भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू, जान लें पूरा इतिहास

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लखनऊ। भगवान जगन्नाथ की 9 दिनों तक चलने वाली रथ यात्रा की गुरुवार से शुरूआत हो रही है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडीचा मंदिर जाएंगे। यहां सात दिनों तक विश्राम के बाद वह वापस जगन्नाथ पुरी लौटेंगे।

भगवान जगन्नाथ विष्णु के पूर्ण कला अवतार श्रीकृष्ण के ही एक रूप माने जाते हैं। 9 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में तीन विशाल रथ होते हैं, जिसे भगवान के भक्त खींचते हैं।

कहा जाता है कि भगवान साल में एक बार अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए बाहर निकलते हैं। इस यात्रा में तीन रथ बनाए जाते हैं जिसमें एक भगवान जगन्नाथ, दूसरा बलराम और तीसरा सुभद्रा के लिए होता है।

भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है, जिसमें 18 पहिए लगे होते हैं। इसे ‘गरुड़ध्वज’ भी कहा जाता है। यह रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है, जो लाल और पीले रंग के कपड़े से ढंका होता है। भगवान जगन्नाथ के सारथी का नाम मातली है।

बलराम के रथ का नाम तालध्वज है, जिसकी ऊंचाई 45 फीट है, जिसमें 14 पहिए होते हैं। यह लाल और हरे कपड़े से ढंका रहता है। बलराम के सारथी का नाम सान्यकी है।

बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन है, जो 44.6 फीट ऊंचा होता है और उसमें 12 पहिए होते हैं। यह लाल और काले रंग के कपड़े से ढंका रहता है। देवी सुभद्रा के सारथी का नाम अर्जुन है।

सभी रथ नीम की लकड़ियों से बनाए जाते हैं, इनको दारु कहा जाता है। रथ के निर्माण में कील या किसी धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। नीम की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी से शुरू होती है और अक्षय तृतीया से रथ निर्माण शुरू होता है।

भगवान जगन्नाथ का बहुत बड़ा मन्दिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। इस शहर का नाम जगन्नाथ पुरी से निकल कर पुरी बना है। यहाँ वार्षिक रूप से रथ यात्रा उत्सव भी आयोजित किया जाता है। पुरी की गिनती हिन्दू धर्म के चार धाम में होती है।