- विपुल लखनवी नवी मुंबई
चुनाव के दौर में वोटो के ध्रुवीकरण के लिए तमाम तरह की बातें विभिन्न मीडिया और नेट पर दिखाई दे रही है इसमें एक यह भी है कि क्या भारतीय मुस्लिम वास्तव में भारत में वैध है या अवैध है। इस विषय पर चलिए कुछ विचार करते हैं।
भारत के संविधान निर्माता और जिनके नाम पर बेहद राजनीति की जाती है जिनको अर्वाचीन मनु के नाम से भी जाना जाता है डा.बी.आर.अम्बेडकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Pakistan Or Partition of India में भी कहीं नहीं लिखा है कि धार्मिक आधार पर हो रहे देश विभाजन के बाद किसी भी मुसलमान को अपनी चॉइस का यह अधिकार होगा कि वह चाहे तो पाकिस्तान जाये और चाहे तो भारत में रुके रहे। श्री अम्बेडकर ने तो यहाँ तक कहा था कि यदि एक भी मुसलमान भारत में रहता है तो यह पार्टीशन के नियमों का उल्लंघन होगा।
15 अगस्त 1947 को रात के 12 बजे स्वतंत्रता और देश विभाजन की घोषणा होते ही भारत में रहने वाले सभी मुसलमान पाकिस्तानी नागरिक हो गये थे। चूंकि देश का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था और मुसलमानों की मांग पर उनके लिए पाकिस्तान बनाया गया था जबकि बाकी हिन्दुस्तान हिन्दुओं के लिए माना गया था।
मुसलमानों की जनसंख्या के आधार पर एक तिहाई भूभाग और एक तिहाई खजाना भी उनको दिया गया था। जिसके लिए महात्मा गांधी ने आमरण अंतिम तक किया था। खजाना प्राप्त करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट ऐक्शन द्वारा बीस लाख हिन्दुओं का नरसंहार भी कराया था।
बनाये गये पाकिस्तान को छोड़कर केवल 72 लाख मुसलमान भारतीय भूभाग से गये थे और लगभग तीन करोड़ मुसलमान अपने जमीन मकान आदि बेचकर पाकिस्तान जाने की तैयारी कर रहे थे कि गांधी महात्मा ने अपने मुस्लिम प्रेम के वश प्रोपेगेंडा फैलाया कि जो मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान जा सकते हैं और जो भारत में रहना चाहे वे भारत में रह सकते हैं।
हालांकि गांधी महात्मा की इस उद्घोषणा का कोई आधिकारिक या वैधानिक महत्व नहीं था क्योंकि गांधी किसी सरकारी पद पर नहीं थे। परन्तु मुसलमानों ने मान लिया कि गांधी तो राष्ट्रपिता हैं इसलिए उनकी बात तो संविधान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। इसलिए तीन करोड़ मुसलमान भारत में ही रुक गये।
ध्यान देने की बात है कि इन्डिपैन्डैन्स एक्ट या पार्टिशन डीड या पार्टिशन के नियमों में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि मुसलमान चाहे पाकिस्तान जाए या भारत में रुकना चाहे तो भारत में रुकवायेंगे! यह विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था और बीस लाख हिन्दुओ की कुर्बानी के बाद हुआ था। इस लिए किसी भी मुसलमान को भारत में रुकने का कोई अधिकार नहीं था।
नेहरू की लोकप्रियता उस समय शून्य हो गयी थी और सरदार पटेल के प्रधानमंत्रित्व के अधिकार को गांधी से मिलीभगत करके उन्होंने धूर्तता से हड़प लिया था। इसलिए उन्हें लग रहा था कि हिन्दू उन्हें वोट नहीं देंगे और प्रधानमंत्रित्व कायम रखना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए मुसलमानों को अपना वोट बैंक बनाकर देश में रोकना सही कूटनीति समझी गई। वहीं सरदार पटेल ने मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने के लिए बारबार उकसाया, यहाँ तक कि जिन्ना ने भी सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने के लिए कई बार सन्देश भेजा, लेकिन नेहरू ने अपने निहित स्वार्थ के वश किसी की भी बात पर ध्यान नहीं दिया और तीन करोड़ मुसलमानों को भारत में रोके रखा।
जब सम्विधान का लिखना पूरा होने को आया और चुनाव होना निकट आ गया, तब नेहरू को ध्यान आया कि मेरे मुसलमान वोटर तो भारत के नागरिक ही नहीं रहे हैं, तो ये वोट कैसे कर पाएंगे? कोई भी विपक्षी पार्टी या चुनाव आयोग मुसलमानों के वोट करने पर अडंगा डाल सकते हैं तो फिर क्या होगा? तो फिर उसने कूटनीति का आश्रय लिया। उस समय तक सरदार पटेल और जिन्ना का देहावसान हो चुका था। इसलिए उसकी कूटनीति की सफलता में कोई रुकावट नहीं रही थी। उसने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान से फोन पर मंत्रणा की और उसे दिल्ली बुलाया।
8 अप्रैल 1950 को दोनों ने एक समझौता किया, जिसे “नेहरू लियाकत अली खान पैक्ट” के नाम से इतिहास में दर्ज किया गया है। उस पैक्ट में सबसे पहली टर्म है कि दोनों देशों में विभाजन के बाद जो अल्पसंख्यक रुके रह गए हैं उन्हें नागरिकता देने और उनकी जानमाल की रक्षा अपने अपने देश में दोनों देश करेंगे।
■देखिए सही शब्द एक्जैक्ट वर्डिंग क्या है ?
“The governments of India and Pakistan solmnly agree that each shall ensure, to the minorities throughout it’s territory compelet equality of citizenship irrespective of religion, a full sense of security in respective of life culture…”
इस प्रथम टर्म से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि विभाजन के बाद से 08-04-1950 तक मुसलमान भारत के नागरिक नहीं थे, और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह बात है कि इस पैक्ट के बाद भारत सरकार के द्वारा मुसलमानों को विधिवत नागरिकता दी गयी हो इस का कोई ऐतिहासिक रिकार्ड या प्रमाण नहीं मिलता है। न तो किसी आर्डीनैन्स के द्वारा मुसलमानों को सामूहिक नागरिकता दी गई और न ही व्यक्तिगत रूप से मुसलमानों को नागरिकता दी गयी। यह सिर्फ और सिर्फ एक कागजी अधूरा मसौदा ही रह गया। वास्तव में वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार 2014 तक भारत में रहने वाले मुसलमान को भारतीय नागरिकता देकर उनको वास्तविकता में नागरिक बनाएगी।
( नेट के विभिन्न स्रोतों से साभार)