया। 2007 में गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया। लेकिन छवि ऐसी थी कि चुनाव में चौथे नंबर पर रहा। जबकि उस साल बसपा ने पूर्ण बहुमत से यूपी में सरकार बनाई थी।

2007 तक विनोद पर 7 मुकदमे दर्ज हो चुके थे। वह कई बार जेल जा चुका था। 2007 में सिविल लाइंस इलाके में विनोद उपाध्याय गैंग पर लाल बहादुर गैंग ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। विनोद गैंग के लोगों को पिस्टल निकालने तक का वक्त नहीं मिला। गोलियां गाड़ियों के शीशे को चीरते हुए शरीर में घुसने लगीं। फायरिंग थमती, उसके पहले ही विनोद गैंग के रिपुंजय राय और देवरिया के सत्येंद्र की सांसें थम गई थी। इस मामले में अजीत शाही, संजय यादव, संजीव सिंह समेत 7 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ। लाल बहादुर को आरोपी नहीं बनाया गया।

विनोद के खिलाफ 2007 में ही लखनऊ के हजरतगंज थाने में हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। 2008 में हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ। एक तरफ पुलिस जांच कर रही थी, तो दूसरी तरफ विनोद का नाम अपराध दर अपराध आता रहा। विनोद की नजर विवादित जमीनों पर गड़ गई। आरोप लगा कि कुछ अपने नाम तो कुछ अपने रिश्तेदारों के नाम करवा दी। दूसरे गैंग में क्या चल रहा, इसे पता करने के लिए हर गैंग में विनोद ने अपने लोगों को चालाकी के साथ एंट्री करवा दी।

हत्या का बदला दूसरी हत्या करके लिया
दूसरी तरफ, लाल बहादुर यादव राजनीति में आ गए। पिपरौली से ब्लॉक प्रमुख बन गए। मई 2014 को गोरखपुर यूनिवर्सिटी आए। गेट पर पहुंचे ही थे कि गोली मार दी गई। हत्या से हत्या का बदला पूरा हो गया। गोरखपुर कैंट पुलिस ने विनोद उपाध्याय समेत 14 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। विनोद सहित 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। 3 फरार हैं। विनोद कुछ ही वक्त बाद जमानत पर बाहर आ गया।

विनोद पर हत्या का प्रयास, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज होने लगा। 2020 आते-आते विनोद पर गंभीर धाराओं में दर्ज होने वाले मुकदमों की संख्या 25 पहुंच गई। जमानत पर छूटा, तो फरार हो गया। पुलिस ने 25 हजार का इनाम घोषित कर दिया। 17 जुलाई, 2020 को पुलिस ने विनोद को गोमतीनगर के विपुल खंड से गिरफ्तार कर लिया। यहां जो जमीनें विनोद ने कब्जाई थीं, उन्हें प्रशासन ने मुक्त करवा दिया।