28 साल जेल में रहने के बाद रिहा होगा शख्स:सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अपराध के वक्त नाबालिग था

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(www.arya-tv.com) सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फांसी की सजा पाए एक शख्स को रिहा करने का आदेश दिया। नारायण चेतनराम चौधरी नाम का ये शख्स पिछले 28 साल से पुणे की यरवडा जेल में बंद है। कोर्ट ने पाया कि अपराध के समय शख्स नाबालिग था, लेकिन उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाकर सजा सुनाई गई थी। जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने सुनवाई के बाद शख्स को तुरंत रिहा करने के आदेश दिए।

5 महिलाओं और 2 बच्चों का किया था मर्डर
नारायण चेतनराम चौधरी नाम के इस शख्स ने अपने दो साथियों के साथ पुणे में अगस्त 1994 में पांच महिलाओं और दो बच्चों का मर्डर किया था। उसे सितंबर 1994 में राजस्थान से गिरफ्तार किया गया था।

पुणे जज की जांच में हुई नाबालिग होने की पुष्टि
रिव्यू पार्टीशन खारिज होने के बाद आरोपी ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत एप्लिकेशन लगाई। इसमें दावा किया गया कि अपराध के समय वो नाबालिग था। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत किसी नाबालिग को मौत की सजा नहीं दी सकती। उन्हें अधिकतम 3 साल की ही सजा दी जा सकती है।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के मुख्य जिला एवं सेशन जज को चेतन की उम्र की जांच करके रिपोर्ट भेजने को कहा। इस रिपोर्ट में पाया गया कि अपराध के समय चेतन नाबालिग था। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने चेतन को रिहा किया।

पुलिस ने 20 साल बताई थी उम्र
​​​​​​​चार्टशीट में पुलिस ने दावा किया था कि अपराध के वक्त आरोपी की उम्र 20 साल थी, वहीं उसके डेट ऑफ बर्थ सर्टिफिकेट के मुताबिक उसकी उम्र 12 साल 6 महीने थी। दरअसल, सर्टिफिकेट पर उसका नाम निरानाराम लिखा हुआ था। इसी वजह से उसकी असली उम्र को लेकर कन्फ्यूजन था।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कुछ सरकारी डॉक्यूमेंट्स में उसका नाम निरानाराम और कुछ में नारायण लिखा हुआ था। लेकिन वह हमेशा अपने नाम के पीछे अपने पिता का नाम लगाता था। सुप्रीम कोर्ट अंत में इस नतीजे पर पहुंचा कि आरोपी का असली नाम निरानाराम है और अपराध के वक्त वो नाबालिग था। इसी के आधार पर कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया।