असदुद्दीन ओवैसी ने चुनावी रैली में लगावाए बाबरी मस्जिद जिंदाबाद के नारे, जानिए क्यों हो रहा बवाल

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(www.arya-tv.com)  अब तक तीन चरण की वोटिंग हो चुकी है और जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे सभी राजनीतिक दलों के नेता चुनाव आयोग के नियमावली को ताक पर रखकर बयान दिए जा रहे हैं. एआईएमआईएम नेता और हैदराबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले असदुद्दीन ओवैसी (asaduddin owaisi) इस बार अपनी सभाओं में ‘बाबरी मस्जिद’ के समर्थन में जिंदाबाद (Babri Masjid Zindabad) के नारे लगवाने को लेकर सुर्खियों में हैं. औवेसी हमेशा अपनी तकरीरों में कहते रहे हैं कि 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद (babri masjid) को विध्वंस करने की घटना हमेशा लोगों के जेहन में रहेगी.

6 दिसम्बर, 1992 को किया गया था गुनाह

AIMIM मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने 6 मई को महाराष्ट्र के औरंगाबाद (aurangabad) में अपने प्रत्याशी इम्तियाज जलील (imtiaz jaleel) के समर्थन में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने ‘बाबरी मस्जिद जिंदाबाद’ के नारे लगाए. ओवैसी ने कहा कि 6 दिसम्बर, 1992 को गुनाह किया था. इसके बाद उन्होंने संसद में बाबरी के लिए लगाए गए नारों की याद दिलाई.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी उठाए थे सवाल

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर औवेसी ने कहा था पूरे सिस्टमैटिक तरीके से मुसलमानों से यह मस्जिद छीन ली गईं. बाबरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया. यह फैसला हमारे देश की सर्वोच्च अदालत का है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि धार्मिक विश्वास के आधार पर ये जगह हम मुसलमानों को नहीं दे सकते. इस जगह पर मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई.

मंदिर के उद्घाटन से पहले दिया था बयान

अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन से पहले भी हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था पूरे सिस्टमैटिक तरीके से मुसलमानों से ये मस्जिद छीन ली गई. बाबरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया. यह फैसला हमारे देश की सर्वोच्च अदालत का है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि धार्मिक विश्वास के आधार पर ये जगह हम मुसलमानों को नहीं दे सकते. इस जगह पर मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई. वहीं राम मंदिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर औवेसी ने सवाल उठाए थे और कहा था  कि फैसला मंजूर है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी गलती हो सकती है. ओवैसी ने सवाल किया था कि अगर मस्जिद नहीं गिरी होती तब भी सुप्रीम कोर्ट क्या यही फैसला करता?