क्या जनहित में अब मुख्य न्यायाधीश स्वत: संज्ञान लेंगे !

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  • राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति के प्रकरण से आप आदमी की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महकमे की पोल खुली।
  • महांति को पहले पॉजिटिव और ताबड़तोड़ पांच जांच कर नेगेटिव बताया। आम पीड़ि़त की तो दोबारा जांच ही नहीं होती। कोई सुध भी नहीं लेता।

(www.arya-tv.com)राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति का 14 अगस्त को कोरोना टेस्ट हुआ तो उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। महांति ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट पर संदेश व्यक्त किया तो चिकित्सकों ने अगले तीन दिन में पांच जांचे कर महांति को नेगेटिव घोषित कर दिया। यह तो महांति मुख्य न्यायाधीश थे, इसलिए तीन दिन में पांच जांचें हो गई। सवाल उठता है कि क्या ऐसी प्रक्रिया आम आदमी के लिए भी अपनाई जाती है? सब जानते हैं कि जांच के बाद एसिप्टोमेटिक रिपोर्ट आने के बाद कोरोना संक्रमित व्यक्ति को 14 दिनों के लिए घर पर ही क्वारंटीन कर दिया जाता है। पॉजिटिव रिपोर्ट आने वाले दिन तो चिकित्साकर्मी घर पर आकर दवाई दे जाते हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में बाद में पीडि़त की कोई सुध नहीं ली जाती।

दावा तो किया जाता है कि तीन चार दिन में दोबारा जांच होती है लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश मामलों में चिकित्साकर्मी बुखार तक की भी जांच नहीं करते हैं। पॉजिटिव होने के बाद अनेक मरीजों को कई दिनों तक बुखार रहता है, जिससे सारा बदन दर्द करता है। चूंकि विभाग का चिकित्साकर्मी नहीं आता है, इसीलिए मरीज बाजार से महंगी दवाईयां खरीद कर खाता है। मुख्य न्यायाधीश माहांति चाहे तो पॉजिटिव मरीजों को बुलाकर हकीकत से अवगत हो सकते हैं। जब चिकित्सा विभाग मुख्य न्यायाधीश के मामले में इतनी लापरवाही बरत सकता है तो फिर आम आदमी की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जाहिर है कि पॉजिटिव नहीं होते हुए भी मुख्य न्यायाधीश को पॉजिटिव घोषित कर दिया गया। कहा जाता है कि अदालत सबूत मांगती है। चिकित्सा विभाग की लापरवाही का सबूत तो खुद मुख्य न्यायाधीश हैं।

अच्छा हो तो मुख्य न्यायाधीश माहंति अब स्वत: संज्ञान लेकर चिकित्सा विभाग के काम काज की जांच करें। महांति को अब यह समझना चाहिए कि कोरोना काल में संक्रमित व्यक्ति बेहद परेशान है। जिन पॉजिटिव मरीज को ऑक्सीजन आदि की जरुरत होती है, उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जो मरीज सरकारी अस्पताल में भर्ती हुआ है उसे बुलाकर पूछा जाए कि अस्पताल के हालात कैसे हैं? यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति अस्पताल से जिंदा आ गया तो वह व्यक्ति के परिजन का श्रम है या फिर ईश्वर का चमत्कार। जिन चिकित्सा कर्मियों को कोरोना वरियर्स की उपाधि दी जा रही है, उन्हीं वरियर्स के बारे में अस्पताल में भर्ती मरीज सही जानकारी देगा। अनेक परिजन तो अस्पताल की दुर्दशा की वजह से अपने मरीज को प्राइवेट अस्पतालो में ले जाते हैं।

जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल, सीके बिरला अस्पताल जैसों की तो चांदी हो गई है। एक तरफ तो कहा जाता है कि कोरोना का कोई इलाज नहीं है, दूसरी तरफ लूटेरों की भूमिका निभा रहे प्राइवेट अस्पताल कोवउि का इलाज करने के नाम पर पांच लाख रुपए तक की वसूली कर रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से चलाए जाने वाले अस्पताल में ऐसी लूट। वो भी तब जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर गांधीवादी अशोक गहलोत बैठे हुए हैं। मुख्य न्यायाधीश महांति को यह भी पता लगाना चाहिए कि तीन दिन में उनकी पांच रिपोर्ट कैसे आ गई? चिकित्सा विभाग का दावा है कि महांति के सैम्पल की जांच आरटीपीसीआर मशीन पर हुई है। चिकित्सकों के अनुसार एक जांच रिपोर्ट के लिए सैम्पल को मशीन में कम से कम आठ घंटे रखा जाता है। इसी प्रकार एक बार सैम्पल लेने के बाद दूसरे सैम्पल में चौबीस घंटे का अंतराल होना चाहिए।

सवाल उठता है कि कया यह प्रक्रिया मुख्य न्यायाधीश के प्रकरण में अपनाई गई? महांति की पांच जांचों की रिपोर्ट तीन दिन में आ सकती है, जबकि आम आदमी अपनी रिपोर्ट के कई दिनों तक इंतजार करता है। मुख्य न्यायाधीश के प्रकरण ने चिकित्सा विभाग की पोल खोल कर रख दी है।

(एस.पी.मित्तल) M-09829071511 (लेखक के निजी विचार हैं)