कोरोना में छोटे बच्चों को कैसे बचाये!

# ## Lucknow UP
डॉ.संदीप कुमार

कोरोना में छोटे बच्चों को कैसे बचाये!
 आर्य टीवी नेटवर्क द्वारा लगातार अपने दर्शकों को कोरोना के इस संकट काल में देश भर के प्रसिद्ध डाक्टरों की सलाह आप तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है,इसी कड़ी में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी छोटे बच्चों को कोरोना के संक्रमण के खतरे के बारे में आगाह किया है। इसी सूचना के बाद आर्य प्रवाह टीवी की विशेष संवाददाता माधुरी ​तिवारी द्वारा डॉ. संदीप कुमार सिन्हा सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिक सर्जरी रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल, नई दिल्ली से अपने बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए विशेष जानकारी हासिल की गयी है पेश है इस जानकारी के प्रमुख अंश…..

  • बच्चों को सुरक्षित रखें कोरोना के संक्रमण से

जिस तेजी से कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, उससे पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। पहले जहां बच्चों में इस संक्रमण के मामले काफी कम देखे जा रहे थे, वहीं अब छोटे बच्चे ही नहीं नवजात शिशु भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, एक महीने पहले तक वैश्विक स्तर पर केवल 1 प्रतिशत बच्चे ही संक्रमण की चपेट में आए थे और इस संक्रमण के कारण उनकी मृत्यु दर केवल 0.2 प्रतिशत थी, लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता जा रहा है, स्थिति स्पष्ट होती जा रही है। वर्तमान में बच्चों में संक्रमण का आंकड़ा बढ़कर 2.4 प्रतिशत हो गया है। तो जानिए बच्चों के लिए कितना खतरा है कोरोना के संक्रमण का, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए क्या-क्या उपाय करें और लॉकडाउन पीरियड में उन्हें कैसे सकारात्मक रखें।

  • ये कदम उठाएं

बच्चों में कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर कईं मिथ प्रचलित हैं, लेकिन यह पूरी तरह से गलत है कि बच्चे इस संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित हैं। बच्चों का इम्यून तंत्र कमजोर और शरीर नाजुक होता है, इसलिए जरूरी सावधानियां रखना बहुत महत्वपूर्ण है।

  • संतुलित और पोषक भोजन खिलाएं

बच्चों की उम्र के कारण उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है, इसलिए संक्रमणों से लड़ने के लिए उन्हें संतुलित, पोषक और सुपाच्य भोजन खिलाना बहुत जरूरी है, ताकि उनका शऱीर जरूरी पोषक तत्वों को आसानी से अवशोषित कर ले। मौसमी फलों, सब्जियों के साथ ही साबुत अंकुरित अनाज और दूध-दही भी पर्याप्त मात्रा में दें। उन्हें रोज़ नियत समय पर ही खाना खिलाएं।

  • शारीरिक रूप से सक्रिय रखें

बच्चे थोड़े बड़े हैं तो घर पर ही उन्हें योग और एक्सरसाइज़ करने के लिए प्रेरित करें। छोटे बच्चे यदि डांस करने के शौकीन हैं तो म्युजिक लगा दें ताकि वो अपने मनपसंद गानों पर डांस कर सकें। उन्हें रस्सी कूदने दें या बॉल से खेलने दें। एक साल से छोटे बच्चों की नियमित रूप से तेल से मसाज करें, इससे शरीर में रक्त का संचरण बढ़ता है और संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

  • साफ-सफाई के गुर सिखाएं

बच्चों को हाथ धोने का सही तरीका बताएं, 20 सेकंड तक साबुन और पानी से धोएं , उन्हें टायलेट हाइजीन के बारे में भी समझाएं। उन्हें समझाएं कि अपने नाक, मुंह और आंखों को बार-बार हाथों से न छुएं। बच्चों की नोज़ी और मुंह साफ करने के लिए रूमाल की बजाय टिशु पेपर का इस्तेमाल करें, और इस्तेमाल के बाद उन्हें फोल्ड कर के डस्टबिन में डालें। उन्हें समझाएं कि खांसते और छींकते समय टिशु पेपर का इस्तेमाल करें। घर में भी दूरी बनाकर रखें, बार-बार बच्चों को न छुएं। बच्चों को पालतु पशुओं के साथ ज्यादा समय न बिताने दें, उन्हें छूने के बाद उनके मुंह-हाथ साबुन से धुलाएं। पशुओं को भी साफ रखें। अपने घर में भी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।

  • दूसरे बच्चों के साथ न खेलने दें

बच्चों को समझाएं कि अभी उनके लिए कुछ दिनों तक घर पर रहना क्यों और कितना जरूरी है। अपने आस-पड़ोस के लोगों और रिश्तेदारों को न तो अपने घर में बुलाएं न ही उनके घर जाएं। अपने बच्चों को घर पर ही रखें, दूसरे बच्चों के साथ बिल्कुल खेलने न दें
हॉबी अपनाने के लिए प्रेरित करें , आपके बच्चों के कोई शौक हैं तो उन्हें पूरा करने दें। लेकिन अगर उनकीकोई हॉबी नहीं है तो उन्हें हॉबी चुनने और उसे सीखने में सहायता करें। आप उन्हें किताबें पढ़ने, लिखने, चित्रकारी करने, नृत्ये या गायन में से किसी हॉबी अपनाने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। हॉबी बच्चों को एक्टिव रखेगी और इन परिस्थितियों में उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाएगी।

  • गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल न करने दें

बच्चे सारा दिन घर पर हैं, इसलिए उन्हें व्यस्त रखने के लिए आप यह न करें कि उन्हें स्मार्ट फोन पकड़ा दें या लैपटॉप या टीवी के समाने बैठा दें। स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने से मस्तिष्क में रसायनों का संतुलन गडबड़ा जाता है और इंटरनल क्लॉक भी आसामान्य हो जाती है। लगातार स्क्रीन को घूरने से बच्चों में आंखे लाल होना, आंखों से पानी आना, आंखों में खुजली चलना और नज़र कमजोर होना जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं।

  • घर पर ही काउंसलिंग दें

दी अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार, बच्चों की समझ इतनी विकसित नहीं हुई होती कि जब वो भावनात्मक रूप से परेशान हों तो अपनी भावनाएं परिवार के लोगों से साझा कर लें। इसलिए यह माता-पिता और परिवार के दूसरे लोगों की जिम्मेदारी है कि उनपर नज़र रखें, अगर वो बेवजह जिद कर रहे हैं, बिना बात के रो रहे हैं, उन्हें कम या ज्यादा भूख लग रही है, सोने में परेशानी हो रही है तो उन्हें घऱ पर ही काउंसलिंग दें। माता-पिता को चाहिए कि शांत, संतुलित और सकारात्मक रहें। बच्चों से नकारात्मक समाचार साझा न करें, इससे बच्चों के कोमल मन गलत प्रभाव पड़ता है। तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

अगर आपके बच्चे में निम्न में से एक या अधिक लक्षण दिखाई दें तो तुरंत नज़दीक स्थित किसी स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाएं या सरकार द्वारा उपलब्ध कराए इमरजेंसी नंबर पर संपर्क करें।

  • सांस लेने में तकलीफ होना।
  •  तरल पदार्थ भी निगलने में समस्या होना।
  •  भ्रमित होना या सामान्य व्यवहार न कर पाना।
  •  होंठ नीले पड़ जाना।

डॉ. संदीप कुमार सिंहा, सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक सर्जरी, रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित

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