ठंड ने बदला हिमालयी लोगों का DNA कैरेक्टर:BHU और CU में रिसर्च

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(www.arya-tv.com) ठंडक ने पूर्वी हिमालयी लोगों के DNA का कैरेक्टर (सिक्वेंस) बदल दिया है। इसका नतीजा यह है कि 6 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाइयाें पर रहने वालों का ब्लड प्रेशर मैदान में भी मैदानी लोगों से सवा गुना ज्यादा होता है। वहीं, हीमोग्लोबिन का लेवल करीब 15-20% तक कम है। हिमालयी लोगों में एक खास EPAS-1 जीन होता है। जो कि येती से मिला है। यही कैरेक्टर उन्हें मैदानी इंसानों से अलग करता है।

अब आप चाहें तो समुद्र तल से 6 हजार फीट से ऊपर रहने वाले लोगों की बीपी चेक कर लें, अधिकतम 150 ही आएगी। इसलिए, अब वैज्ञानिकों की मांग है कि दोनों भौगोलिक एरिया के लोगों के इलाज की प्रक्रिया भी अलग-अलग होनी चाहिए। क्योंकि उनके बॉडी का नेचर और रिस्पॉन्स डिफरेंट है।यह खुलासा काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और कलकत्ता यूनिवर्सिटी के जॉइंट रिसर्च में हुआ है। पूर्वी हिमालय में बसने वाले 178 लोगों पर हुआ यह रिसर्च इसी सप्ताह अमेरिकन ‘जर्नल ऑफ ह्यूमन बायोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है। इसके प्रथम लेखक डॉ. राकेश तमांग हैं।

रिसर्च के मुख्य साइंटिस्ट से समझते हैं कि हिमालयी निवासियों में DNA का यह कैरेक्टर कैसे विकसित हुआ…
इस रिसर्च को लीड कर रहे BHU से जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा, ”मैदानी लोगों के इलाज में दिया जाने वाला ट्रीटमेंट पहाड़ियों पर लागू नहीं होता। मैदानी लोगों के ब्लड प्रेशर का सामान्य रेंज 80 से 120 है, वहीं पहाड़ी लोगों का 100 से 150 है। यानी कि मैदानी लोगों का जो हाई बीपी होता है वह पहाड़ी पर रहने वाले जनजातियों का नॉर्मल बीपी है। चाहे वे पहाड़ी पर रहे या मैदान में। दोनों जगह उनकी नॉर्मल बीपी 150 ही आएगी। इसलिए, उनके इलाज पैटर्न और मेडिकेशन में भी बदलाव होने चाहिए। मेडिकल ट्रीटमेंट को लेकर एक ही ढर्रा मैदानी और पहाड़ी लोगों पर लागू नहीं होता है।”प्रो. चौबे ने बताया, ‘‘यह कैरेक्टर उनके DNA में ही है। वे जैविक रूप से मैदानी लोगों से अलग हैं। EPAS-1 जीन उनके अंदर पाया जाता है। यह उन्हें हाई एल्टीट्यूड पर रहने के लायक (अनुकूलित) बनाता है। यह जीन उन्हें 40 हजार साल पहले डेनिशवन आदि मानवों से मिला है। अब धरती पर इनका अस्तित्व तो नहीं है। मगर, किवदंतियों में इन्हें येती (बर्फीले एरिया में रहने वाले हिम मानव जो भालू की तरह होते हैं) भी कहते हैं।

पहाड़ी लोगों का ब्लड पतला
प्रो. चौबे ने कहा कि हम देखते हैं कि मैदानी लोगों को पहाड़ियों पर चलना-फिरना काफी थकाने वाला अनुभव होता है। मगर, पहाड़ के लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती। ऐसा, इसलिए कि उन्होंने खुद को जैविक रूप से पहाड़ के हिसाब से ढाल लिया है। हमने लेप्चा, भूटिया, शेरपा और तिब्बती लोगों के DNA की जांच की है। उनके अंदर ही यह खूबी है। इन लोगों का ब्लड मैदानी लोगों की अपेक्षा पतला होता है। ब्लड सर्कुलेशन इसलिए स्वत: ही ज्यादा होता है। बीपी बढ़ी हुई रहती है।

ये 10 पैरामीटर किए गए चेक
अनुकूलन को पहचानने के लिए रिसर्च टीम ने हिमालयी जनजातियों के 10 मार्कर्स की स्टडी की। इसमें बॉडी वेट, हाइट, BMI (बॉडी मास इंडेक्स), ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, ब्लड ऑक्सीजन, हीमोग्लोबिन, हेमेटोक्रिट और ब्लड ग्लूकोज लेवल के औसतन स्तर की स्टडी की गई। शेरपा और तिब्बतियों में हीमोग्लोबिन का लेवल 12 g/dl (सामान्य – 14.9 g/dl) से कम थी। उनका औसत सिस्टोलिक और डायस्टोलिक दबाव 142 mmHg (सामान्य 120 mmHg) और 94 mmHg ( सामान्य 80 mmHg) था।