(www.arya-tv.com) नवी मुंबई के कोपर खैराने स्थित ग्रामीण आदि रिसर्च एंड वैदिक इनोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित द्वारा बेंगलुरु में “सत्य सनातन का विज्ञान” अभियान के अंतर्गत जन जागरण के कार्यक्रम चल रहे हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत बेंगलुरु के बेलनदुर नामक स्थान पर मंत्री इसपेना टाउनशिप की क्लब हाउस लाइब्रेरी हॉल में वरिष्ठ नागरिकों के साथ चर्चा कम व्याख्यान का आयोजन किया गया।
अरुण सक्सेना के संयोजन में आयोजित इस चर्चा व्याख्यान सत्र में गर्वित के अध्यक्ष विपुल लखनवी ने लगभग 1 घंटे का व्याख्यान दिया। लखनवी के अनुसार मात्र पेट को फुलाना पिचकना योग नहीं होता है और नहीं प्राणायाम ही योग होता है। यह तो मार्ग के प्रयास मात्र हैं जिनसे शरीर में निरोगता के साथ स्थायित्व आया है। योग तो तब घटित होता है जब मनुष्य को वेद महावाक्य की अनुभूति होती है मतलब आत्मा में परमात्मा की एकात्मता का अनुभव अनुभूति होती है।
जिसके लिए 2 मार्ग होते हैं आराधना और हठयोग। हठयोग में षष्टांग सप्तांग और अष्टांग मार्ग होते हैं जिनका नाम के आगे योग लगाकर समझाया जाता है। यह योग नहीं होता। इन पर व्यवहार करने के पश्चात योग की अनुभूति हो सकती है। पतंजलि महाराज के षटदर्शन के योग सूत्र के कारण अष्टांग का अधिक प्रचार हो रहा है। आराधना मार्ग में सगुन सकार और नवधा भक्ति के द्वारा भक्ति योग की प्राप्ति होती है।
लखनवी ने यह भी समझाया की किस प्रकार वेद से उपनिषद षट्दर्शन भगवतगीता पुराण एवं रामचरितमानस जैसे ग्रंथ जन्म लिए हैं। वेदों का निर्माण तो इसलिए हुआ है कि मनुष्य जान सके वह क्या है और ब्रह्म क्या है इसके अतिरिक्त वह यह भी प्रयास करें कि उसको योग हो जाए यानि यह अनुभूति हो जाए कि वही ब्रह्म है।
व्याख्यान के पश्चात जब लखनवी ने यह बोला कि आप कोई प्रश्न पूछिए तो एक वरिष्ठ नागरिक ने बोला कि आपने इतनी सूक्ष्म और गहराई से समझाया है कि कोई प्रश्न उत्पन्न हो ही नहीं रहा। कुल मिलाकर यह व्याख्यान बहुत ही कर गर्भित और सार्थक सिद्ध हुआ।