जन्म से सभी शूद्र होते हैं। सनातन ज्ञान में जातिवाद होता ही नहीं ! सब विरोधियों की साजिश !

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  • जन्म से सभी शूद्र होते हैं। सनातन ज्ञान में जातिवाद होता ही नहीं ! सब विरोधियों की साजिश !

एचबीटीआई कानपुर से पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई से सेवानिवृत परमाणु वैज्ञानिक, सनातन शोधक ट्रस्ट गर्वित के संस्थापक, विचारक, ब्लॉग और चैनल के माध्यम से सनातन संबंधी प्रश्नों को शांत करनेवाले, सचलमन सरल वैज्ञानिक ध्यान विधि द्वारा सनातन की शक्ति का घर बैठे अनुभव प्रदान करनेवाले,  विपुल सेन लखनवी जी के लगभग 25 साक्षात्कार aryatv.com ने प्रकाशित किए हैं!

aryatv.com पाठकों का आभारी है कि वे निरंतर विभिन्न प्रश्न पूछते रहते हैं। उन्हीं प्रश्नों को विपुल जी से पूछकर साक्षात्कार का रूप दिया जाता है। पूछे गए प्रश्नों पर बिना अटक आश्चर्यचकित उत्तर देकर विपुल जी निरुत्तर कर देते हैं! अब आगे!

डॉ. अजय शुक्ला:  एक जिज्ञासा मेरे पास आई है क्या जन्म से सभी शूद्र होते हैं?

विपुल जी: यह सत्य है। जन्म से सभी शुद्र होते हैं।

जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं।

डॉ अजय शुक्ला: तो फिर ब्राह्मण कौन होते हैं?

विपुल जी: वज्रसुचिकोपनिषद जो सामवेद से सम्बद्ध है! इसमें कुल ९ मंत्र हैं! जिसमें बताया गया है क्या ब्राह्मण जीव है ? शरीर है, जाति है, ज्ञान है, कर्म है, या धार्मिकता है ? अंत में ‘ब्राह्मण’ की परिभाषा बताते हुए उपनिषदकार कहते हैं कि जो समस्त दोषों से रहित, अद्वितीय, आत्मतत्व से संपृक्त है, वह ब्राह्मण है ! चूँकि आत्मतत्व सत्, चित्त, आनंद रूप ब्रह्म भाव से युक्त होता है, इसलिए इस ब्रह्म भाव से संपन्न मनुष्य को ही (सच्चा) ब्राह्मण कहा जा सकता है !

ब्राह्मक्षत्रियवैष्यशूद्रा इति चत्वारो वर्णास्तेषां वर्णानां ब्राह्मण एव प्रधान इति वेदवचनानुरूपं स्मृतिभिरप्युक्तम्। तत्र चोद्यमस्ति को वा ब्राह्मणो नाम किं जीवः किं देहः किं जातिः किं ज्ञानं किं कर्म किं धार्मिक इति ॥

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं ! इन वर्णों में ब्राह्मण ही प्रधान है, ऐसा वेद वचन है और स्मृति में भी वर्णित है !

अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि ब्राह्मण कौन है ?
क्या वह जीव है अथवा कोई शरीर है अथवा जाति अथवा कर्म अथवा ज्ञान अथवा धार्मिकता है ?

तत्र प्रथमो जीवो ब्राह्मण इति चेत् तन्न । अतीतानागतानेकदेहानां जीवस्यैकरूपत्वात् एकस्यापि कर्मवशादनेकदेहसम्भवात् सर्वशरीराणां जीवस्यैकरूपत्वाच्च । तस्मात् न जीवो ब्राह्मण इति ॥
इस स्थिति में यदि सर्वप्रथम जीव को ही ब्राह्मण मानें (कि ब्राह्मण जीव है), तो यह संभव नहीं है; क्योंकि भूतकाल और भविष्यतकाल में अनेक जीव हुए होंगें ! उन सबका स्वरुप भी एक जैसा ही होता है ! जीव एक होने पर भी स्व-स्व कर्मों के अनुसार उनका जन्म होता है और समस्त शरीरों में, जीवों में एकत्व रहता है, इसलिए केवल जीव को ब्राह्मण नहीं कह सकते !

तर्हि देहो ब्राह्मण इति चेत् तन्न । आचाण्डालादिपर्यन्तानां मनुष्याणां पञ्चभौतिकत्वेन देहस्यैकरूपत्वात्
जरामरणधर्माधर्मादिसाम्यदर्शनत् ब्राह्मणः श्वेतवर्णः क्षत्रियो रक्तवर्णो वैश्यः पीतवर्णः शूद्रः कृष्णवर्णः इति नियमाभावात् । पित्रादिशरीरदहने पुत्रादीनां ब्रह्महत्यादिदोषसम्भवाच्च । तस्मात् न देहो ब्राह्मण इति ॥

क्या शरीर ब्राह्मण (हो सकता) है?

