चीन को पीछे छोड़ भारत बना ग्लोबल इकोनॉमी की धड़कन, रिपोर्ट ने ड्रैगन की बढ़ा दी टेंशन

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(www.arya-tv.com) कुछ साल पहले चीन को अपने ऊपर काफी गुमान था कि वो अमेरिका के बाद दुनिया का सबसे बड़ा इकोनॉमिक सुपर पॉवर बन गया है। ग्लोबल इकोनॉमी की सांसे उसके बिना चल ही नहीं सकी। दुनिया की सप्लाई की नब्ज उसी के हाथों में है। लेकिन जब वक्त का पहिया पलटता है तो सारा गुमान और घमंड मिट्टी में मिल जाता है।

कोविड और उसके बाद चीन की हालत कुछ ऐसी ही हो चली है। दुनिया के बाजार में अब उसका कोई नाम लेवा नहीं बचा है। यूरोप और अमेरिका दोनों मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में भारत दुनिया के बाजार और ग्लोबल इकोनॉमी को धड़कन या यूं कहें ऑक्सीजन देने का काम कर रहा है। चीन की यह सब देखकर सांसें फूली हुई दिखाई दे रही हैं।

कुछ दिन पहले गोल्डमैन सैस की रिपोर्ट ने अनुमान लगाया था कि साल 2075 तक भारत अमेरिका और यूरोप को पीछे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने में कामयाब हो सकता है। अब जो रिपोर्ट सामने आई है उससे चीन के होश उड़ हुए हैं। वास्तव में अमेरिकी असेट मैनज्मेंट कंपनी इनवेस्को की ओर से एक रिपोर्ट पेश की गई है। जिसमें साफ कहा कि दुनिया के निवेशकों का सबसे ज्यादा रुझान चीन की तरफ नहीं बल्कि​ भारत की ओर है।

वहीं मिडिल ईस्ट की निवेश फर्म ने यहां तक कहा दिया कि भले की उसका निवेश चीन और भारत में कम हो, लेकिन चीन के मुकाबले भारत मौजूदा समय में निवेश के लिए सबसे बेहतरीन जगह है। इसका मतलब साफ है कि चीन की जो साख कुछ साल पहले बनी हुई थी वो खत्म हो चली है और उसकी जगह पर भारत ने जिस रफ्तार को पकड़े हुए है इस वक्त उसे पकड़ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लग रहा है। आइए इनवेस्को और विदेश निवेश के उन पन्नों को पलटते हैं और समझने की कोशिश करते हैं ​आखिर चीन की सांसे क्यों उखड़ रही हैं?

इनवेस्को भले ही एक अमेरिकी असेट मैनेज्मेंट कंपनी हो, लेकिन उसके निवेश का दायरा पूरी दुनिया में फैला हुआ है और जो वो कहता है, दुनिया के बाजार के धुरंधर उसे अहमियत देते हैं और मानते भी हैं। इस बार इनवेस्को ने रिपोर्ट में जो कहा है वो यह है कि भारत दुनिया के सभी बाजारों में निवेश का सबसे बेहतरीन डेस्टीनेशन है। या यूं कहें कि चीन के मुकाबले काफी बेहतर है।

भारत के बाजार में विदेशी फंड का बढ़ता फ्लो दुनिया के बाकी बाजारों के मुकाबले नई दिल्ली के कद को सिर्फ बढ़ा ही नहीं रहा है, बल्कि उस ऊंचाई पर लेकर जा रहा है, जहां उसके सामने कोई नहीं होगा। यह जो निष्कर्ष सामने निकलकर आया है वो इनवेस्को के 11वें एनुअल एडिशन ‘इनवेस्को ग्लोबल सॉवरेन एसेट मैनेजमेंट स्टडी’ का हिस्सा है। ग्रेटर चीन, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण कोरिया के लिए इनवेस्को के सीईओ और रिपोर्ट के ऑथर टेरी पैन कहते हैं कि भारत में वो तमाम विशेषताएं जो एक सॉवरेन इंवेस्टर निवेश से पहले देखता है।

इनवेस्को ने अपनी बात को साबित करने के लिए 85 सॉवरेन वेल्थ फंड और 57 सेंट्रल बैंकों के 142 चीफ इंवेस्टमेंट ऑफिसर, असेट क्लास के चीफ और सीनियर पोर्टफोलियो रणनीतिकारों का इंटरव्यू लिया। ये संस्थान लगभग 21 ट्रिलियन डॉलर की असेट को मैनेज करते हैं। स्टडी में इनवेस्को ने पाया कि प्राइवेट लोन सहित फिक्स्ड इनकम वाले असेट्स के प्रति बढ़ता आकर्षण देखने को मिला और लगातार बढ़ती महंगाई और ब्याज दरों के युग में प्रमुख निवेश स्थलों के रूप में ठोस डेमोग्राफिक्स, पॉलिटिकल स्टेबिलिटी देखने को मिली है।

मिडिल ईस्ट डेवलपमेंट सॉवरेन फंड की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत या चीन में हमारा पर्याप्त निवेश नहीं है। हालांकि, व्यापार और राजनीतिक स्थिरता के मामले में भारत अब एक बेहतर स्थिति में है। डेमोग्राफी तेजी से बढ़ रही है, और उनके पास इंट्रस्टिंग कंपनियां और सॉवरेन इंवेस्टर्स के लिए एक बहुत ही अनुकूल वातावरण भी है।

भारत के शेयर बाजार में यह लगातार पांचवां महीना है, जब विदेशी निवेशकों की ओर से निवेश किया जा रहा है। शेयर बाजार में 10 जुलाई तक इस साल 99,292 करोड़ रुपये का निवेश कर चुका है। मार्च के महीने में यह​ निवेश 7936 करोड़ रुपये था जो अप्रैल के महीने में बढ़कर 11,631 करोड़ रुपये हो गया।

मई महीने में इसमें और भी ज्यादा तेजी देखने को मिली और आंकड़ा 43838 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। मई में भले ही आंकड़ा 50 हजार करोड़ रुपये ना पहुंचा हो, लेकिन 47148 करोड़ रुपये लेवल पर पहुंच ही गया। जुलाई के महीने में 10 दिनों में विदेशी निवेशक 22815 करोड़ रुपये का निवेश कर चुके हैं। अनुमान लगाया जा रहा है जुलाई में यह आंकड़ा 65 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच सकता है।