भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिका की सरकारी एजेंसी ने उगला जहर, बाइडन प्रशासन से की ये मांग

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(www.arya-tv.com) अमेरिका की सरकारी एजेंसी यूएस कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर एक बार फिर जहर उगला है।

यूएससीआईआरएफ ने बाइडन प्रशासन से विदेशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को कथित रूप से निशाना बनाने का हवाला देते हुए अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत को “विशेष चिंता का देश” के रूप में नामित करने का आह्वान किया है।

इस सरकारी एजेंसी की आवाज तब नहीं निकलती जब अमेरिका पूरी दुनिया में आतंकवाद के नाम पर निर्दोष मुसलमानों का खून बहाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका ने आतंकवाद के नाम पर कितने निर्दोष अफगानों को मार डाला।

इराक पर सामूहिक विनाश के हथियारों का झूठा आरोप लगाकर आक्रमण किया और सद्दाम हुसैन को पकड़कर फांसी पर लटका दिया। समृद्धि की ओर बढ़ रहे लीबिया को तबाह कर दिया।

खालिस्तान को लेकर भारत पर लगाया आरोप

यूएससीआईआरएफ ने जहर उगलते हुए कहा कि “विदेश में कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों को चुप कराने के भारत सरकार के हालिया प्रयास धार्मिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

” एक बयान में कहा गया, “यूएससीआईआरएफ ने भारत के व्यवस्थित, चल रहे और धार्मिक या विश्वास की स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघनों के कारण भारत को विशेष चिंता का देश नामित करने के लिए अमेरिकी विदेश विभाग से आग्रह किया है।”

यूएससीआईआरएफ ने भारत के खिलाफ उगला जहर

यूएससीआईआरएफ के कमिश्नर स्टीफन श्नेक ने कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में बिना सबूत भारत की संलिप्तता का आरोप दोहराया।

उन्होंने अमेरिका में रहकर भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की कथित तौर पर हत्या की साजिश के दावे को बेहद परेशान करने वाला बताया।

अमेरिका में भारतीय दूतावास ने इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। भारत शुरू से ही अमेरिकी एजेंसी के इस आरोप को सिरे से खारिज करता रहा है।

धार्मिक भेदभाव में अमेरिका सबसे अव्वल

अमेरिका खुद स्वीकारता है कि उसके देश में धार्मिक अत्याचार काफी ज्यादा हैं। हाल के दिनों में अमेरिका में यहूदियों के खिलाफ हिंसा में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है।

कुछ ऐसा ही हाल अमेरिका में रहने वाले हिंदुओं का भी है। अमेरिका खुद काले-गोरे के भेदभाव का सबसे बड़ा पीड़ित देश है। इसके बावजूद वह अपने गिरेबान में झांकने के बजाए पूरी दुनिया को ज्ञान देने की नाकाम कोशिश करता रहता है।