नहीं, यह भी नहीं हो सकता ! चांडाल से लेकर सभी मानवों के शरीर एक जैसे ही अर्थात पांचभौतिक होते हैं, उनमें जरा-मरण, धर्म-अधर्म आदि सभी सामान होते हैं ! ब्राह्मण- गौर वर्ण, क्षत्रिय- रक्त वर्ण , वैश्य- पीत वर्ण और शूद्र- कृष्ण वर्ण वाला ही हो, ऐसा कोई नियम देखने में नहीं आता तथा (यदि शरीर ब्राह्मण है तो) पिता, भाई के दाह संस्कार करने से पुत्र आदि को ब्रह्म हत्या का दोष भी लग सकता है !
अस्तु, केवल शरीर का ब्राह्मण होना भी संभव नहीं है !!

तर्हि जाति ब्राह्मण इति चेत् तन्न । तत्र जात्यन्तरजन्तुष्वनेकजातिसम्भवात् महर्षयो बहवः सन्ति ।
ऋष्यशृङ्गो मृग्याः, कौशिकः कुशात्, जाम्बूको जाम्बूकात्, वाल्मीको वाल्मीकात्, व्यासः कैवर्तकन्यकायाम्, शशपृष्ठात् गौतमः,। वसिष्ठ उर्वश्याम्, अगस्त्यः कलशे जात इति शृतत्वात् । एतेषां जात्या विनाप्यग्रे ज्ञानप्रतिपादिता ऋषयो बहवः सन्ति । तस्मात् न जाति ब्राह्मण इति ॥

फिर क्या जाति ब्राह्मण है?

(अर्थात ब्राह्मण कोई जाति है )? नहीं, यह भी नहीं हो सकता; क्योंकि विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों में भी बहुत से ऋषियों की उत्पत्ति वर्णित है ! जैसे – मृगी से श्रृंगी ऋषि की, कुश से कौशिक की, जम्बुक से जाम्बूक की, वाल्मिक से वाल्मीकि की, मल्लाह कन्या (मत्स्यगंधा) से वेदव्यास की, शशक पृष्ठ से गौतम की, उर्वशी से वसिष्ठ की, कुम्भ से अगस्त्य ऋषि की उत्पत्ति वर्णित है ! इस प्रकार पूर्व में ही कई ऋषि बिना (ब्राह्मण) जाति के ही प्रकांड विद्वान् हुए हैं, इसलिए केवल कोई जाति विशेष भी ब्राह्मण नहीं हो सकती है !

तर्हि ज्ञानं ब्राह्मण इति चेत् तन्न । क्षत्रियादयोऽपि परमार्थदर्शिनोऽभिज्ञा बहवः सन्ति । तस्मात् न ज्ञानं ब्राह्मण इति ॥

क्या ज्ञान को ब्राह्मण माना जाये?

ऐसा भी नहीं हो सकता; क्योंकि बहुत से क्षत्रिय (रजा जनक) आदि भी परमार्थ दर्शन के ज्ञाता हुए हैं (होते हैं) ! अस्तु, केवल ज्ञान भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !

तर्हि कर्म ब्राह्मण इति चेत् तन्न । सर्वेषां प्राणिनां
प्रारब्धसञ्चितागामिकर्मसाधर्म्यदर्शनात्कर्माभिप्रेरिताः सन्तो जनाः क्रियाः कुर्वन्तीति । तस्मात् न कर्म ब्राह्मण इति ॥

तो क्या कर्म को ब्राह्मण माना जाये?

नहीं ऐसा भी संभव नहीं है; क्योंकि समस्त प्राणियों के संचित, प्रारब्ध और आगामी कर्मों में साम्य प्रतीत होता है
तथा कर्माभिप्रेरित होकर ही व्यक्ति क्रिया करते हैं ! अतः केवल कर्म को भी ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता है !!
तर्हि धार्मिको ब्राह्मण इति चेत् तन्न । क्षत्रियादयो हिरण्यदातारो बहवः सन्ति । तस्मात् न धार्मिको ब्राह्मण इति ॥
क्या धार्मिक, ब्राह्मण हो सकता है?

यह भी सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि क्षत्रिय आदि बहुत से लोग स्वर्ण आदि का दान-पुण्य करते रहते हैं !

अतः केवल धार्मिक भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !!

