धार्मिक स्थलों के प्रबंधन से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ऐसी अर्जी लगाएं, जिसमें दम हो

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(www.arya-tv.com) सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों द्वारा धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रखरखाव का अधिकार देने की मांग वाली जनहित याचिका बुधवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर सुनवाई के लिए विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि यह मामला विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और अदालत इसमें प्रवेश नहीं करना चाहेगी।

उनकी याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘मिस्टर उपाध्याय, एक उचित याचिका दायर करें। ये प्रार्थनाएं क्या हैं? क्या ये राहतें दी जा सकती हैं? इस याचिका को वापस लें और उन प्रार्थनाओं के साथ एक याचिका दायर करें जिन्हें मंजूरी दी जा सकती है। ऐसी याचिका जिसमें कुछ दम हो। यह सभी प्रचार-उन्मुख मुकदमे हैं। यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।’

यह याचिका शीर्ष अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि मुसलमानों,पारसियों और ईसाइयों की तरह ही हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रखरखाव का अधिकार दिया जाना चाहिए।

इस जनहित याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती के लिए एक समान संहिता की भी मांग की थी। उन्होंने देश भर में हिंदू मंदिरों पर सरकारी अधिकारियों के नियंत्रण का हवाला दिया था। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 26 के तहत प्रदत्त संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार सभी समुदायों के लिए एक प्राकृतिक अधिकार है, लेकिन हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों को इस विशेषाधिकार से वंचित कर दिया गया है। देश भर में लगभग नौ लाख हिंदू मंदिरों में से लगभग चार लाख सरकारी नियंत्रण में हैं।

उपाध्याय की याचिका के अलावा, शीर्ष अदालत ने इसी तरह के निर्देश की मांग करने वाली हिंदू संत स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती की याचिका पर भी विचार करने से इनकार कर दिया।