क्या राम का नाम ही जग तारक है? और देव नहीं !

Lucknow

आर्य tv.com ने रामलला की स्थापना के 11 दिन पूर्व राम के विभिन्न “आयामों का ज्ञान” श्रृंखला आरंभ की है। इस श्रृंखला में योग क्या होता है?, भगवान राम का योग से क्या संबंध है?, राम मंदिर के द्वारा, जगत का कल्याण और उत्थान कैसे?, ब्रह्म के क्या अर्थ है क्या राम ब्रह्म है?, नरेंद्र मोदी योगी या भोगी! एक साक्षात्कार!, रामलला स्थापना और नरेंद्र मोदी के आंसू: आध्यात्मिक या राजनीति!,‌ शंकराचार्य से लेकर राम मंदिर तक विवाद क्यों? राजनीति या पद लोलुपता? राम मंदिर से विश्व शांति कैसे संभव है? एक चिंतन साक्षात्कार! क्या राम ब्रह्मचारी और संन्यासी हैं? जी हैं पर कैसे? राम आदि पुरुष कैसे? विषयों पर पूर्व परमाणु वैज्ञानिक, सनातन चिंतक व शोधक विपुल लखनवी के लिए थे। जिस पर तमाम पाठकों की प्रक्रियाएं मिलती रहती हैं। आर्य टीवी ने यह भी निर्णय लिया है कि अब 1 नवंबर को होने वाली पौराणिक दीपावली तक भारतीय सनातन में राम और राम मंदिर के महत्व को जनमानस तक पहुंचाने हेतु निरंतर लेख साक्षात्कार कविताएं इत्यादि छापती रहेगी। संपादक

इसी श्रृंखला में पत्रकार डॉ. अजय शुक्ला ने राम के विषय में और अधिक शोध व जानकारी के लिए संकल्प लिया है। पूर्व परमाणु वैज्ञानिक, सनातन चिंतक विचारक विपुल जी का साक्षात्कार लिया है। जो अपने ट्रस्ट गर्वित के माध्यम से वेब चैनल और ब्लॉग के द्वारा सनातन की गहराई और हिंदुत्व की ऊंचाई को आधुनिक विज्ञान के माध्यम से जनमानस तक पहुंचाने का बीड़ा उठाए हुए हैं।

डॉ.अजय शुक्ला : सर आजकल राम नाम का शोर बहुत हो रहा है क्या और देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए? क्या केवल राम का नाम ही तारक है?

विपुल जी: अजय जी आपने यह बहुत अच्छा प्रश्न किया! वास्तव में इस सृष्टि की उत्पत्ति नाद से मानी जाती है यानी ध्वनि। जब निराकार सुप्त ऊर्जा में ओम का नाद हुआ या बैंग हुआ या ईशतहास्य हुआ कुछ भी कहें वह ध्वनि ही थी। ओम का एक अक्षर था। इस कारण अक्षर ब्रह्म कहा जाता है। हम एक दूसरे से विचारों का आदान-प्रदान भी इस शब्द के माध्यम से करते हैं जो अक्षर हैं। दूसरा अर्थ अ धन क्षर यानी कभी भी क्षीण न होने वाला।

अब हमें अपने को जानने के लिए हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है अंतर्मुखी होना होगा। इसमें कई पद्धतियां है जिन पर मैंने विस्तार से लिखा है उनमें एक मुख के द्वारा मंत्र जाप है। आप किसी भी शब्द का जाप करें समय कामयाबी हो सकता है आप अंतर्मुखी हो सकते हैं। लेकिन जो शब्द सिद्ध हो चुका होता है अर्थात कई और लोग उसे शब्द के द्वारा अंतर्मुखी होकर ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त कर चुके होते हैं उसका जप करने से हम जल्दी अंतर्मुखी हो जाते हैं। राम एक शब्द है निराकार उसका वास्तविक स्वरूप है। इसी भांति हमारे भावों का और शक्ति का विभिन्न शब्दों के द्वारा ग्रहण किया जाता है। इसलिए आप किसी भी देव की आराधना करें सब एक समान है न कोई मंत्र छोटा है न कोई बड़ा है यह आपका भाव है कि आप किसके प्रति अधिक श्रद्धा रखते हैं। क्योंकि आत्मा की अनंत यात्रा में हम किस जन्म में किस देव की आराधना करती आए हैं और इस जन्म में उसे देव के प्रति हमारा लगाव जन्म से हो जाता है वह हमारा इष्ट देव बन जाता है।

सनातन में अंतर्मुखी होने के पांच मार्ग बताएं। वैष्णव मार्ग जिसमें कृष्ण के अथवा नारायण के सभी अवतारों का चिंतन मनन और ध्यान होता है। राम जी इसी मार्ग के एक शब्द रूपी देव हैं। जो कालांतर में साकार रूप में भी स्थापित होते रहते हैं। शैव शिव की मानने वालों का मार्ग है। शाक्त शक्ति और दत्तात्रेय महाराज का मार्ग है। स्मार्त जो सभी को मानते हैं। यह सभी सगुण, साकार, और नवधा भक्ति के मार्ग हैं। यानी द्वैत है। वैदिक मार्ग निराकार अद्वैत मार्ग है।
आदिकाल में कुछ अज्ञानी मूर्ख आपस में इसी मार्ग में मतभेद कर लड़ते भी रहे हैं और आज भी अपनी मूर्खता दिखाकर लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं।

डॉ.अजय शुक्ला : जी ठीक है हमने एक मार्ग पकड़ लिया इसके आगे क्या?

