निजीकरण और कर्मचारियों की सेवा शर्तों को लेकर गुमराह कर रहा है पावर कारपोरेशन प्रबन्धन

Lucknow
  • निजीकरण और कर्मचारियों की सेवा शर्तों को लेकर गुमराह कर रहा है पावर कारपोरेशन प्रबन्धन : लगभग 68 हजार कर्मचारियों पर लटकी छटनी की तलवार

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने निजीकरण को लेकर पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया है। संघर्ष समिति ने कर्मचारियों की सेवा शर्तों को लेकर भी पावर कारपोरेशन पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए आंकड़े देकर बताया कि वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण कम्पनियों के निजीकरण से कर्मचारियों के लगभग 68000 पद समाप्त हो जायेंगे और इन कर्मचारियों की छटनी होगी। संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, शशिकांत श्रीवास्तव,  चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह ने कहा कि अरबों-खरबों रूपये की विद्युत वितरण कम्पनियों की परिसम्पत्तियाँ कौड़ियों के मोल बेची जा रही हैं और पावर कारपोरेशन कह रहा है कि निजीकरण नहीं हो रहा है, मात्र निजी क्षेत्र की भागेदारी हो रही है।

उन्होंने कहा कि पावर कारपोरेशन के चेयरमैन कह रहे हैं कि निजीकरण नहीं होगा, निजी भागेदारी होगी जिसमें 51 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी कम्पनी की होगी। निजी कम्पनी का प्रबन्ध निदेशक होगा और चेयरमैन सरकार का कोई अधिकारी होगा। संघर्ष समिति ने सवाल किया कि नोएडा पावर कम्पनी, दिल्ली और उड़ीसा की सभी विद्युत वितरण कम्पनियों में भी निजी क्षेत्र की 51 प्रतिशत और सरकार की 49 प्रतिशत भागेदारी है। नोएडा पावर कम्पनी में भी प्रबन्धन निदेशक निजी कम्पनी का है और चेयरमैन सरकार का अधिकारी होता है। पावर कारपोरेशन प्रबन्धन यह बताये कि नोएडा पावर कम्पनी निजी कम्पनी नहीं है तो और क्या है? संघर्ष समिति ने कहा कि ऐसा लगता है कि पावर कारपोरेशन प्रबन्धन उन निजी घरानों के प्रवक्ता की तरह काम कर रहा है जिन्हें पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण कम्पनियाँ सौंपने की बात है। संघर्ष समिति ने यह सवाल भी किया कि भारत सरकार ने सितम्बर 2020 में वितरण कम्पनियों के निजीकरण का ड्राफ्ट बिडिंग डाक्यूमेंट जारी किया था जिसे अभी अन्तिम रूप नहीं दिया गया है तो प्रबन्धन यह बताये कि जब बिडिंग डाक्यूमेंट फाईनल ही नहीं हुआ है तब वाराणसी और आगरा डिस्कॉम का निजीकरण किस बिडिंग डॉक्यूमेंट के आधार पर किया जा रहा है।

कर्मिकों की सेवा शर्तों के बारे में गुमराह करने का आरोप लगाते हुए संघर्ष समिति ने बताया कि वाराणसी विद्युत वितरण निगम में 17330 और आगरा विद्युत वितरण निगम में 10411 नियमित कर्मचारी एवं उक्त दोनों निगमों में 50000 संविदा कर्मी कार्य कर रहे हैं। नियमित कर्मचारी निजी कम्पनी की नौकरी में जाना स्वाकार नहीं करेंगे और संविदा कर्मियों को निजी कम्पनी लेगी नहीं तो इन 68000 कर्मचारियों के सामने नौकरी जाने का संकट है कि नहीं? पावर कारपोरेशन प्रबन्धन का यह कहना है कि कर्मचारियों की पदोन्नति प्रभावित नहीं होगी यह कहना सरासर झूठ है। संघर्ष समिति ने बताया कि दोनों वितरण निगमों में 07 मुख्य अभियन्ता स्तर-1, 33 मुख्य अभियन्ता स्तर-2, 144 अधीक्षण अभियन्ता, 507 अधिशासी अभियन्ता, 1523 सहायक अभियन्ता और 3677 अवर अभियन्ता एवं लगभग 12000 नियमित कर्मचारी और 50000 संविदा कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि जब निजीकरण के बाद मुख्य अभियन्ता से अवर अभियन्ता एवं विभिन्न स्तर के कर्मचारी एवं संविदा कर्मियों के इतने पद समाप्त हो जायेंगे तो पदावनति और छटनी के अलावा क्या रास्ता रह जायेगा।
संघर्ष समिति ने कहा कि अनेक कर्मचारी निजी कम्पनियों की नौकरी छोड़कर पॉवर कारपोरेशन में आये हैं उन्हें निजी कम्पनी में भेजना एक भद्दा मजाक है। जहां तक वी.आर.एस. देने का प्रश्न है तो संघर्ष समिति ने कहा कि कर्मचारी काम करने आये हैं वी.आर.एस. के सहारे उनका और उनके परिवार का जीवन चलने वाला नहीं है। संघर्ष समिति ने कहा कि बिजली कर्मी किसी भी कीमत पर निजीकरण स्वीकर नहीं करेंगे।