संविधान में तो उप मुख्यमंत्री जैसे पद का कोई जिक्र ही नहीं, तब क्यों बढ़ रहा इसका चलन? समझिए

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(www.arya-tv.com) संविधान में कहीं भी उप मुख्यमंत्री के पद का कोई जिक्र नहीं है। इसके बावजूद हाल के वर्षों में इस पद का चलन खूब बढ़ा है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उप मुख्यमंत्री की पूछ काफी बढ़ चुकी है।

अबतक के इतिहास में इस वक्त देश में सबसे ज्यादा डेप्युटी सीएम

हाल ही में 4 राज्यों में नई-नई बनीं सरकारों में 7 डेप्युटी चीफ मिनिस्टर हैं। इस तरह अब देश के 14 राज्यों में कुल 24 डेप्युटी सीएम हैं। यह भारत के सियासी इतिहास में अबतक किसी एक समय में उप मुख्यमंत्रियों की सबसे बड़ी संख्या है। वैसे तो डेप्युटी सीएम किसी राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री के ही बराबर होता है

लेकिन पद का मतलब है कि वह शख्स मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नंबर पर है। लेकिन इस प्रयोग की मजबूरियां या इसकी रणनीति की वजह राज्य-राज्य के हिसाब से अलग होती हैं। पार्टी-पार्टी के हिसाब से अलग होती हैं।

आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 5 डेप्युटी सीएम

आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा डेप्युटी चीफ मिनिस्टर हैं। 5 प्रमुख समुदायों- अल्पसंख्यक, ओबीसी, एससी, एसटी और कापू से एक-एक डेप्युटी सीएम। जगन मोहन रेड्डी सरकार ने 5 डेप्युटी चीफ मिनिस्टर के जरिए राज्य के हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है जिनकी आबादी अच्छी-खासी हैं।

2022 में जगन में अपने कैबिनेट में फेरबदल किया था और अमजत बाशा शायक बेपारी को छोड़कर बाकी चारों उप मुख्यमंत्रियों को बदलकर किसी अन्य को उनकी जिम्मेदारी दे दी।

जातिगत संतुलन साधने की तरकीब

हालिया विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी और कांग्रेस ने भी ऐसी ही रणनीति अपनाई। बीजेपी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 2-2 उप मुख्यमंत्री रखा। एमपी में एक ब्राह्मण और दूसरा एससी समुदाय से डेप्युटी सीएम बनाया गया जबकि मुख्यमंत्री ओबीसी समुदाय से।

इसी तरह राजस्थान में बीजेपी ने मुख्यमंत्री ब्राह्मण को बनाया और एक-एक उप मुख्यमंत्री राजपूत और दलित समुदाय से। छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने आदिवासी को सीएम बनाया और साथ में ओबीसी और ब्राह्मण समुदाय से एक-एक उप मुख्यमंत्री।

कांग्रेस ने भी उप मुख्यमंत्री वाला फॉर्म्युला अपनाया। तेलंगाना में पार्टी ने रेड्डी समुदाय से मुख्यमंत्री बनाया और एससी समुदाय से एक उप मुख्यमंत्री भी रखा।

बीजेपी ने यूपी में भी इसी तरह जातिगत संतुलन साधा था जहां पार्टी ने लगातार दूसरी बार दो उपमुख्यमंत्री रखा। एक ब्राह्मण समुदाय से तो दूसरा ओबीसी समुदाय से जबकि मुख्यमंत्री राजपूत समुदाय से हैं।

गुटबाजी खत्म करने का भी फॉर्म्युला

इस साल कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस हाई कमान के सामने सबसे बड़ी चुनौती दो वरिष्ठ नेताओं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच संतुलन साधने की थी। दोनों ने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोका था और सूबे में काफी समय से पार्टी के भीतर दोनों गुटों के भीतर एक तरह की प्रतिद्वंद्विता चली आ रही थी।

चुनाव नतीजे आने के एक हफ्ते बाद कांग्रेस हाईकमान ने दोनों गुटों को खुश और संतुष्ट रखने का फॉर्म्युला निकाला। डीके शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री बनाया गया और सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री।

हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस ने पिछले साल ऐसा ही फॉर्म्युला अपनाया था जहां दो वरिष्ठ नेताओं सुखविंदर सिंह सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री के बीच संतुलन साधा। सुक्खू को मुख्यमंत्री और अग्निहोत्री को उप मुख्यमंत्री बनाया।

गठबंधन सरकार में भी डेप्युटी सीएम का फॉर्म्युला कारगर

गठबंधन सरकार में भी उप मुख्यमंत्री वाला फॉर्म्युला खूब काम करता है। जब दो पार्टियां हाथ मिलाकर सरकार बनाती हैं तो दोनों में से किसी एक के ही खाते में मुख्यमंत्री की कुर्सी आएगी।

लिहाजा दूसरी पार्टी से उपमुख्यमंत्री बना दिया जाता है ताकि ये दिखाया जा सके कि सरकार में दोनों पार्टियां बराबर की साझीदार हैं। यह फॉर्म्युला कुछ राज्यों में बहुत अच्छे से काम कर रहा है।

बिहार में जब पिछले साल अगस्त में नीतीश कुमार की जेडीयू और आरजेडी साथ आईं तो सरकार में तेजस्वी यादव को 4 अहम मंत्रालयों के साथ उप मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। नीतीश कुमार सूबे के मुख्यमंत्री बने रहे।

महाराष्ट्र में भी बीजेपी ने उप मुख्यमंत्री वाला फॉर्म्युला अपनाया। शिवसेना के एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं। बीजेपी और एनसीपी के अजीत पवार गुट से एक-एक उप मुख्यमंत्री हैं।

पहले सरकार में शिंदे की अगुआई में शिवसेना और बीजेपी थीं। तब सिर्फ एक उप मुख्यमंत्री थे बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और उनके पास कई अहम मंत्रालय थे। बाद में इस साल जुलाई में अजीत पवार की अगुआई वाला एनसीपी का गुट भी सरकार में शामिल हो गया।

तब सूबे को फडणवीस के अलावा एक और उप मुख्यमंत्री मिला अजीत पवार के रूप में। फडणवीस के कुछ अहम मंत्रालय पवार को मिल गए।