- विपुल लखनवी ब्यूरो चीफ पश्चिमी भारत
नवी मुंबई। मित्रो हम सभी शुद्ध दूध पीना चाहते हैं और पूरी दुनिया में शोध के पश्चात यह सिद्ध हो चुका है भारतीय गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ है अब इसमें कोई दो राय नहीं। किंतु विभिन्न सरकारी निर्माण कंपनियां कभी भी भवन निर्माण योजना में अथवा योजना बनाने के पहले गोवंश के संरक्षण हेतु अथवा उनके संवर्धन हेतु कोई भी योजना नहीं बनाती है। जबकि भारत सरकार इस दिशा में निश्चित रूप से बहुत अधिक सहायता एवं सुझाव दे रही। इस लापरवाही का एक उदाहरण नवी मुंबई के खारघर में एक ट्रस्ट द्वारा संचालित गौशाला को सिडको द्वारा तोड़ने का नोटिस देने से यह और अधिक स्पष्ट हो गया है। हजारों गांव अधिग्रहण करने के पश्चात किसी भी गोवंश अथवा आवारा पशु के लिए सिडको ने कभी भी कोई योजना नहीं बनाई।
सारी नियम कानून सिर्फ पैसे वाले अथवा भवन निर्माताओं के लिए कोई मायने नहीं रखते। समुद्र के किनारे की जमीन बिल्डर्स को दे दी जाए वहां पर भी मैंनग्रूव को नष्ट कर अपना रास्ता बनाएं कंस्ट्रक्शन करें चलेगा। समुद्र में जेटी बनाने के लिए निर्माण किया जाए चलेगा। कचरा फेंकने के लिए ट्रकों को अनुमति दी जाएगी। लेकिन भटकती हुई आवारा गाय को कोई संस्था तनिक सी जमीन लेकर सेवा भाव से कार्य करती है तो उसको सिडको नोटिस देने में पीछे नहीं आती। तब सिडको को पर्यावरण संरक्षण की चिंता होती है और वह समुद्री खरपतवार यानी मेनगुव्र को बचाने के लिए चिंतित होने लगती है। ऐसी ही एक घटना खारघर में मौजूद आवारा भटकती गाय को बचाने के लिए गुरु गोलवलकर संस्था द्वारा सेवा का आरंभ किया गया तो उसमें सिडको ने लंबा चौड़ा नोटिस भेज दिया। यहां पर स्थानीय पुलिस भी गोवंश को जो कि अवैध रूप से पकड़ी जाती है उसको लाकर रखती है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र के पशुपालन विभाग द्वारा गोवंश की जानकारी हेतु कानों में टैगिंग भी की जाती है। यह पैकिंग एक तरीके से गोवंश का आधार कार्ड होती है।
इसके पहले भी गर्वित भारत ने आसपास के गौशालाओं की शोध हेतु अपना का आरंभ किया था इसके लिए ट्रस्ट के अध्यक्ष विपुल लखनवी ने स्वयं गौशालाओं का निरीक्षण किया और गोवंश को बचाने हेतु आमजन से आवाहन भी किया था। किंतु स्वार्थी लोग को दूध तो हमको शुद्ध चाहिए लेकिन कुछ करना न पड़े। गायों को फिर से आवारा भटकने के लिए सिडकों के इस आदेश पर अधिकतर लोग तो चुप होकर सो जाएंगे।