बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी, रसायन विज्ञान और फार्मास्यूटिकल साइंस विभाग के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से मानव यकृत कैंसर के संभावित उपचार विकसित करने हेतु सराहनीय शोध कार्य किया है। कम्प्यूटेशनल और संरचनात्मक जीव विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ० युसुफ अख्तर ने कार्बनिक संश्लेषण रसायनज्ञ डॉ० जवाहर लाल जाट और औषधीय रसायन विज्ञान और फार्माकोलॉजी विशेषज्ञ स्वर्गीय डॉ० सुदीप्त साहा के साथ मिलकर यह शोध की शुरुआत की थी। दुर्भाग्यवश पिछले साल शोध के दौरान ही डॉ० सुदीप्त साहा का आकस्मिक निधन हो गया था।
यकृत कैंसर या हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा विश्व स्तर पर मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है। प्रत्येक वर्ष इसके लगभग दस लाख मामले दर्ज किये जाते हैं एवं अन्य कैंसर के मुकाबले आवृत्ति में यह छठें स्थान पर है। सर्जरी, अंग प्रतिस्थापन , स्थानीय निष्कासन, इंटरवेशनल कीमोथेरेपी और प्राकृतिक दवा लक्षित उपचार कैंसर के उपचार के लिए अच्छा विकल्प है। आमतौर पर चिकित्सकीय विकल्पों में यकृत प्रत्यारोपण, छवि- निर्देशित एब्लेशन और कीमोएम्बोलाइजेशन शामिल हैं। हालाँकि सोराफेनीब और रामुसीरमब दवाइयां उपलब्ध हैं, लेकिन ये केवल कुछ महीनों तक रोगी के जीवन को बढ़ाती हैं, और ये उपचार कई दुष्प्रभावों के साथ आते हैं।
इस शोध के अन्तर्गत, शोधकर्ताओं ने कैसपेज़ को लक्षित करने के लिए एज़िरिडीन डेरिवेटिव का उपयोग किया है। कैस्पेज़-9, एक प्रोटीन है, जो क्रमादेशित कोशिका मृत्यु में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और कैस्पेज़-3, एक प्रोटीन है जो इस प्रक्रिया के प्रभावकारक के रूप में कार्य करती है, इन दोनों को लक्षित करके, इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने यकृत कैंसर की प्रगति को नियंत्रित किया। कम्प्यूटेशनल विश्लेषणों से पता चला है, कि एज़िरिडीन डेरिवेटिव में से एक में रासायनिक और इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा का उच्चतम स्तर था, जबकि दूसरे ने कैस्पेज़ -3 और दोनों के लिए सबसे मजबूत बंधन संबंध प्रदर्शित किया था। इसके अलावा, आणविक गतिशीलता सिमुलेशन परिणामों से पता चला कि दोनों कॉम्प्लेक्स 100 नैनो सेकंड समय अवधि में स्थिर रहे। इसके अलावा, इस अध्ययन के इन-विट्रो परीक्षण परिणाम दर्शाते हैं, कि प्रयोग किये गए एज़िरिडीन यौगिक हेप-जी 2 कैंसर कोशिका में मानव यकृत कैंसर की प्रगति में बाधा डाल पाते हैं। इस शोध के निष्कर्षों से पता चला है कि इन यौगिकों में कैसपेज़ को सक्रिय करके यकृत कैंसर कोशिकाओं में एपोप्टोसिस को प्रेरित करने की क्षमता होती है। रसायन विज्ञान, संरचनात्मक जीव विज्ञान, फार्मास्युटिकल विज्ञान और कैंसर जीव विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के बीच सहयोग भविष्य में मानव यकृत कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से लड़ने और नए चिकित्सीय दवा अणुओं की खोज के लिए महत्वपूर्ण है।
डॉ. साहा ,डॉ. प्रणेश कुमार, डॉ. तबरेज़ फारुकी और डॉ. अख्तर ने इस शोध कार्य के लिए एक टीम के रूप में कार्य किया। डॉ. यूसुफ अख्तर ने शोध के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि “इस बहु-विषयक अनुसंधान परियोजना पर काम करना एक अद्भुत अनुभव था जो दवा के अणुओं को संश्लेषित करने के लिए एक कुशल विधि विकसित करने के लिए नए रास्ते खोलता है। उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए हमने कम्प्यूटेशनल अध्ययन आयोजित किया था । इसके अलावा, हमने कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ इन अणुओं के एंटीप्रोलिफेरेटिव गुणों, जो कि कैंसर कोशिकाओं के प्रजनन को रोकने की क्षमता दर्शाता है, उस पर एक इन-विट्रो अध्ययन किया है।” यह अध्ययन प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका, जर्नल ऑफ बायोमोलेक्यूलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स में प्रकाशित हुआ है, जिसका इम्पैक्ट फैक्टर 4.4 है।