वीर शिवाजी राम के अंशावतार क्यों ?

Lucknow

(www.arya-tv.com)वर्तमान साक्षत्कार श्रृंखला में पत्रकार डॉ. अजय शुक्ला ने राम के विषय में और अधिक शोध व जानकारी के लिए संकल्प लिया और पूर्व परमाणु वैज्ञानिक, कवि लेखक, सनातन चिंतक, विचारक विपुल लखनवी जी का साक्षात्कार लिया है। जो अपने ट्रस्ट गर्वित के माध्यम से वेब चैनल और ब्लॉग के द्वारा सनातन की गहराई और हिंदुत्व की ऊंचाई को आधुनिक विज्ञान के द्वारा जनमानस तक पहुंचाने का बीड़ा उठाए हुए हैं।

डॉ.अजय शुक्ला : सर आप वीर शिवाजी महाराज को राम का अंशावतार क्यों मानते हैं।

विपुल जी: किसी भी कार्य का मूल्यांकन देशकाल और परिस्थिति के अनुसार किया जाता है। और इस तुलनात्मक अध्ययन में सबसे बड़ा कारण है शिवाजी महाराज की मर्यादा।

अजय जी: वह कैसे?

विपुल जी: भगवान राम ने मर्यादा तब निभाई थी जब त्रेता युग था यानी 75% से 50% तक अच्छे लोग थे। शिवाजी महाराज ने मर्यादा तब निभाई जब केवल 25 प्रतिशत से शून्य प्रतिशत तक ही अच्छे लोग मिलते थे यानी कलियुग था।

डॉ.अजय शुक्ला : कृपया पाठकों को और स्पष्ट करें !

विपुल जी : राम लक्ष्मण को गुरु शिष्य अपने साथ राक्षसों का वध करने के लिए ले गए थे शिवाजी महाराज ने भी मुगल आततायियों का वध किया।

राम जी अपने माता-पिता के आदेश पर राजपाट त्याग कर निकल गए। अपनी मां के आदेश पर अपनी जान पर खेल कर उन्होंने किला जीत कर अपनी मां को भेंट किया।

जिस समय मुगल और अंग्रेज पूरी दुनिया में आतंक मचाए थे शिवाजी महाराज ने दुश्मन की पुत्रवधू गौहरबांनू को मां का दर्जा दिया। इज्जत के साथ अपने घर पहुंचवाया। ऐसा उदाहरण इतिहास में कहीं नहीं है।

राम जी गुरु भक्त थे शिवाजी महाराज ने अपने गुरु के लिए शेरनी का दूध लाकर दिया था। राम लक्ष्मण ने जब शक्ति की आराधना की तो उनको देवी ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया था शिवाजी महाराज को भी तुलजा भवानी ने तलवार भेंट की थी।

शिवाजी महाराज ने कभी भी शत्रुवध करने के लिए किसी धार्मिक स्थल पर जैसे मस्जिद इत्यादि पर कभी हमला नहीं किया। मुगल बचने के लिए दरगाह और मस्जिद में छुप जाते थे।

राम जी ने न्यायकारी थे शिवाजी महाराज बेहद न्याय प्रिय पसंद व्यक्तित्व थे।

शिवाजी महाराज सदैव वृद्ध व रोगी का सहयोग व सम्मान करते थे सहायता करते थे।

आप शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़िए आपको सैकड़ो प्रसंग मिल जाएंगे जहां पर शिवाजी महाराज दिल जीत लेते हैं।

डॉ.अजय शुक्ला : औरंगजेब तो उनको पहाड़ी चूहा कहता था।

विपुल जी : जी बिल्कुल गोरिल्ला युद्ध को दुनिया में लाने का श्रेय शिवाजी महाराज को है। औरंगजेब की सवा लाख सेना को केवल ढाई सौ से भी कम मराठा सैनिक गुरिल्ला युद्धकर उसको परास्त कर देते हैं। छोटे कद के बेहद फुर्तिले और बुद्धियुक्त व्यक्तित्व था शिवाजी महाराज का। मैंने तो शिवाजी महाराज की एक आरती भी लिखी है।

अजय शुक्ला : मतलब हम शिवाजी महाराज का पूजन भी कर सकते हैं?

विपुल जी : जी बिल्कुल शिवाजी महाराज का पूजन किया जा सकता है। क्योंकि वह महायोगी थे। हमारे देश में अनेकों योगी हुए हैं जिनका पूजन देश के अनेक भागों में होता है।

डॉ.अजय शुक्ला : महायोगी वह कैसे हुए।

विपुल जी : भगवान श्री कृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है कर्मेषु कौशलं। यानी जो अपना कार्य कुशलता से करता है और योगी है यह पहचान है।
अष्टांग योग के अनुसार पांचो वाहिक अंगों पर विशेष ध्यान देते थे। इसके अतिरिक्त उनको मां ने दर्शन दिए गए थे और तुलजा भवानी ने उनको तलवार भेंट की थी।

जब गुरु के लिए शेरनी का दूध निकालने गए तब शेरनी अपने शावक को दूध पिला रही थी उन्होंने अहिंसक भाव से उस शेरनी से प्रार्थना की कि मुझे गुरु के लिए कुछ दूध प्रदान करें। तब शेरनी ने अपने बच्चों को अलग कर दिया था और शिवाजी महाराज ने शेरनी का दूध निकाल दिया था।

आप ध्यान दीजिए तो शिवाजी महाराज के चरित्र में कई जगह उनके योगी होने की झलक दिख जाती है।

डॉ.अजय शुक्ला : लेकिन सुनते हैं उन्होंने आठ शादी की थी।

विपुल जी : जी यह पहले मजबूरी थी क्योंकि आसपास के रजवाड़ो से मित्रता बनाए रखने के लिए उनसे रिश्तेदारी कर ली जाती थी। कहीं पर भी उन्होंने जबरदस्ती विवाह नहीं किया। भगवान श्री कृष्ण के भी आठ पटरानियां थी। वे कभी भोग विलासिता में लिप्त नहीं रहते थे।

डॉ.अजय शुक्ला : क्या वर्तमान स्थिति में शिवाजी महाराज के साथ न्याय हुआ है?

विपुल जी : जी जो स्थान उनका मिलना चाहिए था वह पिछली सरकारों ने नहीं दिया था लेकिन अब आशा करता हूं कि हमारे इतिहास में शिवाजी महाराज के चरित्र को प्रमुखता से स्थान दिया जाएगा।

डॉ.अजय शुक्ला : साक्षात्कार हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

विपुल जी : आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद। जो आप अपने पत्र के माध्यम से सनातन के विषय में महापुरुषों के विषय में जगत को अवगत कराते रहते हैं। मेरी शुभकामनाएं और आशीर्वाद आपके साथ है।