विपुल जी : मैंने पहले भी बताया है अंतर्मुखी होने की विधियां। हमारी ऊर्जा जिस मार्ग से बाहर निकलती है हम उस मार्ग से अंतर्मुखी हो सकते हैं। आंख से त्राटक कान से शब्द ब्रह्म नाक से विपश्यना का मार्ग और मुख से मंत्र जाप व खेचरी। यह आपके ऊपर है। आप किसको ग्रहण करते हैं।

डॉ.अजय शुक्ला : जी, मैं अल्पज्ञ हूं। आप और विस्तार से बताएं!

विपुल जी : इसी सन्दर्भ में याज्ञवल्क्य संहिता की यह पंक्ति भी उल्लेखनीय है:-
पूर्णःपूर्णावतारश्चश्यामोरामोरघूत्तमः।अंशानृसिंहकृष्णाद्याराघवोभगवान्स्वयं॥
(याज्ञवल्क्यसं., ब्रह्मसंहिता)

अजय शुक्ला : आप यह बताइए पुराणों में कहां पर वर्णन है।

विपुल जी : पुराणों में तिलक स्वरूप श्रीमद्भागवतम् में इस से सम्बद्ध कुछेक प्रसङ्ग देखें:- किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं तच्चरणसन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो हनुमान् सह।‌ किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते ॥ (श्रीमद्भा. ५।१९।१॥) अर्थात्, किम्पुरुष वर्ष में श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई आदिपुरुष, सीताहृदयाभिराम भगवान् श्री रामजी के चरणों की सन्निधि के रसिक परम भागवत हनुमान् जी अन्य किन्नरों के साथ अविचल भक्तिभाव से उनकी उपासना करते हैं।

आगे श्री शुकाचार्यमहाराज श्रीरामजी को परब्रह्म तथा सबसे परे मानते हुए छः बार ’नमः’ शब्द (षडैश्वर्य युक्त सूचित करते हुए) एवं नौ विशेषणों का प्रयोग करके यह सिद्ध किया है कि भगवान् श्री राम पूर्ण ब्रह्म हैं:-
ॐ नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय नम उपशिक्षितात्मन उपासितलोकाय नमः साधुवादनिकषणाय नमो ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति ॥ श्रीमद्भा. ०५.१९.००३।

डॉ.अजय शुक्ला : लोग कहते हैं कि शिवजी राम की आराधना करते हैं यह वृत्तांत कहां मिलता है। रामायण की बात मत कीजिएगा!

विपुल जी : काशी में श्रीराममन्त्र को शिवजी ने जपा, तब भगवान् श्रीरामचन्द्र प्रसन्न होकर बोले:-
“त्वत्तोवाब्रह्मणोवापियेलभन्तेषडक्षरम्।जीवन्तोमन्त्रसिद्धाःस्युर्मुक्तामांप्राप्नुवन्तिते॥ रा. ता. उ. ।४।७॥“ अर्थात्- हे शिवजी! आप से या ब्रह्मा से जो कोई षडक्षर-मन्त्र को लेंगे, वे मेरे धाम को प्राप्त होंगे।

अगस्त्यसंहिता, जो रामोपासना का प्राचीनतम आगम ग्रन्थ है, के १९ वें अध्याय तथा २५ वें अध्याय में भी रामोपासना का वर्णन पाया जाता है। बृहद्ब्रह्मसंहिता के द्वितीय पाद अध्याय ७, पद्म पुराण उत्तर खण्ड अध्याय २३५ तथा बृहन्नारदीयपुराण पूर्व भाग के अध्याय ३७ से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रीरामोपासना तीनों युगों में होती आयी है।

महारामायण (और ऐसे और भी ग्रन्थों में) तो स्पष्टतः- श्रीरामजी ही स्वयं भगवान् हैं ऐसा कहा है:-
“भरणःपोषणाधारःशरण्यःसर्वव्यापकः।करुणःषड्गुणैःपूर्णोरामस्तुभगवान्स्वयं॥ (महारामायण)”

डॉ.अजय शुक्ला : ठीक है। आप बताएं कि आप समाज से क्या कहना चाहेंगे।

विपुल जी : देखिए मैं आपके पाठकों से निवेदन करता हूं कि आप अपने जीवन का लक्ष्य वेदों के अनुरूप ही बनाएं। आपके जीवन का लक्ष्य होना चाहिए कि आप योग की अनुभूति कर अपने मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास करें। इस दिशा में आप अपने ईष्ट की आराधना करें। उनका सतत निरंतर निर्बाध मंत्रजप करें। यह मंत्र आपको ज्ञान से लेकर योग तक गीता से लेकर गुरु तक और वेद से लेकर ब्रह्म तक स्वयं पहुंचाने की क्षमता रखता है।

डॉ.अजय शुक्ला : आप इस विषय में क्या सहायता कर सकते हैं?

विपुल जी : यह सब प्रभु की लीला से ही होता है और मेरे इस शरीर द्वारा एक ध्यान की विधि विकसित हुई है “जिसे हम सचल मन वैज्ञानिक ज्ञान विधियां” कहते हैं। इसको यदि मनुष्य अपने घर पर ही करता है बिना किसी को गुरु बनाएं बिना कहीं भटके हुए तो उसको सनातन की शक्ति का अनुभव होता है जो आध्यात्म के मार्ग पर चलने में सहायक होता है। वैसे कोई भी प्रश्न हो जिसका उत्तर कहीं न मिल रहा हो तो मेरे मोबाइल नंबर 99696 80093 पर नि:संकोच संदेश भेज कर उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। मैं तो आपके पत्र के माध्यम से ईश्वर को न मानने वाले मनुष्य को विनम्रतापूर्वक चुनौती भी देता हूं।

डॉ.अजय शुक्ला : विपुल जी आपका बहुत-बहुत आभार। समय निकालने के लिए। आपके पास आता रहूंगा। धन्यवाद

विपुल जी: धन्यवाद।