क्रूरता को लेकर पति के खिलाफ ‘दूसरी पत्नी’ की शिकायत सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

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(www.arya-tv.com) इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में व्यवस्था दी है कि ‘दूसरी पत्नी’ की ताकीद पर पति के खिलाफ भादंसं की धारा 498-ए (पति या उसके रिश्तेदारों की तरफ से पत्नी के खिलाफ क्रूरता का अपराध) के तहत शिकायत पोषणीय नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि, ऐसे मामलों में यदि दहेज की मांग की जाती है तो दहेज निषेध अधिनियम, 1961 लागू हो सकता है.

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने अखिलेश केशरी और अन्य तीन लोगों की तरफ से दायर की गयी याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह व्यवस्था दी. केशरी और उनके परिजनों ने भादंसं की धाराओं 498-ए, 323, 504, 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज एक मामले के संबंध में आरोप पत्र और अदालत के समन को चुनौती दी थी.

क्या थी याचिकाकर्ताओं की दलील? 

कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि उनके खिलाफ की गई मुकदमे की कार्यवाही गैर कानूनी है. उनका कहना था कि स्वयं को अखिलेश की पत्नी बता रही शिकायतकर्ता अखिलेश की कानूनन वैध पत्नी नहीं है क्योंकि केशरी ने अपनी पहली पत्नी से तलाक नहीं लिया है, इसलिए भादंसं की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम के तहत मुकदमा पोषणीय नहीं है.

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बनाया आधार

कोर्ट ने शिवचरण लाल वर्मा बनाम मध्य प्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आधार बनाया जिसमें कहा गया था कि यदि विवाह स्वयं ही अमान्य है तो कथित पत्नी की शिकायत पर पति के खिलाफ भादंसं की धारा 498-ए के तहत मुकदमा पोषणीय नहीं है. यह निर्णय 28 मार्च को दिया गया जो बुधवार को प्रकाश में आया.

कोर्ट ने क्या कहा? 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि आईपीसी की धारा 498-ए (क्रूरता के अपराध के लिए) के प्रावधानों के अनुसार मामला तब स्थापित होता है, जब महिला ने अपने पति या उसके रिश्तेदारों के हाथों क्रूरता का सामना किया हो. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता के अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत एक शिकायत, “दूसरी पत्नी” के कहने पर पति के खिलाफ सुनवाई योग्य नहीं है.