लॉकडाउन में बच्चों को एक और महामारी फैल रही है जानिए क्या !

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  • कोरोंना अपनी जगह है  महामारी के रूप में लेकिन लॉक डाउन में अधिक और इससे पहले से दुनियां भर के बच्चे एक और महामारी की गिरफ्त में हैं, उस महामारी का नाम है,”मोबाइल”

पीयूूष गौतम का लॉकडाउन अवधि का विशेष लेख जनता को अपने बच्चों को जागरूक करना है न कि किसी भी प्रकार का भ्रम फैलाना

(www.arya-tv.com)एक दौर हुआ करता था, जब लैंडलाइन फोन मोहल्ले में एक आध लोगों के पास होते थे और जिनके नहीं होता था, वो पी पी नंबर देते थे लैंडलाइन फोन वाले रईस होते थे, ज्यादातर व्यापारी ही होते थे ,यही कोई बीस साल में सब कुछ बदल गया।
अब एक व्यक्ति के पास दो—दो मोबाइल और चार चार सिम है, विकट स्थिति ये है कि दुधमुंहे बच्चे के पास मोबाइल है, और वो अपनी नन्ही सी अंगुलियों से उसकी स्क्रीन पर घंटो बिताता है, हर घर की यही कहानी है।

बच्चों के हाथ में इस महामारी का हमको पता ही नहीं और पता भी है तो हम कुछ कर नहीं सकते, जिस तरह एक ड्रग एडिक्ट सुबह आंख के खुलते ही नशा करता है, वैसे ही बच्चे भी मोबाइल के स्पर्श से ही नींद उड़ाते हैं,सुबह से देर रात तक, खाना खाते हुए, नाश्ता करते हुए, सोते, जागते बस मोबाइल चाहिए। युवा, प्रोढ़ और वृद्धों को फिर भी इतना एडिक्ट नहीं देखा गया, जितनी बच्चों को लत है।
बच्चे अख़बार नहीं पढ़ते, बातचीत नहीं करते, दैनिक कार्यों से जी चुराते है, कोर्स की किताब के साथ भी मोबाइल रखते हैं ताकि कोई दुविधा हो तो गूगल कर लें, इतना ही नहीं बच्चों का टीवी से भी मोहभंग हो गया, अब वे टीवी पर न्यूनतम समय देते हैं और आउटडोर खेल तो बंद से ही हो गए, 12-13 साल की उम्र में ही आंखों के नीचे गहरा रंग होना, नींद पूरी नहीं होना, नेत्र क्षमता कम होना, चिड़चिड़ापन और आभासी दुनियां में गुम होना सभी बच्चों के सामान्य लक्षण हैं ।

कुछ माता पिता भी अपनी सहूलियत और शांति के लिए बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट उपलब्ध करवा देते है, ताकि बच्चे अपने में व्यस्त रहें

कुछ मम्मियां तो अपने अबोध बच्चों को खाना ही तब खिला पाती हैं जब मोबाइल में कोई गाना या गेम चलाया जाए, अन्यथा बच्चे खाना ही नहीं खाते, बच्चों को और उनके माता पिता को इस महामारी का जोखिम और रिकवरी का अंदाज़ा नहीं है, बच्चे इन पर सामूहिक मारधाड़ के खेल खेलते है, आप उनके मुंह से सुन सकते हैं “मैं उसको मारता हूं, तू उसको गोली मार”,यही नहीं अपरिपक्व बच्चों के हाथ में हथगोले से भी ज्यादा विस्फोटक ये मोबाइल कई घिनौनी, वीभत्स और अश्लील सामग्री बिना चाहे लगातार परोसता रहता है। इसके कारण बच्चे समय से पहले वयस्क नजर आने लगे हैं, उनका गुस्सा, उनकी जबान दराजी और उनकी असहनशीलता साफ दिखाई देती है, विडंबना ये है कि स्कूल का होमवर्क, असाइनमेंट और आवश्यक सूचनाएं भी मोबाइल पर ही उपलब्ध है, तो मां बाप भी विवश हैं करें तो क्या करें…?

लॉक डाउन में तो ये स्थिति है कि बच्चे ना तो बाहर जा सकते हैं, तो वे सारा दिन और देर रात तक मोबाइल से चिपके रहते हैं, घंटो मोबाइल पकड़े रहने के कारण उनके हाथ की छोटी अंगुली में विकार (टेढापन) भी देख सकते हो आप,जीवन कौशल प्रसंग, धार्मिक कथाएं, पौराणिक कहानियां और सामान्य ज्ञान से कोसों दूर जा रहे हैं ये बच्चे, इनको टिकटोक, फेसबुक, वॉट्सएप, यूट्यूब और इंस्टा की इतनी लत है कि हर क्षण दिमाग में वहीं सब घूमता रहता है, कोई बच्चा ऐसा नहीं है, जो इस वक्त रामायण, महाभारत या चाणक्य देख रहा हो ये केवल बुजुर्ग देख रहे हैं।

मेरे इस लेख के पीछे यह उद्देश्य है कि आपके पास लॉक डाउन खुलने तक का समय है, आप भी खुद मोबाइल को सुबह और शाम को ही काम में लें, क्योंकि बच्चे बड़ों का अनुसरण करते हैं।बच्चों के साथ खेलें, बातचीत करें, कहानियां सुनाएं, साहित्य या अन्य पुस्तकें पढ़ने को कहें, जीवन के संस्मरण सुनाएं, नैतिक बातें बताएं और सृजनात्मक गतिविधियां करवाएं। अगर बच्चों ने इस मोबाइल की लत को नहीं छोड़ा तो इसके परिणाम गंभीर और घातक होंगे।

`स्वरचित:-
पीयूष गौतम, जयपुर, राजस्थान
9983217770