राहुल के बयान के बाद वरुण के नए रास्ते:अखिलेश की तारीफ कर नया विकल्प खोला

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(www.arya-tv.com) “मैं वरुण गांधी से प्यार से मिल सकता हूं, उन्हें गले लगा सकता हूं, मगर उस विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकता।” वरुण गांधी को लेकर ये शब्द भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कहे। राहुल के इन शब्दों ने वरुण के कांग्रेस में जाने की चर्चाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

राहुल ने वरुण को गले लगाने की बात कहकर पारिवारिक सौम्यता तो दिखाई पर विचारधारा को सामने लाकर पार्टी में जगह देने की बात को नकारते हुए नजर आए। राहुल का बयान आने के बाद बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि वरुण राजनीतिक रूप से क्या फैसला लेंगे? क्या अभी वह 2024 के चुनाव तक भाजपा में अपनी जिम्मेदारी की प्रतीक्षा करेंगे? कांग्रेस के प्रति नरम रवैया जारी रखेंगे, जिससे परिवार से जुड़ने का रास्ता खुला रहे। या किसी और विकल्प पर जाएंगे?

हालांकि, इन सब मामलों में जब वरुण से बात की गई, तो उन्होंने स्पष्ट तौर से कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।

नाना नेहरू की नीतियों की तारीफ की

वरुण गांधी पिछले कुछ दिनों से नेहरू और गांधी की बात कर कांग्रेस के प्रति नरमी बरतते हुए दिखाई दे रहे हैं। 16 जनवरी को पीलीभीत में खुद की तुलना नेहरू से करते हुए नजर आए। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था, “देश को नफरती लोग नहीं चाहिए, देश को जोड़ने वाले चाहिए”। उनके इस बयान को राहुल के विचारों से जोड़कर देखा गया था।

  • अखिलेश को किसानों का मददगार बताया

    वरुण ने पिछले दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तारीफ की थी। उन्होंने कहा, “मैं किसानों की आत्महत्या के मामले में कुछ करना चाहता था। मैं पूरा प्रदेश घूम रहा था, उस समय अखिलेश यादव की सरकार थी, मैंने उन्हें पत्र लिखा, अखिलेश यादव ने बड़ा मन दिखाया उन्होंने अधिकारियों को किसानों का डेटा उपलब्ध करवाने के लिए कहा। अखिलेश ने परेशान किसानों कमी मदद भी की।”

    पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश की तारीफ से सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या वरुण ने यूपी में दूसरा विकल्प तलाश लिया है। हालांकि, इसका फैसला भविष्य तय करेगा।

    किसान बिल और अग्निवीर के खिलाफ खड़े हुए

    तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन हुआ तो वरुण खुलकर किसानों के समर्थन में उतर गए। इस मुद्दे पर वो अपनी ही सरकार को घेरने लगे। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गन्ने का समर्थन मूल्य चार सौ रुपए करने की मांग करते हुए पत्र लिखा। जब गन्ने के मूल्य में 25 रुपए की बढ़ोतरी हुई, तो उसे 50 रुपए प्रति क्विंटल करने का पत्र लिख दिया।

    इसके बाद से वरुण लगातार अपने क्षेत्र में किसानों के सम्मेलन कर रहे हैं। वह खुद को किसान नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही वह युवाओं से भी कनेक्ट हो रहे हैं। अग्निवीर भर्ती का विरोध कर चुके हैं और युवाओं को नौकरी न मिलने पर लगातार केंद्र और राज्य सरकार को घेर रहे हैं।

    कैसे फायर ब्रांड वरुण अपनी ही पार्टी के विरोधी होते चले गए
    वरुण गांधी ने वर्ष 1999 में राजनीति में एंट्री की वे अपनी मां मेनका के चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक मैदान में उतरे। तेज तर्राक और युवा नेता ने अपने तेजस्वी भाषण से लोगों के दिलों में जगह बनाना शुरू किया। बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने 16 फरवरी, 2004 को मेनका गांधी और वरुण को पार्टी की सदस्यता दिलाई। भाजपा ने मेनका गांधी और वरुण को साथ लाकर यह संदेश दिया कि देश की राजनीति केवल गांधी परिवार से नहीं चलेगी, उनके पास भी नेहरू-गांधी खानदान के वारिस हैं।

    इसके बाद बीजेपी ने मेनका को पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से चुनाव में उतारा। वरुण गांधी ने पूरी तरह से मां का चुनाव प्रचार संभाला। राम मंदिर और हिंदुत्व के नाम पर लड़ रही बीजेपी के लिए वरुण ने भी कट्‌टर हिंदुत्व का कार्ड खेला। 2004 में राहुल गांधी भी पहली बार चुनाव लड़ रहे थे।

    राजनीतिक प्लेटफार्म पर दोनों गांधी की तुलना की जाने लगी। चुनाव में पीलीभीत से मेनका गांधी जीतीं और अमेठी से राहुल गांधी जीतकर संसद पहुंचे। इस चुनाव में वरुण गांधी की एक कट्‌टर हिंदू नेता के रूप में अलग छवि सामने आई।