चीनी अर्थव्यवस्था में आया उतार—चढ़ाव, 148 लाख करोड़ रु. का नुकसान

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(www.arya-tv.com) राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने चीन को पूंजीपतियों की ज्यादतियों से मुक्ति दिलाने का अभियान तेज कर दिया है। राष्ट्रपति बढ़ते कर्ज को अटकलों पर आधारित वित्तीय सौदेबाजी का जहर और अरबपतियों को मार्क्सवाद का उपहास उड़ाने का नतीजा मानते हैं। वे मानते हैं, कारोबारियों को सरकार के निर्देशों पर चलना चाहिए। शी का नया रास्ता चीन के भविष्य और लोकतंत्र – तानाशाही के बीच सैद्धांतिक लड़ाई को आकार देगा। टेक्नोलॉजी दिग्गजों और अन्य कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई से अब तक 148 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने का खतरा मंडराने लगा है। शी की मुहिम उसके दायरे और महत्वाकांक्षा के हिसाब से महत्वपूर्ण है। टेक्नोलॉजी दिग्गज अलीबाबा की सहायक कंपनी एंट ग्रुप के आईपीओ पर रोक के साथ 2020 में इसकी शुरुआत हुई थी। इसके बाद लगातार धमाके चल रहे हैं। चीन में बड़े परिवारों की जरूरत है इसलिए गर्भपात दुर्लभ हो गए हैं। पूंजीपतियों पर सख्त तेवरों के साथ देश में निर्मम तानाशाही का दौर जारी है। शी ने प्रतिद्वंद्वियों का सफाया कर दिया है। दस लाख उइगुर नजरबंद हैं। शी को असंतोष कतई बर्दाश्त नहीं है।

शी के अभियान से कई जोखिम जुड़े हैं। रियल एस्टेट दिग्गज एवरग्रांडे जैसी कंपनियों के कर्ज अकल्पनीय हो सकते हैं। प्रॉपर्टी कारोबारियों ने 207 लाख करोड़ रुपए के कर्ज ले रखे हैं। चीन की जीडीपी में संपत्ति कारोबार और उद्योगों की हिस्सेदारी 30% है। संपत्ति कारोबारियों की आधी फंडिंग लोगों द्वारा अधूरे प्रोजेक्ट में लगाए गए पैसे से है। कड़ी कार्रवाई की वजह से बिजनेस करना मुश्किल और कम फायदेमंद है। जिन टेक कंपनियों के खिलाफ सरकार ने कठोर कदम उठाए हैंं, वे अपनी स्थिति बेहतर बनाने के लिए सरकार को नगद पैसा दे रही हैं।

शी के रुख से सरकारी कंपनियों और सेमी कंडक्टर जैसे सामरिक उद्योगों को फायदा हो सकता है। लेकिन चीन की तेज आर्थिक रफ्तार के लिए जिम्मेदार आंत्रप्रेन्योर और अन्य व्यवसायियों को नुकसान होने का अंदेशा है। चिंता का एक अन्य पहलू विदेशी निवेशक हैं। पूंजी पर नियंत्रण के उपायों का उन पर असर नहीं पड़ा है। वे चीनी शेयरों के लिए देश के निवेशकों के मुकाबले 31% कम टैक्स चुकाते हैं।

इन सब पहलुओं से चीन की अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने का खतरा है। इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश में घटते रिटर्न और काम करने के काबिल लोगों की संख्या में गिरावट, बुजुर्गों की बढ़ती संख्या का असर दिखाई पड़ने लगा है। शी के अभियान से व्यक्तिवादी राजनीति का प्रभाव बढ़ने का खतरा है। अफसरशाही भी देश के सर्वोच्च शासक शी को नाकाम कर सकती है। शी बाजार के हिसाब से चलना चाहते हैं पर प्रमोशन और बर्खास्तगी की चर्चा के कारण अधिकारी बेचैन रहते हैं। अभी हाल में लगभग 20 प्रांतों में बिजली सप्लाई रुकने का एक कारण अफसरशाही में व्याप्त दहशत है। अधिकारियों को डर है कि कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल न करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। वैचारिक और सैद्धांतिक दमन की वजह से भी खतरा है।

अमीर देशों जैसी गैरबराबरी,1% लोगों के पास 30 % संपत्ति
शी के सामने कुछ वास्तविक समस्याएं भी हैं। हर किसी के लिए समृद्धि का नारा दर्शाता है कि कम्युनिस्ट चीन में कुछ पूंजीवादी देशों के समान अार्थिक असमानता है। चीन के सबसे अधिक संपन्न 20% परिवारों के पास देश की 45 % आय है। सर्वोच्च 1 % लोगों के पास 30 % संपत्ति है। चिंता का एक अन्य मुद्दा टेक्नोलॉजी दिग्गजों का प्रभाव है। उन पर अनुचित प्रतिस्पर्धा, समाज को भ्रष्ट करने और व्यक्तिगत डेटा तक पहुंच रखने के आरोप हैं। विरोधी और प्रतिद्वंद्वी देशों द्वारा वस्तुओं और जरूरी टेक्नोलॉजी तक पहुंच रोकने का खतरा भी है।