बिरज में होरी रे रसिया… पूरे 50 दिन चलती है ब्रज की होली

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(www.arya-tv.com) ब्रज की होली अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण सारे विश्व में प्रसिद्ध है। वसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक (पूरे 50 दिनों तक) होली का रंग ब्रज के कण-कण में छाया रहता है। ब्रज मंडल में वसंत पंचमी से ही मंदिरों में ठाकुरजी के नित्य प्रति के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है।

होली जलाए जाने वाले स्थानों पर होली के डांडे गाड़ दिए जाते हैं। शिवरात्रि से ढोल और ढप के साथ रसिया गायन प्रारंभ हो जाता है : आजु बिरज में होरी रे रसिया,होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया कौन के हाथ कनक पिचकारीकौन के हाथ कमोरी रे रसिया।

बरसाना की लट्ठमार होली

फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना में नंद गांव के हुरियारों (पुरुषों) और बरसाना की गोपिकाओं (महिलाओं) के मध्य विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली होती है। इस होली में नंदगांव के गोस्वामी अपने को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानकर राधा रानी के प्रतीक के रूप में बरसाना के गोस्वामी को और बरसाना के गोस्वामी अपने को राधा रानी का प्रतिनिधि मानकर नंद गांव के गोस्वामी को रंग की बौछारों के मध्य प्रेम भरी गालियां देते हैं। साथ ही, श्रृंगार रस से परिपूर्ण हंसी-मजाक भी करते हैं।

तत्पश्चात बरसाना की गोपियां अपने-अपने घूंघट की ओट से नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों की बौछार करती हैं। इन प्रहारों को नंद गांव के हुरियारे रसिया गा-गाकर अपनी ढालों पर रोकते हैं। गोपिकाओं की लाठियों के प्रहारों से नंदगांव के हुरियारों की ढालें छलनी हो जाती हैं। इस वर्ष यह लट्ठमार होली आज 23 मार्च, 2021 को है।

नंदगांव की लट्ठमार होली

अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ल दशमी (24 मार्च) को इसी प्रकार की लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है। इस होली में नंद गांव की गोपिकाएं बरसाना के गोस्वामियों पर लाठियां बरसाती हैं।

समूचे ब्रज में रंगभरी एकादशी

नंदगांव की होली के अगले दिन समूचे ब्रज में रंगभरी एकादशी धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन ब्रज के मंदिरों में ठाकुर जी के समक्ष रंग-गुलाल, इत्र-केवड़ा और गुलाब जल आदि की होली होती है। कुछ मंदिरों से राधा और कृष्ण के स्वरूपों की झांकियां भी निकलती हैं, जिनमें रंग-अबीर रूपी कृपा प्रसाद लोगों पर उलीचा जाता है और ब्रज का कोना-कोना इंद्रधनुषी हो जाता है।

लगातार 5 दिनों तक वृंदावन में होली

फाल्गुन शुक्ल एकादशी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी तक पूरे 5 दिन वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल, टेसू के रंग और इत्र व गुलाब जल आदि से जबरदस्त होली खेली जाती है। इस अवसर पर लड्डू और जलेबी की होली भी होती है। एकादशी के दिन मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर भी होली का रंगारंग कार्यक्रम होता है। इस वर्ष यह कार्यक्रम 25 मार्च, 2018 को होगा।

होली पर फूलों से भी होली खेली जाती है। वृंदावन में रास-लीलाओं के दौरान राधा व उनकी सखियां तथा कृष्ण व उनके सखा फूलों से परस्पर इस कदर होली खेलते हैं कि राधा-कृष्ण फूलों की वर्षा से उसके अंदर ढक जाते हैं और लीला स्थल पर फूलों का विशाल ढेर लग जाता है। इस ढेर से निकलते हुए राधा-कृष्ण जब इन फूलों को अपने दोनों हाथों से चारों ओर उछालते हैं तो बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न होता है।

होलिका दहन और धुलेंडी

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका-दहन (28 मार्च) होता है। होलिका दहन के अगले दिन यानी धुलेंडी को समूचे ब्रज में रंग और गुलाल की होली खेली जाती है। चैत्र कृष्ण द्वितीया (30 मार्च) को मथुरा से 22 किलोमीटर दूर बलदेव (दाऊजी) के ठाकुर दाऊदयाल मंदिर में दाऊजी का हुरंगा होता है। इसे बड़ा फाग भी कहा जाता है। इसमें गोस्वामी समाज के हुरियारे व हुरियारिन गोप-गोपिका के स्वरूप में होली खेलते हैं।

दाऊजी मंदिर प्रांगण में घुटनों-घुटनों भरे पानी एवं रंग की छटा में होने वाले इस उत्सव में हुरियारिनें हुरियारों के कपड़े फाड़ देती हैं और उनसे कोड़े बनाकर हुरियारों की जमकर पिटाई करती हैं। वहीं हुरियारे मंदिर के कुंड में से बाल्टियों में रंग भरकर हुरियारिनों को सराबोर कर देते हैं।

ब्रज में होली की मस्ती में धुलेंडी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक जगह-जगह चरकुला नृत्य, हल नृत्य, हुक्का नृत्य, बम्ब नृत्य, तख्त नृत्य, चांचर नृत्य एवं झूला नृत्य आदि अत्यंत मनोहारी नृत्य भी होते हैं। इस वर्ष ये उत्सव 6 अप्रैल, 2021 तक चलेंगे।