(www.arya-tv.com) मेरठ में शुक्रवार यानी 28 अक्तूबर को धर्म परिवर्तन का एक बड़ा मामला सामने आया। मंगतपुरम बस्ती के करीब 400 लोग SSP ऑफिस पहुंचे। शिकायत थी कि उन्हें जबरन हिंदू से ईसाई बनने को मजबूर किया जा रहा है। आरोप था कि कुछ क्रिश्चियन लोगों ने लॉकडाउन में बस्ती वालों की मदद की। अब धर्म परिवर्तन का दबाव बना रहे हैं। उन्हें पूजा करने और मंदिर जाने से मना किया जा रहा है। कई घरों से हिंदू देवी-देवताओं की फोटो हटवा दी। पुलिस ने मामले में 9 आरोपियों पर मुकदमा दर्ज किया है।
जिस बस्ती का मामला, वहां पहुंचना तक अभी मुश्किल
दिल्ली रोड के पास बसी मंगतपुरम बस्ती। बस्ती के एंट्री गेट पर मेट्रो, रैपिड रेल का काम तेजी से चल रहा है। दिल्ली से मेरठ को जोड़ने वाली रैपिड रेल के कॉरिडोर का स्ट्रक्चर लगभग तैयार है। यहीं से 2025 में रैपिड होकर गुजरेगी। कंस्ट्रक्शन वर्क के कारण यहां चारों तरफ धूल के गुबार हैं। इसी सड़क से होकर हम बस्ती के कुछ लड़कों के साथ जो कप्तान से शिकायत करने वालों में थे, मंगतपुरम तक पहुंचते हैं। जहां चारों तरफ कचरे के ढेर, बदबू है। क्योंकि इसी मंगतपुरम के पास कूड़े का पहाड़ है। नगर निगम द्वारा शहरभर का कूड़ा एकत्र कर यहां डंप किया जाता है। यहां पहुंचना बेहद मुश्किल भरा है।
“आटा, चावल देकर हमें बरगलाया”
बस्ती में घुसते ही सामने भारी भीड़ दिखी। भीड़ में बस धर्म परिवर्तन की चर्चा है। बस्ती में रहने वाले खटीमा बताते हैं, “जब लॉकडाउन लगा था। तब इन लोगों की तरफ से हमें आटा, चावल दिया जाता था। उसका पैसा भी कई बार ले लेते थे। वो पैसा कहां जमा हुआ, हमें नहीं मालूम। लेकिन, अब ये कहते हैं कि हम उनके चर्च में आएं। उनके साथ रहें। हम अपने भगवान को मानते हैं, उनके जैसे कैसे हो जाएं। स्मृति कहती हैं कि हमारे साथ धोखा हुआ। पहले मदद कर हम लोगों का भरोसा जीता, अब मनमानी कर रहे हैं। हममें से कई लोगों को अपने में मिला लिया है। लेकिन, वो लोग अब धीरे-धीरे वापस आ रहे हैं।”
“बस्ती में रहे फिर चर्च बनाया, अब बस्ती बांट दी”
रहने वाले सुलोचन कहते हैं, “हमसे धोखा किया। लॉकडाउन में मदद की। अब कहते हैं कि हम अपना धर्म छोड़कर इनके जैसे हो जाएं। बस्ती में 400 से ज्यादा घर रहते हैं। 1500 से ज्यादा वोट हैं। सभी हिंदू हैं। पहले 4 से 5 परिवार ईसाइयों के आए और यहां हमारे बीच रहने लगे। बस्ती में जगह खाली पड़ी है। हम सब ऐसे रहते हैं, ये भी रहने लगे। किसी ने विरोध नहीं किया। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी। अब इसाइयों के यहां 30 से ज्यादा परिवार बस गए। इन्होंने चुपचाप अस्थायी चर्च बना लिया। अब बस्ती दो भागों में बंट गई। एक तरफ ये हैं, दूसरी तरफ हमारे धर्म के लोग हैं। भले ये हमसे कम हैं, मगर अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं।”