JNU के 3 रणनीतिकार अध्यक्षों से घिरे राहुल और प्रियंका

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(www.arya-tv.com) हाल के दिनों में कांग्रेस में JNU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षों का दबदबा बढ़ा है। अभी टॉप पोजिशन पर JNU से निकले लोग हैं। ये लोग राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बेहद करीबी हैं और उनकी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। हाल ही में पूर्व JNU प्रेसिडेंट और कम्युनिस्ट लीडर कन्हैया कुमार की भी कांग्रेस में एंट्री हुई है। इसको लेकर पार्टी के पुराने और काबिल नेताओं में नाराजगी भी है। उनका आरोप है कि पार्टी में उनकी सुनी नहीं जा रही है, उनकी अनदेखी की जा रही है।

प्रियंका गांधी के ट्वीट इन दिनों कविता और शायरी से भरपूर होते हैं। हाल ही में हाथ में झाड़ू लेकर गेस्ट हाउस के कमरे की सफाई करने का उनका वीडियो चर्चा में रहा। इन दिनों घटनास्थल पर पहुंचने में राहुल-प्रियंका कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। दरअसल यह प्रियंका के पर्सनल सेक्रेटरी और JNU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष संदीप सिंह की सलाह का असर है। संदीप सिंह प्रियंका के इतने करीब हैं कि बिना उनकी इजाजत कांग्रेस का बड़े से बड़ा नेता उनसे नहीं मिल सकता। भाषण से लेकर बयान तक सब संदीप सिंह की सलाह पर ही हैं। वे राहुल गांधी के लिए भी भाषण लिखते हैं।

संदीप AISA से जुड़े रहे। 2007-08 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। वे हिंदी के छात्र रहे हैं। लिहाजा उनकी हिंदी का असर प्रियंका और राहुल की भाषा में दिखाई देने लगा है। वे करीब 3 साल से कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं। इस बीच करीब 10-12 वामपंथी विचारधारा के कार्यकर्ता वे पार्टी में लेकर आए। उत्तर प्रदेश में सुधांशु वाजपेयी, सरिता पटेल बनारस में तो अनिल यादव भी संदीप के लाए हुए हैं। UP में सक्रिय भाजपा के घोर विरोधी NGO रिहाई मंच के कुछ कार्यकर्ता भी संदीप पार्टी के भीतर लेकर आए हैं।

2016-17 में JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे मोहित पांडे कांग्रेस में सोशल मीडिया के इंचार्ज हैं। वे AISHA के कर्मठ कामरेड हैं। सोशल मीडिया में क्या दिखाना है, क्या चलाना है, मोहित इन सबमें माहिर हैं। पिछले दो तीन सालों में सोशल मीडिया पर राहुल और प्रियंका की सक्रियता दिखने के पीछे मोहित का ही हाथ है।

भीड़ जुटाने के लिए कन्हैया की एंट्री हुई है…
पिछले 28 सितंबर को कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हुए। वे ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) के तेज तर्रार छात्रनेता रहे हैं। 2015-16 में वे अध्यक्ष बने। CPI के टिकट पर 2019 में वे बेगूसराय सीट से लड़े और हारे। घोर वामपंथी स्टाइल में भाषण देने और विपक्ष को घेरने में कन्हैया माहिर हैं। सूत्रों की मानें तो कन्हैया को भीड़ जुटाने का काम दिया गया है।

क्या कन्हैया विधानसभा-लोकसभा चुनावों के लिए भीड़ जुटाने में सक्षम होंगे? JNU में वामपंथी छात्र राजनीति में सक्रिय रहे उनके एक पूर्व सहयोगी कहते हैं, ‘कन्हैया को मीडिया ने नेता बनाया है। हां, वे वाकचतुर हैं, लेकिन संगठन बनाने की क्षमता बिल्कुल भी नहीं। अगर भाषण से जीत मिलती तो बेगूसराय में इतनी बुरी हार नहीं होती। कांग्रेस को कन्हैया से कुछ नहीं मिलने वाला।’ खैर, कन्हैया राहुल और प्रियंका की पसंद हैं। अब वे कितना उपयोगी साबित होंगे यह तो वक्त बताएगा।

