हिप एरिया का फैट कम करने के लिए हर दिन चाहिए बस 20 मिनट, करें बटरफ्लाई और स्क्वॉट योगा

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(www.arya-tv.com)  यंगस्टर्स की सबसे बड़ी समस्या बन रहा है लोअर बॉडी पार्ट और हिप एरिया पर बढ़ता फैट। इस फैट का कारण है, लंबी सिटिंग जॉब।

कई घंटे एक ही जगह बैठे रहने के कारण आमतौर पर पुरुषों के पेट पर फैट बढ़ता है महिलाओं के कमर के निचले हिस्से और थाई पर। अब फैट से बचने के लिए जॉब तो नहीं छोड़ सकते! लेकिन फिट भी रहना है…इसलिए हम आपके लिए लाए हैं ऐसे दो योगासन जिन्हें करने से ना तो आपके पेट पर फैट जमा होगा ना ही हिप एरिया पर…

सिटिंग जॉब के कारण यंगस्टर्स के लोअर बॉडी पार्ट में तेजी से बढ़ता फैट उन्हें सेहत संबंधी कई तरह की परेशानियां दे रहा है। इससे बचने लिए योग करना और फिटनेस कॉन्शस रहना तो जरूरी है ही। साथ ही आपको अपने डिनर की टायमिंग पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है। कोशिश करें कि बिस्तर पर जाने से कम से कम दो घंटे पहले डिनर जरूर ले लें।

बटर फ्लाई या तितली आसन

तितली आसन करने के लिए आप सुखासन में बैठ जाएं, अपनी सांस को नॉर्मल करें। अब धीरे-धीरे दोनों पैरों के तलुओं को एक-साथ मिलाएं और दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसाते हुए दोनों पैर के पंजे मुट्टी में होल्ड कर लें।

अब दोनों पैरों को तितली के पंखों की तरह ऊपर-नीचे मूव करें। आप यह आसन हर दिन 5 से 10 मिनट तक कर सकते हैं। इससे पेल्विक मसल्स को टोन करने में मदद मिलती है। हिप और थाई का फैट कम होता है। पेट पर चढ़ी चर्बी हट जाती है और बैक पेन में आराम मिलता है।

यह आसन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होनेवाली समस्याओं से निजात दिलाता है। जैसे क्रैंप्स, अनियमितता, लोअर बॉडी पार्ट में तेज दर्द और बेचैनी। लेकिन इस बात का खास ध्यान रखें कि महिलाओं को यह आसन पीरियड्स के दौरान नहीं करना चाहिए। इस समय में आप केवल वॉक करें।

तितली आसन पैरों की और खासतौर पर जांघों की मसल्स को मजबूत बनाता है। इससे घुटनों पर एक्स्ट्रा दबाव नहीं पड़ता और वेट कंट्रोल में रहने से आप अच्छा और एनर्जेटिक फील करते हैं।

स्क्वॉट पोजिशन (मलासन)

स्क्वॉट पोजिशन को मलासन के रूप में जाना जाता है। इस आसन को करने के लिए आप एक स्थान पर सीधे खड़े हो जाएं। अपने पैरों के बीच एक से डेढ़ फीट का गैप बनाएं और घुटनों से पैर मोड़कर कुर्सी पर बैठने की पोजिशन मेंटेन करके रखें।

फोटो में आप देख सकते हैं कि आपको ना तो कुर्सी पर बैठना है और ना ही उकड़ू (इंडियन टॉइलट में बैठनेवाला पोश्चर) बैठना है। आप स्क्वॉट पोजिशन में खुद को जितनी देर हो सके होल्ड करें। यह प्रक्रिया आपको 15 से 20 बार दोहरानी है। आप इसके 2 से 3 सेट एक बार में कर सकते हैं। हर सेट के बीच 10 से 15 सेकंड का ब्रेक लें।

कुछ दिन इस पोजिशन की प्रैक्टिस करने के बाद जब आपकी मसल्स फ्लैग्जिबल हो जाएंगी तब आप पूरी तरह स्क्वॉट पोजिशन करने में सक्षम हो जाएंगे। शुरुआती तौर पर अपनी मसल्स पर बहुत अधिक दबाव नहीं डालना चाहिए। बल्कि मसल्स को धीरे-धीरे लचीला बनाने का प्रयास करना चाहिए।

बेहतर रिजल्ट के लिए आप स्क्वॉट पोजिशन योग सुबह और शाम कभी भी कर सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि हेवी मील लेने यानी खाना खाने के बाद कम से कम तीन घंटे का गैप जरूर रखें। खाना खाने के बाद कभी भी योग नहीं करना चाहिए। भोजन और योग प्रैक्टिस के बीच एक आदर्श टाइमिंग 4 घंटे की मानी जाती है।

इन स्थितियों में ना करें स्क्वॉड और बटरफ्लाई आसन

अगर आपको घुटनों में दर्द हो तो बटरफ्लाई योग नहीं करना है। ना ही स्क्वॉट पोजिशन ट्राई करना है। ये दोनों ही आसन आपको घुटनों के दर्द से निजात दिलानेवाले होते हैं लेकिन इनका अभ्यास उस वक्त बिल्कुल ना करें, जब आपको घुटनों में दर्द हो रहा हो। घुटनों में हल्का दर्द होने पर भी बिना एक्सपर्ट की सलाह के कभी योगासन नहीं करने चाहिए।

महिलाएं मैनस्ट्रुअल साइकल के दौरान योगाभ्यास ना करें। खासतौर पर योग की शुरुआत तो आपको इस समय पर बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। क्योंकि इस दौरान वैसे भी कई बॉडी पार्ट्स में दर्द रहता है और योगाभ्यास के कारण यह दर्द बढ़ सकता है।

बटरफ्लाई और स्क्वॉड पोजिशन योगा के फायदे बटरफ्लाई और स्क्वॉड पोजिशन हमारी बॉडी से और खासतौर पर हमारी बॉडी के लोअर पार्ट से सेल्युलाइट्स यानी डेड फैट को कम करती हैं। इससे हमारी बॉडी टोन होती है।

नियमित रूप से स्क्वॉट और बटरफ्लाई आसन करने से हमारे पेल्विक और पेल्विस एरिया की मसल्स स्ट्रॉन्ग बनती हैं।

ये दोनों ही योगासन पुरुषों में पेट बढऩे की समस्या पर लगाम लगाते हैं और महिलाओं में कमर के निचले हिस्से पर फैट जमा नहीं होने देते हैं।

इन दोनों योगासनों से महिलाओं और पुरुषों को घुटनों में दर्द, पाचन संबंधी दिक्कतों से निजात मिलती है। पाचन सही होने से वे पेट संबंधी अन्य बीमारियों से भी दूर रहते हैं।

तितली और स्क्वॉट दोनों ही आसन महिलाओं में हॉर्मोनल समस्याओं को दूर करते हैं। महिलाओं में यूट्रस संबंधी बीमारियां होने की संभावना को कम करते हैं।