किसानों को रुला रहा प्याज… निर्यात नहीं होने से घटे दाम, विदेशों से भी नहीं हो रही खरीददारी

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(www.arya-tv.com) थोक मंडियों में प्याज के दाम में लगातार गिरावट का दौर जारी है। इंदौर की थोक मंडी में गत दिवस प्याज 600 से 800 रुपये क्विंटल के दाम पर बिके। कमजोर दाम किसानों की नाराज और निराश कर रहे हैं। किसानों की घबराहट इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि 15 अप्रैल से प्याज की आवक और बढऩे वाली है।

प्याज उत्पादक किसान नाराज हैं, क्योंकि लागत भी नहीं निकल रही है। व्यापारी कह रहे हैं कि पड़ोसी देशों की परिस्थितियां देश की मंडियों में प्याज के गिरते दामों की वजह है। किसान संघ प्याज के घटे दामों के लिए सरकार की नीतियों की जिम्मेदार बता रहे हैं। फरवरी में इंदौर थोक मंडी में प्याज के दाम 1300 क्विंटल तक थे। यानी दो महीने में दाम में 500 रुपये क्विंटल की गिरावट आ चुकी है।

प्याज उत्पादक किसानों के अनुसार उत्पादन लागत ही 1200 रुपये क्विंटल है। ऐसे में प्याज कम से कम 1500 रुपये के दामों पर बिकेगा तब ही किसानों की लागत निकलकर कुछ आय हो सकेगी। भारतीय किसान संघ के महानगर अध्यक्ष दिलीप मुकाती के अनुसार 15 अप्रैल से मालवा-निमाड़ में प्याज की आवक बढ़ेगी। दो साल से किसान-व्यापारी घाटे में हैं। केेंद्र की गलत नीतियां इसकी वजह है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शिष्टाचार भेंट करते हुए।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब सरकार प्याज की खरीदी करीगी, क्योंकि सरकार को खरीदी करना है इसलिए वह खुद दाम बढऩे देना नहीं चाहती। निर्यात नीति भी अस्थिर है। देश और विदेश के व्यापारियों में डर है कि सरकार अचानक रातों-रात निर्यात प्रतिबंधित कर सकती है।

अन्य देशों के व्यापारी एडवांस सौदे भी नहीं कर रहे। इंदौर आलू-प्याज व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष ओमप्रकाश गर्ग के अनुसार विदेशी असर प्याज के गिरते दामों की खास वजह है। श्रीलंका, बांग्लादेश भारतीय प्याज के बड़े खरीददार हैं। श्रीलंका के आर्थिक हालत बिगडऩे से वहां निर्यात नहीं हो रहा। बांग्लादेश से भी मांग नहीं है, क्योंकि वहां स्थानीय प्याज है।

निर्यात मांग नहीं निकलने और उपलब्धता अच्छी होने से दामों में गिरावट आ रही है। हालांकि उम्मीद है कि 15 दिन बाद बांग्लादेश से भाग निलने लगेगी। कुछ व्यापारी बता रहे हैं कि बीते वर्षों में श्रीलंका-नेपाल भेजे गएप्याज के रुपयों का भुगतान अब भी अटका हुआ है। इस अविश्वास से भी निर्यात घटा है।