पहले भी कांग्रेस में रहा है JNU का दखल
कांग्रेस में वामपंथियों की एंट्री का पुराना इतिहास है। शकील अहमद खान 1992 में ही पार्टी में शामिल हो गए थे। वामपंथी विचारधारा की छात्र राजनीति के सक्रिय समर्थक अहमद भी JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे बिहार में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं। बत्ती लाल बैरवा 1996-97 में JNU के छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। SFI के छात्र नेता, इन दिनों राजस्थान कांग्रेस में पदासीन हैं। सैयद नसीर हुसैन भी JNU के छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सांसद हैं।

कांग्रेस के टॉप सोर्सेस के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर के साथ शीर्ष नेतृत्व के बर्ताव से पुराने कांग्रेसी बेहद आहत हैं। कई पुराने कांग्रेसी नेताओं ने इसको लेकर अपनी बात भी कही। जो खुलकर अपनी बात नहीं कह पाए वे भी कहीं न कहीं बोलने वालों के समर्थन में हैं। कपिल सिब्बल के घर के बाहर यूथ कांग्रेस के प्रदर्शन ने भी ओल्ड ब्रिगेड के भीतर पहले से चल रही खलबली को और बढ़ा दिया है। संभव है कि G-23 इस बार कुछ बड़ा होकर सामने आए। हालांकि, अभी इस पर कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई है।

कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी से युवा नेताओं के पलायन से भी पुराने कांग्रेसी नेता चिंतित हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस की विचारधारा के साथ पले-बढ़े युवा नेताओं को रोकने की कोशिश न करना एक गलत फैसला है। इनकी भरपाई वामपंथी युवा छात्र नेताओं से करने की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की कोशिश को यह फिजूल करार देते हैं।

दरअसल, सूत्रों की मानें तो पुराने कांग्रेसियों में नाराजगी की वजह यह भी है कि पार्टी ऐसे लोगों के लिए लॉन्चिंग प्लेटफॉर्म की तरह काम कर रही है जो राजनीति में ट्रेनी से ज्यादा की हैसियत नहीं रखते। पार्टी अपनों को छोड़ बाहरी लोगों पर भरोसा कर रही है।

राहुल-प्रियंका की ये वामपंथी त्रिमूर्ति कांग्रेस को फिर से खड़ा कर पाएगी?
यह तीनों वामपंथी चेहरे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सबसे करीब हैं। इनकी सलाह इन दिनों राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को राह दिखाने का काम कर रही है। तो क्या यह कांग्रेस के तारणहार बनकर उभरेंगे?

CPI के जनरल सेक्रेटरी अतुल अंजान कहते हैं, ‘हमने क्या-क्या नहीं दिया कन्हैया को। दिल्ली और बिहार दोनों जगह ऑफिस दिया। अपना पेट काटकर उन्हें कार के लिए पैसे दिए। फ्लाइट टिकट से नीचे वे बात नहीं करते थे, लेकिन उन्होंने बेईमानी की। हमें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल होने में दशकों लगे, मैं 86 बार जेल गया, लेकिन कन्हैया नेशनल काउंसिल और फिर सीधा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हो गए। 26 सितंबर तक कन्हैया मेरे साथ थे, 28 सितंबर को वे कांग्रेसी हो गए। अब ज्यादा क्या कहें, कन्हैया आइडियोलॉजी नहीं बल्कि करियर की तलाश में हैं। वे हमसे वफा नहीं कर सके तो कांग्रेस के कितने भरोसेमंद होंगे?’

JNU में वामपंथी विचारधारा के पूर्व छात्र नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘कांग्रेस को संगठन की जरूरत है, कामरेड संगठन बनाने में वैसे ही माहिर होते हैं जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। दिक्कत यह है कि ये युवा छात्र नेता क्या वाकई जमीनी वामपंथी हैं? इनका संघर्ष आखिर क्या है?’

सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बढ़ने से संगठन नहीं बनता। संगठन बनता है, जमीन पर जूझने से। इनका जमीन का अनुभव क्या है? इनमें से कौन है जिसने कोई अभियान-आंदोलन चलाया हो? वामपंथी अंदाज मीडिया में सुर्खियां दिला सकता है, लेकिन वोट के लिए और जनता के दिल तक जाने के लिए संगठन जरूरी है। इनमें से कोई नहीं जो संगठन खड़ा कर सके।