9 अगस्त से 15 अगस्त तक भारत सरकार ने “मेरी माटी मेरा देश” नामक अभियान चलाकर बच्चों को पर्यावरण के प्रति प्रेरित करने का प्रयास किया। इसी संदर्भ में इस विचार के और इस अभियान के भाव जनक विपुल लखनवी जो सेवानिवृत्त परमाणु वैज्ञानिक है भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में अपनी सेवाएं दी है। सेवानिवृत्ति के पश्चात विपुल जी ने ग्रामीण आदि रिसर्च एंड वेदिक इन्नोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित की स्थापना की और उसके माध्यम से पर्यावरण, देश प्रेम और भारतीय प्राचीन संस्कृति और ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के माध्यम से जनमानस तक पहुंचाने का कार्य बखूबी कर रहे हैं। इसी अभियान के अंतर्गत विगत वर्ष अगस्त माह में विपुल जी ने गर्वित के माध्यम से मिट्टी लगे हाथ, लव स्वाइल अभियान के अंतर्गत चलाया था और जिसको देश भर से प्रतिसाद मिला था। इसके अतिरिक्त बैंगलोर में भी सोसाइटीज के अंतर्गत जाकर बच्चों को पर्यावरण के प्रति जोड़ने के लिए पौधों के बीज बांटे, बच्चों को पेड़ लगाने का तरीका बताया। जिनको 3 माह के पश्चात पुरुस्कृत किया जाएगा।
लखनवी जी का एक साक्षात्कार आर्य टीवी के डॉ. अजय शुक्ला ने लिया था और जिसको आर्य टीवी पर प्रकाशित भी किया था। एक बार पुनः डॉ. अजय शुक्ला ने लखनवी जी को घेर लिया और कुछ प्रश्न कर बैठे।
डॉ. अजय शुक्ला: विपुल जी आपको बधाई हो क्योंकि आपके द्वारा किए गए मिट्टी लगे हाथ लव सॉइल अभियान को भारत सरकार ने “मेरी माटी मेरा देश” के अंतर्गत इस वर्ष 9 अगस्त से 15 अगस्त के बीच देशभर में चलाया। आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
विपुल लखनवी: डॉ अजय शुक्ला जी वास्तविक बधाई तो आपको मिलनी चाहिए क्योंकि मैंने तो एक कार्य किया लेकिन उस कार्य को आपने भारत सरकार तक पहुंचाया इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। जैसा कि आपने बताया आपके 27 लाख के लगभग सब्सक्राइबर है जो एक गौरव की बात है और जब इतने लोगों तक कोई बात पहुंचेगी तो सरकार तक तो पहुंच ही जाएगी।
अजय शुक्ला: आपने जो अभियान मिट्टी लगे हाथ लव सॉइल कैंपेन चलाया था उसके पीछे कौन सी महत्वपूर्ण भावना थी जिसको की भारत सरकार ने समझ लिया और यह कार्यक्रम चलाया?
विपुल लखनवी: अजय जी आपने देखा होगा जो थोड़ा बहुत भी धनाढ्य हो जाता है तो वह अपने बच्चों को मिट्टी नहीं छूने देता उनसे बोलता है अरे अरे हाथ गंदे हो जाएंगे मिट्टी मत छुओ गंदी होती है। जब आप बच्चे के मन में इस तरह की भावना पैदा कर रहे हैं तो बच्चे को मिट्टी गंदी लगने लगती है फिर वह बच्चा वातानुकूलित वातावरण में रहता है यानी पर्यावरण को नष्ट करना तो सीख ही जाता है विद्यालय जाता है। मान लीजिए उदाहरण के लिए वह इंजीनियर बन गया तो अपने पिता की कंपनी चलाने के लिए फैक्ट्री चलाने के लिए उसके पास कोई आकर कहता है सर फैक्ट्री के लिए 4 पेड़ काटने हैं क्योंकि उस बालक को पेड़ का महत्व पता नहीं था बताया नहीं गया, वह बोलेगा काट दो। उसको बोला जाएगा वहां पर ही पोखर है जिसमें पानी भरा हुआ है बोलेगा पाट दो। क्योंकि उसको पता नहीं है यह जो ताल तलैया है यह प्राकृतिक रूप से पर्यावरण के बचाने में सहयोग देते हैं। धरती के भीतर रिस कर पानी जाता है और हमारी भूगर्भ जल का स्तर बढ़ने लगता है लेकिन जब आप उस पर कांक्रीट डाल देते हैं तो वह छिद्र नष्ट हो जाते हैं और जल जमीन के भीतर नहीं जा पाता। आज इसी कारण बैंगलोर जैसी कई शहर मृत्यु के कगार पर है। बैंगलोर का एयरपोर्ट जहां पर बना है वहां पर कई जल के भरे हुए तालाब और पोखर थे। क्योंकि इसकी ऊंचाई नदी से ऊपर है लगभग 400 मीटर तो वहां पर पानी पंप करना पड़ता है। बरसात का पानी भूगर्भ में नहीं जा पाता क्योंकि सब तरफ कंक्रीट बन चुकी है।
डॉ. अजय शुक्ला: विपुल जी विकास के लिए तो यह सब करना ही पड़ेगा क्योंकि विकास के लिए विनाश भी आवश्यक हो जाता है।
विपुल लखनवी: आप बिल्कुल सही कह रहे हैं लेकिन विनाश करने में बहुत ज्यादा हानि हो जाती है क्योंकि यह आने वाली पीढ़ियों को कष्टदायक हो सकती है दूसरी बात विकास के लिए बहुत उच्च स्तर पर शोध होनी चाहिए न कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए पर्यावरण को नष्ट कर दो।
डॉ. अजय शुक्ला: राजनीतिक स्वार्थ क्या मतलब हुआ?