तर्हि को वा ब्रह्मणो नाम । यः कश्चिदात्मानमद्वितीयं जातिगुणक्रियाहीनं षडूर्मिषड्भावेत्यादिसर्वदोषरहितं सत्यज्ञानानन्दानन्तस्वरूपं स्वयं निर्विकल्पमशेषकल्पाधारमशेषभूतान्तर्यामित्वेन। वर्तमानमन्तर्यहिश्चाकाशवदनुस्यूतमखण्डानन्दस्वभावमप्रमेयं । अनुभवैकवेद्यमपरोक्षतया भासमानं करतळामलकवत्साक्षादपरोक्षीकृत्य। कृतार्थतया कामरागादिदोषरहितः शमदमादिसम्पन्नो भाव मात्सर्य। तृष्णा आशा मोहादिरहितो दम्भाहङ्कारदिभिरसंस्पृष्टचेता वर्तत। एवमुक्तलक्षणो यः स एव ब्राह्मणेति शृतिस्मृतीतिहासपुराणाभ्यामभिप्रायः। अन्यथा हि ब्राह्मणत्वसिद्धिर्नास्त्येव। सच्चिदानान्दमात्मानमद्वितीयं ब्रह्म भावयेदित्युपनिषत् ॥

ॐ आप्यायन्त्विति शान्तिः ॥ इति वज्रसूच्युपनिषत्समाप्ता ॥ भारतीरमणमुख्यप्राणन्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

कौन है असली ब्राह्मण

पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता था। गुरुकुल की अब वह परंपरा नहीं रही। विदेशी आक्रांताओं ने भारत के गुरुकुल परंपरा को नष्ट कर हमको अज्ञानी बना दिया। जिन लोगों ने ब्राह्मणत्व अपने प्रयासों से हासिल किया था उनके कुल में जन्मे लोग भी खुद को ब्राह्मण समझने लगे। ऋषि-मुनियों की वे संतानें खुद को ब्राह्मण मानती हैं जबकि उन्होंने न तो शिक्षा ली न दीक्षा और न ही उन्होंने कठिन तप किया। वे जनेऊ का भी अपमान करते देखे गए हैं।

आजकल के तथाकथित ब्राह्मण लोग शराब पीकर, मांस खाकर और असत्य वचन बोलकर भी खुद को ब्राह्मण समझते हैं। उनमें से कुछ तो धर्मविरोधी हैं, कुछ धर्म जानते ही नहीं, कुछ गफलत में जी रहे हैं, कुछ ने धर्म को धंधा बना रखा और कुछ पोंगा-पंडित और कथावाचक बने बैठे हैं।

डॉ. अजय शुक्ला: फिर किसे ब्राह्मण कहलाने का हक है!

विपुल जी: इसका उत्तर देते हुए उपनिषत्कार कहते हैं।

जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त न हो। मतलब जिसको योग का अनुभव हो चुका हो। जाति गुण और क्रिया से भी युक्त गुण हो। षड उर्मियों और षडभावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो। सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला, अशेष कल्पों का आधार रूप, समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला, अन्दर-बाहर आकाशवत संव्याप्त, अखंड आनंद्वान, अप्रमेय, अनुभवगम्य, अप्रत्येक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला, काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला, शम-दम आदि से संपन्न, मात्सर्य, तृष्णा, आशा, मोह आदि भावों से रहित, दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है। ऐसा श्रुति, स्मृति-पूरण और इतिहास का अभिप्राय है ! इसके अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं हो सकता ! आत्मा सत् – चित और आनंद स्वरुप तथा अद्वितीय है ! इस प्रकार ब्रह्मभाव से संपन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है !

जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर किसी अन्य को नहीं पूजता वह ब्राह्मण।
ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है।
जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, जो ज्योतिषी है और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथा वाचक है।
इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है।
जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता वह ब्राह्मण नहीं।

डॉ. अजय शुक्ला: इस विषय में महात्माओं ने क्या कहा?

विपुल जी: महात्मा बुद्ध ने कहा!
न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो।यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥
अर्थात : भगवान बुद्ध कहते हैं कि ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है। कमल के पत्ते पर जल और आरे की नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हूं।

महावीर स्वामी
तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे।जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं॥
अर्थात : महावीर स्वामी कहते हैं कि जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है, कौन स्थावर है। और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं।
न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो।न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो॥
अर्थात : महावीर स्वामी कहते हैं कि सिर मुंडा लेने से ही कोई श्रमण नहीं बन जाता। ओंकार का जप कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। केवल जंगल में जाकर बस जाने से ही कोई मुनि नहीं बन जाता। वल्कल वस्त्र पहन लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता।

मनुसंहिता (1- (/43-44)
शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः ।पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥-
अर्थात : ब्राह्मणत्व की उपलब्धि को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहल्व, चीनी किरात, दरद व खश ये सभी क्षत्रिय जातियां धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गईं।

डॉ. अजय शुक्ला: क्या ब्राह्मण भी कई प्रकार के हो सकते हैं?

