मनवांछित फल पाने के लिए नवरात्र पर आयु के अनुसार करें कन्‍या पूजन, मिल सकते है कई फायदे

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(www.arya-tv.com) शारदीय नवरात्र की अष्टमी बुधवार को एवं गुरुवार को नवमी पूजन किया जाएगा। दोनों ही तिथियों पर कन्या पूजन का विधान है। मान्यता है कि नौ दिन की आराधना तभी पूर्ण होती है जब कन्या लांगुराें को पूजा जाए। पंडित वैभव जोशी के अनुसार नवरात्र में देवी के व्रतों में कन्या-पूजन (कुमारी-पूजन) अत्यन्त आवश्यक है। कुमारी-पूजन के बिना देवी पूजा अधूरी रहती है और व्रती को पूजा का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है।

क्या लिखा है देवी भागवत 

देवी भागवत के अनुसार नवरात्रों में कुमारी पूजन (भोजन) से देवी को जितनी प्रसन्नता होती है उतनी प्रसन्नता जप-हवन-दान से भी नहीं होती है। पहले दिन एक कन्या की पूजा करें और प्रतिदिन एक-एक कन्या का पूजन बढ़ाते जाना चाहिए। इस प्रकार नवें दिन नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए।

यदि प्रतिदिन कन्या-पूजन करने में असमर्थ हों तो अष्टमी या नवमी को कन्या-पूजन करना चाहिए। नौ कन्या और दो लांगुरों (बालकों) का पूजन आवश्यक है–एक गणेशजी के निमित्त और दूसरा भैरवजी के निमित्त। कन्या-पूजन करते समय धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिए। एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसे गंध व स्वाद का ज्ञान नहीं होता है।

कन्या पूजन करते समय नहीं चुनें इन कन्याओं को

– देवीभागवत के अनुसार दस वर्ष से ज्यादा अवस्था वाली कन्या का
पूजन नहीं करना चाहिए।

– जो अंधी, भैंगी (तिरछी नजर से देखने वाली), कानी, कुबड़ी व
कुरुप हो, ऐसी कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए।

– जो कन्या झगड़ालू या लालची हो उसका पूजन भी नहीं करना
चाहिए।

– जिसके शरीर पर बहुत अधिक रोम (बाल) हों, बीमार या रजस्वला
हो, उस कन्या का पूजन भी नहीं करना चाहिए।

– जिसके शरीर से दुर्गन्ध आती हो या जो निम्न कुल की हो, उस
कन्या को पूजा में नहीं लेना चाहिए।

भोजन करवाने के बाद सभी कन्याओं व बटुकों को कोई ऋतुफल, मिठाई, दक्षिणा, वस्त्र तथा कुछ भी ऐसा उपहार दें जिन्हें देखकर उनके मुख पर मुसकान आ जाए। बच्चों को खट्टी-मीठी टाफियां, चाकलेट आदि देने से वे खुश हो जाते हैं इससे पूजा करने वाले को भी खुशी का आशीर्वाद मिलता है।

कॉपी, पेन, पेन्सिल आदि पढ़ाई से सम्बन्धित सामान का दान करने से मां परिवार में विद्या का आशीर्वाद देती हैं। श्रृंगार का सामान देने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। इसके बाद कन्याओं व बटुकों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लें व उन्हें प्रेमपूर्वक विदा करना चाहिए।