क्या अमेरिका भारत को अलग-थलग कर पाएगा ?

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विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

  • क्या इसराइल भी भारत विरोधी हो जाएगा ?
  • क्या जोय बिडेन की इजरायल यात्रा भारत के विरुद्ध जा सकती है ?

अमेरिका के सुपरपॉवर बने रहने में रोड़ा सिर्फ भारत है और ये लंबा कांटा है क्योकि दोनों लोकतांत्रिक देश है। युद्ध तो कभी होना ही नही है बस दोनो एक दूसरे को आर्थिक और तकनीक क्षेत्र में गरियाते रहेंगे।

यही वजह है कि अमेरिका कभी पाकिस्तान को डूबने नही देगा, अमेरिका पूरी कोशिश करेगा कि पाकिस्तान कभी प्रगति न करे गुलाम बनकर रहे और भारत विरोधी बना रहे। कश्मीर का मुद्दा कभी शांत न हो और विश्व इजरायल की ही तरह भारत को भी एक इस्लाम विरोधी देश के रूप में देखे। इसी तरह की नीति में अमेरिका का भला है।

यदि आप गौर से देखेंगे तो मालूम पड़ेगा पूरी दुनिया में आतंकवाद को बढ़ाने, पालने और पोषित करनेवाला अमेरिका ही निकलेगा। क्योंकि आपस में देशों को लड़ाकर देशों में तनाव पैदा कर यह अपने हथियारों व्यापार का एक बड़ा क्षेत्र ढूंढ लेता है। आप इजराइल में देखिए इसराइल को खुलेआम समर्थन कर रहा है लेकिन हमास की भी सहायता करने की बात कर रहा है? गाजा पट्टी का निर्माण तो कुछ इसी मंशा को सोचकर किया गया था। आखिर हमास के आतंकवादियों के पास अमेरिका के हथियार कैसे मिले? इसका साफ कारण है। वह एशिया के मुस्लिम देशों को हथियार बेचता है और गाजा पट्टी के नामपर उनको हमास फिलीस्तीन मुक्ति संगठन जैसे और भी तमाम संगठन है जिनको बेचा करता है। कुल मिलाकर तेल का सारा पैसा अमेरिका के पास चला जाता है।

लगभग 85 वर्ष पूर्व भारत के ₹1 में 5 डॉलर मिल जाते थे लेकिन जब रेगिस्तान के अरब देशों में तेल की खोज हुई तब अमेरिका सबसे पहले वहां पहुंचा और उसने उन तेल उत्पादक देश से यह समझौता किया कि वह अपना व्यापार डॉलर में करेंगे इस प्रकार पूरे विश्व पर उसने डॉलर को थोप दिया। लेकिन वर्तमान में नरेंद्र मोदी के कारण एक अलग अर्थव्यवस्था जो कि अमेरिका को चुनौती देने वाली थी वह खड़ी हो गई और यहां तक डॉलर का भी विकल्प तैयार करने की बात हो रही है। यह बात अमेरिका बर्दाश्त नहीं कर सकता है इस कारण वह कैसे भी भारत को आर्थिक रूप से बेबस करना चाहता है।

इजरायल में जो बिडेन की यात्रा भारत के लिए एक खतरनाक संकेत भी हो सकता है क्योंकि आने वाले समय में हो सकता है अमेरिका इजराइल का मुस्लिम देशों के साथ समझौता भी कर दे और यह शर्त रख दे कि इजरायल भारत का साथ नहीं देगा। कुछ इसी प्रकार उसने इजरायल की मोनोपोली को नष्ट किया था क्योंकि अमेरिका में अधिकतर व्यवसायी यहूदी थे और 30 के लगभग नोबेल पुरस्कार भी यहूदियों को ही मिल चुके हैं जो अमेरिका को फूटी आंख नहीं भाता है लेकिन अब भारत उसकी चुनौती देने लायक हो गया।

कारण चीन तो 15 साल में ठह जाएगा लेकिन भारत एशिया की महाशक्ति बनकर उबरेगा और यह अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा। इसलिए अपनी दूरगामी नीतियों के अंतर्गत वह भारत को अलग-अलग करने की योजनाएं बना रहा है और हो सकता है यह हमारे आपके सामने लागू भी हो जाए। हमें इन सबके लिए तैयार रहना होगा और आगे किस प्रकार भारत को अलग-अलग करने की योजना सफल होगी यह तो आने वाला समय बताएगा।

