विपुल जी से साक्षात्कार ! आखिर क्या अर्थ है सनातन के ? : डॉ. अजय शुक्ला

Lucknow

पूर्व परमाणु वैज्ञानिक, एचबीटीआई कानपुर से पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त, गर्वित ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष, सनातन चिंतक और विचारक, ब्लॉग और चैनल के माध्यम से लोगों की सनातन संबंधी प्रश्नों को शांत करनेवाले, सचलमन सरल वैज्ञानिक ध्यान विधि द्वारा लोंगो को सनातन की शक्ति का घर बैठा अनुभव करवानेवाले, श्री विपुल सेन लखनवी जी के लगभग 23 साक्षात्कार aryatv.com ने प्रकाशित किए हैं!

पत्रकार डॉक्टर अजय शुक्ला ने हर संभव यह प्रयास किया कि विपुल जी प्रश्नों पर कहीं पर अटक जाएं। लेकिंन तात्कालिक उत्तर मिलना एक अचरज करनेवाला अनुभव प्राप्त होता है।

aryatv.com पाठकों का आभारी है कि वे निरंतर संपर्क बनाए रहते हैं और विभिन्न प्रश्न पूछते रहते हैं। उन्हीं प्रश्नों को विपुल जी से पूछकर साक्षात्कार का रूप दिया जाता है।

डॉ अजय शुक्ला:  सीधे-सीधे प्रश्न करता हूं सनातन क्या है?

देवीदास विपुल: (हंसते हुए) नमस्कार शुक्ला जी। आज बहुत जल्दी में है सीधे-सीधे गोली दाग दी!

सनातन का अर्थ होता है वह न जिसका उद्गम पता है न कहां पर अंत होगा यह पता है। समय के साथ वह सिर्फ निरंतर बहता रहता है। अब यह कोई वस्तु नहीं हो सकती क्योंकि वह तो नष्ट हो जाती है।

डॉ अजय शुक्ला: तो फिर यह क्या है?

देवीदास विपुल: यह गुण और भाव के द्वारा ही समझा जा सकता है!

अग्नि चाहे कहीं पर भी हो हजारों साल से सिर्फ एक ही काम कर रही है जलाना मतलब क्या हुआ? यह कहीं से भी पैदा हो इसका रूप भी एक ही रहता है और कार्य भी एक ही रहता है। यह अग्नि का गुण हुआ जो सनातन है। इसी भांति जल और वायु भी सृष्टि का निर्माण करता है आधुनिक विज्ञान तो बोलता है इसके बिना तो सृष्टि संभव ही नहीं है तो इसका सनातन गुण क्या हुआ? आप समझ सकते हैं।

आप कुछ और आगे चले एक पेड़ ले लीजिए उसको नष्ट कर दीजिए लेकिन वह एक ही प्रकार के फूल देता रहेगा कभी अलग प्रकार के फूल वह नहीं देता है यानी उस विशेष फूल का उसे वृक्ष पर निकलना यह क्या है? सनातन है।

अब आप भाव समझिए एक छोटा बच्चा जो 6 महीने का हो उसको आप मारने वाला चाकू या तलवार दिखाइए वह उसको चूसने लगेगा। उसके अंदर कोई घृणा का भाव नहीं है कोई भी दुर्भाव नहीं है लेकिन जब वह बड़ा होता है तो बहुत से लोग धर्म के नाम पर उसको मरना मारना पीटना और कत्ल करना सिखाते हैं बच्चा बचपन से नहीं सीखता। बच्चा तो मानवीय गुण प्रेम लेकर धरती पर आया आपने उसको शैतानियत की बातें सिखाकर धर्म के नाम पर एक आतंकवादी बनाने का प्रयास किया। अब आप उस बच्चे को मार दे दूसरा भी जो बच्चा पैदा होगा, तीसरा भी पैदा होगा सबका व्यवहार एक सा रहेगा मतलब वह आनंद में रहेगा तो आनंद क्या है? सनातन है!