विपुल लखनवी: जी बिल्कुल सही क्योंकि जहां पर इस तरह की योजनाएं आती है तो वहां पर नेता लोग पहले से जमीन खरीद लेते हैं यह जहां पर उनकी जमीन होती है वहीं पर यह योजनाएं आती है जिसके कारण उनको कई गुना अधिक जाते हैं अपने निजी स्वार्थ के लिए वह योजनाओं को फुटबॉल बनाकर इधर-उधर फेंकते हैं।
डॉ. अजय शुक्ला: तो फिर कैसे विकास किया जाए?
विपुल लखनवी: देखिए मैं विकास के विरुद्ध नहीं हूं लेकिन इसमें जनता को भी जागरूक होना बहुत आवश्यक है जब कभी बरसात होती है पहाड़ों पर तबाही मत जाती है विनाश होने लगता है क्योंकि जहां पर प्राकृतिक जल प्रवाह हो सकता है वहां पर आप घर बना रहे हैं। जहां पर पहाड़ों को स्थायित्व मिलता है उसे जगह को आप खोद रहे हैं बुलडोजर चला रहे हैं। निश्चित रूप से प्रकृति करवट लेगी। किसी भी जगह के विकास के लिए कम से कम 5 साल पहले योजना बनाई जाए और उसका प्राकृतिक अध्ययन पूर्ण रूप से हर क्षेत्र में किया जाए। जल्दबाजी के कारण किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने के कारण अक्सर गलती हो जाती है जो हमको भारी पड़ जाती है।
डॉ. अजय शुक्ला: विपुल जी आपके ट्रस्ट के और क्या अभियान है पर्यावरण के अंतर्गत?
विपुल लखनवी: अजय जी मेरे जितने भी विचार बिंदु अपने पहले के इंटरव्यू में छपे थे एक-एक कर सभी आपके सामने आएंगे इस बात का मैं दावा कर सकता हूं क्योंकि मैं सहज रूप से प्राकृतिक उपचार एवं पर्यावरण बचाओ के लिए अपने बिंदु दिए हैं।
डॉ.अजय शुक्ला: कुछ यहां पर भी फिर से प्रकाश डालिए?
विपुल लखनवी: अजय जी अन्य जो लव सॉइल के अंतर्गत अभियान है उनमें बच्चों को निजी स्तर पर जाकर पेड़ लगाना बताना उनको उत्साहित करना और समझना। गणपति के अवसर पर इको फ्रेंडली गणपती बनाकर इको फ्रेंडली दुर्गा बनाकर जो की मिट्टी के द्वारा बनी हो उसको पुरस्कृत करना। क्योंकि जब बच्चा मूर्ति बनाएगा तो मिट्टी में हाथ डालेगा। तरह से बच्चों के अंदर मिट्टी में प्रेम पैदा होगा।
विद्यालयों में बच्चों को बागवानी का एक विषय पढ़ाया जाना चाहिए और स्कूलों को चाहिए बच्चों के बीच में गमले बांट दें और बच्चों को बोले तुम इन गमलों में पेड़ लगाओ पौधे लगाओ फूल लगाओ तुमको इस पर नंबर मिलेंगे और जिस का गमला सबसे सुंदर होगा स्वस्थ होगा उस को पुरस्कृत किया जाएगा। इस प्रकार हमारे विद्यालय को तमाम सुंदर गमले मिल जाएंगे और बच्चों के अंदर पेड़ों के प्रति प्रेम पैदा हो जाएगा।
जो विश्वविद्यालय हैं उनकी जमीन कई एकड़ होती है जिस पर अवैध कब्जे हो जाते हैं उस जमीन के वाहिक परिधि में आप कुछ भूमि विद्यार्थियों को एलाट कर दीजिए और उनसे बोलिए कि उस जमीन पर कुछ भी नई चीज लगाएं पेड़ लगाएं पौधे लगाएं अखाड़ा बनाएं सोलर प्लांट कुछ भी करें उसके लिए उनको नंबर दिए जाएंगे और पुरस्कार दिए जाएंगे। जमीन भी सुरक्षित रहेगी और बच्चे सीखेंगे।
