शौचालय में रहकर जीती… संघर्ष के बाद मिली नौकरी

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इंदौर।(www.arya-tv.com) जब हम किसी सार्वजनिक शौचालय के  करीब से गुजरते हैं तो अनायास ही नाक पर रूमाल रख लेत हैं। सोचिये यदि किसी को यहीं रहना हो तो हालात क्या होगी? शहर के ऐसे ही एक सार्वजनिक शौचालय में दस साल रही जूही झा ने विकटताओंं को हराते हुए देश के लिए खो-खो में अंतर्राष्ट्रीय पदक जीता।

मगर संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। विक्रम पुरस्कार मिलने के बाद तीन साल सरकारी विभागों के चक्कर काटने पड़े। मगर खिलाड़ी का जज्बा था कि हार नहीं मानी। आखिरकार अब जाकर संघर्ष खत्म हुआ और भोपाल में जूही सहित दो साल पहले विक्रम पुरस्कार पाने वाले खिलाडिय़ों को विभागों के बंटवारे की लॉटरी पद्धति से हुए।

खिलाडिय़ों को शासकीय नौकरी नहीं मिलने का मुद्दा एक समाचार पत्र ने प्रमुखता से उठाया था। जूही ने चहकते हुए बताया कि आखिकार संघर्ष काम आया। मुझ सहित 2018 में विक्रम पुरस्कार पाने वाले खिलाडिय़ों के साथ बीते कुछ सालों में नौकरी नहीं पा सके खिलाडिय़ों को भी भोपाल बुलाकर शासकीय विभाग आवंटित किए गए हैं।

गंजी कंपाउंड स्थित सार्वजनिक शौचालय में जूही क पिता सुबोध कुमार झा नौकरी करते थ। पांच लोगों का परिवार यहीं पर एक कमरे में रहता था। कमरा दस बाय दस फिट का था। घर चलो के लिए मां रानी देवी झा भी सिलाई करके योगदान देती थीं। जूही यहां दस साल रही। वे बताती है जब मैं चौथी कक्षा में थी तो समीप सबनीस बाग स्थित हैप्पी वॉण्डरर्स मैदान पर खो-खो शौकिया तौर पर खेलना शुरू किया था।