विपुल जी: स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है। मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रू ण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।

डॉ. अजय शुक्ला: कुछ उनके विषय में बताइए!

विपुल जी: सुनिए
मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह के तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी हैं।

ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।

अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।

भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।

ऋषिकल्प : जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

ऋषि : ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।

मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।

बात यह है कि किसी वेदपाठी परम्परा में यदि कोई बालक / बालिका जन्म ले तो उसके “ब्राह्मणत्व को प्राप्त होने की सम्भावना” बढ़ जाती हैं। लेकिन इसका इसका ये मतलब नहीं हैं कि ऐसा बालक / बालिका “ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण” हो ही जाए।

“निरुक्त शास्त्र” के प्रणेता यास्क मुनि इसीलिए कहते हैं।
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात्‌ भवेत द्विजः। वेद पाठात्‌ भवेत्‌ विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

अर्थात – व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।

विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मणकारकम्। विद्यातपोभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥
अर्थात- ”विद्या, तप और ब्राह्मण-ब्राह्मणी से जन्म ये तीन बातें जिसमें पाई जायँ वही पक्का ब्राह्मण है, पर जो विद्या तथा तप से शून्य है वह जातिमात्र के लिए ब्राह्मण है, पूज्य नहीं हो सकता” (पतंजलि भाष्य 51-115)।

महाभारत के कर्ता वेदव्यास और नारदमुनि के अनुसार “जो जन्म से ब्राह्मण हे किन्तु कर्म से ब्राह्मण नहीं हे। उसे शुद्र (मजदूरी) के काम में लगा दो” (सन्दर्भ ग्रन्थ – महाभारत)

महर्षि याज्ञवल्क्य व पराशर व वशिष्ठ के अनुसार “जो निष्कारण (कुछ भी मिले ऐसी आसक्ति का त्याग कर के) वेदों के अध्ययन में व्यस्त हे और वैदिक विचार संरक्षण और संवर्धन हेतु सक्रीय हे वही ब्राह्मण है” (शतपथ ब्राह्मण, ऋग्वेद मंडल १०., पराशर स्मृति)

भगवद गीता में श्री कृष्ण के अनुसार : “शम, दम, करुणा, प्रेम, शील (चारित्र्यवान), निस्पृही जेसे गुणों का स्वामी ही ब्राह्मण हे”

जगद्गुरु शंकराचार्य के अनुसार: “ब्राह्मण वही है जो “पुंस्त्व” से युक्त हो। जो “मुमुक्षु” हे. जिसका मुख्य ध्येय वैदिक विचारों का संवर्धन है। सरल, नीतिवान वेदों पर प्रेम, तेजस्वी, ज्ञानी हो और जिसका मुख्य व्यवसाय वेदों का अध्ययन और अध्यापन कार्य हे। वेदों/उपनिषदों/दर्शन शास्त्रों का संवर्धन करने वाला ही ब्राह्मण है” (शंकराचार्य विरचित विवेक चूडामणि, सर्व वेदांत सिद्धांत सार संग्रह, आत्मा-अनात्मा विवेक)

सत्य यह है कि केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं है। कर्म से कोई भी ब्राह्मण बन सकता हे यह सत्य है।

इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में मिलते हे। ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे। ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे। सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे। राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए। पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए |
विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने। हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए। क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया वहीं शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए। इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं। मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने। ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ।
त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे। विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया। विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया।
विदुर दासी पुत्र थे तथापि वे ब्राह्मण हुए।
उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया।

डॉ. अजय शुक्ला: जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। कोई संदेश!

विपुल जी: आपको धन्यवाद। आप मेरे उद्देश्य को यानी सनातन के प्रचार प्रसार को पंख देने का कार्य कर रहे हैं। किसी भी प्रश्न के लिए आपका स्वागत है!

ब्राह्मण की यह कल्पना व्यावहारिक है कि नहीं यह अलग विषय है किन्तु भारतीय सनातन संस्कृति के हमारे पूर्वजो व ऋषियो ने ब्राह्मण की जो व्याख्या दी है उसमे काल के अनुसार परिवर्तन करना हमारी मूर्खता मात्र होगी। राजनीति के कारण सनातन को बदनाम कर दिया गया। वास्तव में वेदों उपनिषदों से दूर रहने वाला और ऊपर दर्शाये गुणों से अलिप्त व्यक्ति चाहे जन्म से ब्राह्मण हों या न हों लेकिन ऋषियों को व्याख्या में वह ब्राह्मण नहीं है।
अतः आओ हम हमारे सनातन के कर्म और संस्कार तरफ वापस बढ़े।