इसके अतिरिक्त मानव का जो मूत्र है वह पिघला हुआ सोना कहा जाता है उसके अंदर बहुत उच्च क्वालिटी के और महंगे प्रोटीन होते हैं जिनका यदि हम अलग कर सकें तो बहुत फायदा होगा दूसरी चीज यह एक तरीके से द्रव्य खाद है। यदि इसको हम एकत्र करें तो हमें पेड़ों की सिंचाई के लिए जल के अलावा उनके लिए एक अच्छा फर्टिलाइजर उपलब्ध मिल सकता है। लेकिन एक बात का ध्यान रहे जो ताजा मूत्र होता है उसमें अमोनिया होती है जो पेड़ को जलाती है इस कारण मूत्र को 9 दिन रखना पड़ता है अथवा उसकी 10 गुना पानी मिलाकर पतला करना होगा। इस प्रकार हम शहरों के अंदर पढ़ने वाले प्रदूषण जल की मात्रा को कम कर सकते हैं और दूसरी ओर पेड़ों को खेतों को सुंदर फर्टिलाइजर भी उपलब्ध करा सकते हैं।
इसके अलावा नदियों को बचाने के लिए हमको सीवर लाइन को नदियों में नहीं जाने देना चाहिए। आपको याद होगा पहले हर घर में सेप्टिक टैंक होते थे उसके अंदर 2 या 4 साल में सफाई करनी पड़ती थी तो जो पदार्थ निकलता था वह बहुत सुंदर खाद होता था। यदि इस प्रकार के बड़े-बड़े सेप्टिक टैंक बनाकर हर सोसाइटी के अंदर मल का निस्तारण हो तो हमको बायोगैस, द्रव खाद ठोस खाद मिल जाएगी और हमारे मल और मूत्र उपयोग हो जाएंगे नदियों पर लोड नहीं पड़ेगा।
क्योंकि प्रदूषित जल में अधिकतम प्रदूषण मल और मूत्र का होता है। इसके द्वारा हमारा प्रदूषित जल की गुणवत्ता भी बढ़ जाएगी और उसको हम आसानी से कहीं पर भी प्रभावित कर सकते हैं। भारत जैसा अजीब किस्म का गरीब देश रहा है जहां पर मूर्खता की सीमा देखिए नगर निगम के जी जल को आप पी सकते हैं उससे आप सुबह अपना मल साफ करते हैं। यानी गंदगी साफ करने के लिए पीने का पानी।
डॉ. अजय शुक्ला: आपके पास तो इतने सुंदर-सुंदर विचार और भाव हैआपने अभी तक इसके लिए कुछ किया क्यों नहीं?
विपुल लखनवी: मैं भारत सरकार का वरिष्ठ अधिकारी रहा हूं और जहां पर कंडक्ट रूल नामक एक रस्सी बहुत कस के बांधी जाती है मैंने 2016-17 में गंगा अभियान के अंतर्गत अपना प्रोजेक्ट पेपर सबमिट किया था जिसको केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया था लेकिन मुझको मेरे विभाग से वहां जाने की अनुमति नहीं मिली क्योंकि उनका यह कहना था आप परमाणु वैज्ञानिक है आप किधर कहां जा रहे हैं। अनापत्ति न मिलने की कारण मैं गंगा अभियान प्रोजेक्ट में जा नहीं सका। जबकि मेरा सुझाव पत्र स्वीकृत हो गया था और मुझे पेपर प्रेजेंटेशन के लिए बुलाया गया था। फिर मैंने केंद्र सरकार के पर्यावरण विभाग को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ईमेल किए थे लेकिन कोई जवाब नहीं आया था मेरे पास एक से एक बढ़कर विचार है जो सामाजिक क्रांति कर सकते हैं लेकिन कहीं से भी कोई उत्तर नहीं मिलता है जिस कारण एक वैज्ञानिक अपने विचारों को लागू नहीं कर सकता समाज के उत्थान के लिए यह देश का दुर्भाग्य है और क्या कहें क्योंकि जहां पर केवल सोर्स सिफारिश यही काम करती है तुम्हारा खुद का काम कभी भी सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता यदि तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुम्हारा कोई पहचान वाला ऊंचे पद पर न हो।
डॉ. अजय शुक्ला: आप तो बहुत स्पष्ट बात कर रहे हैं चलिए आशा करता हूं आपके इन विचारों को मैं भारत सरकार तक पहुंचाने में एक बार फिर से सक्षम हो जाऊंगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
विपुल लखनवी: डॉ. अजय आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार कि आप मेरी आवाज को भारत सरकार तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। नमस्कार।