हमारी भारतीय संस्कृति साहित्य में आत्मा को अजर और अमर कहा गया है जो परमात्मा का अंश है इसलिए वह क्या है सनातन है।

आप मानव संस्कृति को नष्ट कर दीजिए लेकिन जो भी मानव पैदा होगा वह जब बच्चा होगा तो उसके अंदर सिर्फ और सिर्फ प्रेम का भाव रहेगा। और यह बात आप किसी भी जीव के बच्चों में देख सकते हैं। इसी भाव का इसी गुण का फायदा उठाकर लोग भयंकर से भयंकर जानवर को भी पालतू बना लेते हैं!क्योंकि यह सनातन है। मतलब क्या हुआ आनंद और प्रेम यह मनुष्य का मूल स्वरूप है जो वह अपने साथ लेकर इस धरती पर आता है।

डॉ अजय शुक्ला: फिर हिंदू में और सनातन में क्या संबंध है?

देवीदास विपुल: भारतीय प्राचीन ज्ञान और साहित्य जो विश्व का पहला अद्वितीय ज्ञान कहा जा सकता है। इस ज्ञान के मार्ग को जिन लोगों ने पूरा का पूरा आत्मसात किया। प्रेम और आनंद के मार्ग के द्वारा सनातन आत्मा तक पहुंचने का प्रयास किया वे हिंदू कहलाए। इस आधार पर वेद निर्मित हुए और उन पर शोध होते होते उपनिषद षट्दर्शन इत्यादि अन्य ग्रंथ बनते गए।

इसीलिए कहा जाता है सनातन को कोई नष्ट नहीं कर सकता क्योंकि यह मूल का स्वरूप है।

डॉ अजय शुक्ला: आपने तो संक्षेप में बहुत ही सुंदर तरीके से समझा दिया मुझे तो पूरा समझ में आ गया आशा करता हूं पाठकों को भी समझ में आया होगा! तो जो बाकी धर्म कहे जाते हैं उनके विषय में क्या आप समझा सकते हैं।

देवीदास विपुल: देखिए भारतीय मूल के सभी संप्रदाय परंपराएं तथा तथाकथित धर्म यह सनातन से ही उत्पन्न हुए क्योंकि उनका भी मूल स्वरूप प्रेम आनंद और शांति ही है। जिसने शत प्रतिशत सनातन सिद्धांत को स्वीकार किया वह हिंदू हुए। सनातन साहित्य संस्कृत में लिखा गया है लेकिन जैन साहित्य पाली में लिखा गया। शिव का पहला अवतार भगवान ऋषभदेव जैन के पहले गुरु कहे जाते हैं। उन्होंने गुरु शिष्य परंपरा को एक ऊंचाई प्रदान की। ध्यान देने वाली बात है शिव इस सृष्टि के पहले गुरु और भगवान दत्तात्रेय मानव के पहले गुरु कहे जाते हैं! बाद में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए उनसे 38 साल बाद भगवान बुद्ध पैदा हुए। उन्होंने ने भी सनातन के ही विचारों को मान्यता देते हुए कुछ को आत्मसात किया तो बौद्ध हुए। गुरु नानक देव ने एक सैनिक गुरु परंपरा को जन्म दिया वह शिष्य कहलाए जिनको की पंजाबी में सिक्ख कहा जाता है। जैसे आदि गुरु शंकराचार्य ने दशनामी परंपरा की स्थापना की। अखाड़ा परिषदों की स्थापना की। वे भी सनातन की रक्षा की सिपाही थे। और संन्यासी को तो धर्म ध्वजवाहक कहा जाता है। शस्त्र के साथ शास्त्र उनकी शिक्षा थी और है।

डॉ अजय शुक्ला: जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद समय-समय पर आपको कष्ट देता रहूंगा।

देवीदास विपुल: आपको अनेको धन्यवाद और साधुवाद। जो मुझे ईश्वर की चर्चा करने का अवसर देते हैं यानी सत्संग की ओर प्रेरित करते हैं।