लेकिन यहाँ अमेरिका हजारों गलतियां कर रहा है जो खुद उसे ही ले डूबेगी। पहली बात तो यह कि वह खुद दुनिया से आइसोलेट हो गया है। सिवाय ब्रिटेन और कनाडा के उसके तलवे चाटने वाला कोई देश नही है। भारत को प्रयास करना चाहिए कि रूस एक शक्तिशाली देश बना रहे जो पश्चिम जगत को चुनौती दे।

प्राकृतिक गैस का जो संकट है उसे लेकर दिसम्बर तक कई देशो में बड़े दंगे और हिंसा देखने को मिल सकती है। अमेरिका यही चाहता है कि देश लड़ते मरते रहे, ताकि इनकी कंपनियां नया बाजार ढूंढे और जैसा कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका मे निवेश हुआ था। आप अमेरिका और भारत की तुलना 20 ट्रिलियन डॉलर और 3 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी वाले देशो के आधार पर बिल्कुल मत कीजिये।

100 साल पहले तो ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्यास्त नही होता था आज सूर्योदय के भी लाले पड़े हुए है। डॉलर को 100 रुपये के पार हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ हुआ नही। कारण यही है कि मोदी अच्छा काम कर रहे है।

लेकिन हमारा विपक्ष नालायक है अंबानी अडानी जैसे लोगो को एक विलेन की तरह दिखा रहा है, पश्चिम बंगाल का बंदरगाह ममता बनर्जी ने अडानी को बेचा है लेकिन वो इसे भी मोदी की डील बता रहे है। लोग बातों में घूम भी रहे है लेकिन ये समझने को तैयार नही है कि निर्यात सुधारने है तो बंदरगाहों को सुधारना ही होगा और ये 10 से 5 की नौकरी करने वाले सरकारी अफसरों के बस की नही है इसमे कॉरपोरेट ही चाहिए।

भारत जो कर रहा है वही करते रहना चाहिए, अमेरिका ने चीन के विरुद्ध प्रस्ताव रखा भारत उससे बाहर हो गया। जो कि अच्छा संदेश है जहाँ जरूरत नही वहाँ नही उलझना। इंडो पेसिफिक में जरूर हम अमेरिका के साथ है क्योकि कल को चीन से युद्ध करना ही पड़ा तो वह क्षेत्र भारत की विजय में सबसे बड़ी भूमिका निभाएगा।

भारत को सिर्फ निवेश बढ़ाना है और अपने कॉरपोरेट जगत को उठाना है। आज के स्टार्टअप ही कल के टाटा अंबानी होंगे और आज के टाटा अंबानी ही कल के माइक्रोसॉफ्ट और गूगल बनेंगे। जैसे ही भारत का कॉरपोरेट उछलेगा आप देखना डॉलर का भी इलाज हो जाएगा। आज अमेरिकी अर्थव्यवस्था तंग है लेकिन उसका डॉलर आसमान में है इसके दो ही प्रमुख कारण है पहला तेल के दाम डॉलर में तय होना और दूसरा गूगल माइक्रोसॉफ्ट जैसे मोनोपॉली प्रोडक्ट सिर्फ उन्ही के पास है जिनका डंका पूरी दुनिया मे बजता है।

तेल का इलाज तो इलेक्ट्रिक कारे कर देगी लेकिन डेटा साइंस की इस नई इंडस्ट्री का इलाज तो हमारे वैज्ञानिकों और पूंजीपतियों को ही ढूंढना होगा और यदि घर मे ही उनका विरोध होगा तो वो ऐसे थोड़ी न ढूंढ सकेंगे। ये 10 से 25 साल की प्रोसेस है।

इसलिए अपनी सरकार का साथ दीजिये, अपने उद्योगपतियो के साथ खड़े रहिये ये औद्योगिक क्रांति वाला दौर नही है जहाँ कोड़े मारकर फेक्ट्री में काम करवाया जाता हो। समय बदल गया है आप भी बदलिए बाकी विपक्ष तो 1885 के जमाने मे ही ले जाने का प्रयास करेगा ही।