महात्मा गांधी की पुण्यतिथि आज, काशी में बापू ने स्थापित किया अखंड भारत का मंदिर

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(www.arya-tv.com) विश्वविख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियां शायद मुश्किल से ही विश्वास कर सकेंगी कि महात्मा गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा। वह कथन आज भी सत्य प्रतीत होता है। साबरमती के संत, राष्ट्रपिता, बापू हर नाम हर स्वरूप अपने आप में अनोखा है। मोहनदास से बापू की यात्रा ने विश्व को शांति और अहिंसा का जो हथियार दिया है वह आज भी प्रासंगिक है। 

सत्य को जीवन का अंग बनाने वाले बापू ने बनारस में जब भी कदम रखा हर बार कुछ न कुछ महत्वपूर्ण हुआ। बापू के प्रथम काशी आगमन को 118 साल से अधिक का समय बीत चुका है। पूरे जीवन काल में 11 बार काशी आए और काशी में हर बार कुछ न कुछ जरूर बदला। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर श्रद्धानंद ने बताया कि 22 फरवरी 1902 को पहली बार काशी आए थे। जब वह श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करने पहुंचे तो उन्हें अव्यवस्थाओं और गंदगी से दो चार होना पड़ा। उन्होंने अपनी किताब में लिखा था कि जिस जगह पर लोग ध्यान और शांति के माहौल की उम्मीद करते हैं वहां यह बिल्कुल नदारद है। 

इसी यात्रा में उन्होंने एनी बेसेंट से मुलाकात की जो उन दिनों काशी में रहती थीं। बापू जब बनारस आए तो एनी बेसेंट बीमार थीं लेकिन जब उन्हें पता चला कि गांधी जी उनसे मिलना चाहते हैं तो बीमारी की हालत में भी उन्होंने बापू से मुलाकात की। अंतिम बार बापू बीएचयू के रजत जयंती समारोह में 21 जनवरी 1942 को काशी आए थे। महोत्सव में भाग लेने के बाद वह कांग्रेसजनों से बातचीत में जल्द दोबारा आने का आश्वासन देकर विदा हुए लेकिन इसके बाद उनका अस्थि कलश ही काशी आया।
 
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में गांधी अध्ययन पीठ के निदेशक प्रो. संजय ने बताया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की काशीयात्रा हर मायने में यादगार रही। बापू जब भी काशी आए वह दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। बापू की 11वीं काशी यात्रा तो ऐतिहासिक रही। अक्तूबर 1936 में राष्ट्रपिता ने इस यात्रा में अखंड भारत की संकल्पना का प्रतीक भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया।

काशी विद्यापीठ के वाणिज्य संकाय के प्रो. अजित कुमार शुक्ला ने बताया कि 25 अक्तूबर 1936 को भारत माता मंदिर के उद्घाटन समारोह में बापू ने कहा था इस मंदिर में भारत माता से प्रेम करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत होगा और यहां अपनी सामर्थ्य तथा विश्वास के अनुरूप आराधना कर सकेंगे। उन्होंने आगे कहा जिस माता ने हमें जन्म दिया, वह कुछ ही वर्ष जीवित रहेंगी, किंतु धरती माता तो सदैव हैं। यदि वह नहीं हैं तो हम भी नहीं हैं। उद्घाटन समारोह में खान अब्दुल गफार खां, सरदार पटेल, शिवप्रसाद गुप्त, भगवान दास समेत राष्ट्रीय आंदोलन के कई दिग्गज मौजूद थे। देश के विभिन्न प्रांतों से 35 हजार लोग यहां आए थे।
 
आचार्य कृपलानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय छोड़कर काशी विद्यापीठ में आचार्य बने। उसी यात्रा के बीच उन्होंने गांधी जी से पूछा कि आगे क्या करना है। गांधी ने कहा कि कहीं बैठ जाओ और चरखे का काम संगठित रूप से करो। गांधी जी की प्रेरणा पर आचार्य कृपलानी ने काशी से खादी एवं चरखे के संस्थागत संगठित आंदोलन की शुरूआत करते हुए देश की पहली खादी संस्था श्री गांधी आश्रम की नींव रखी।