सिंधु सभ्यता के खत्म होने का राज, आसमान से लाखों लोगों पर कयामत बन टपका था ‘मौत का गोला’

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(www.arya-tv.com) विशाल उल्का पिंडों के धरती पर गिरने से जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के विलुप्त होने के वैज्ञानिक प्रमाण तो उपलब्ध हैं। लेकिन क्या कभी मानव सभ्यता भी उल्का पिंड गिरने से खत्म हुई है?

भारत के वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझाने के करीब हैं। वे गुजरात के कच्छ में एक विशाल गड्ढे के सैंपल की स्टडी कर रहे हैं जो उल्का पिंड गिरने की वजह से बना है।

केरल यूनिवर्सिटी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के रिसर्चरों को 4 साल लगे लेकिन आखिरकार उनके हाथ वैज्ञानिक ‘खजाना’ लग ही गया- मेल्ट-रॉक्स। विज्ञान की भाषा में उसे मेल्ट-रॉक यानी पिघला हुआ चट्टान ही कहते हैं

जो उल्कापिंड का हिस्सा होता है। यह किसी उल्कापिंड गिरने से बनता है। ये मेल्ट-रॉक मिला है कच्छ स्थित लूना नाम के एक छोटे से इलाके में।इन मेल्ट-रॉक की कॉर्बनडेटिंग से पता चलता है कि वो उल्कापिंड करीब 6,900 वर्ष पहले गिरा था।

मोटे तौर पर उसी दौरान जब उस इलाके में सिंधु घाटी सभ्यता फल-फूल रही थी। अब रिसर्चरों और तमाम अकादमिक विशेषज्ञों के सामने ज्वलंत प्रश्न ये है कि क्या उस उल्कापिंड का सिंधु घाटी सभ्यता पर कोई असर पड़ा था।

केरल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रफेसर रजिन कुमार के. एस. बताते हैं, ‘उल्कापिंड जिस जगह गिरी थी वह तो लूना है लेकिन मशहूर सिंधु घाटी सभ्यता स्थल धोलावीरा (जहां खुदाई में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले) उससे करीब 200 किलोमीटर ही दूर है। लूना में 2 किलोमीटर लंबा क्रेटर है और जो उल्कापिंड यहां गिरा होगा उसका आकार 200-400 मीटर रहा होगा।’

वह आगे कहते हैं, ‘हम उल्कापिंड गिरने की वजह से वनस्पतियों और जानवरों के विलुप्त होने की हमेशा चर्चा करते हैं लेकिन क्या कभी मानव सभ्यता पर इसका असर पड़ा, यह साफ नहीं है। इसलिए, यह उस दिशा में अध्ययन है कि क्या कोई मानव सभ्यता संभवतः उल्कापिंड गिरने की वजह से नष्ट हुई।’

‘प्लेनेटरी ऐंड स्पेस साइंस’ में आए एक हालिया अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की है कि लूना में लौह उल्कापिंड गिरने की वजह से 1.88 किलोमीटर चौड़ा गड्ढा मौजूद है। जो उल्कापिंड गिरा था उसका व्यास करीब 200 मीटर रहा होगा।

उल्कापिंड आग के गोले की तरह होते हैं। उनके गिरने की वजह से आस-पास की सभी चीजें पिघल जाती हैं और उससे बनते हैं मेल्ट-रॉक। लूना से लिएगए सैंपल में वुस्टाइट, किरस्टेइनाइट, उल्वोस्पिनेल और हर्सिनाइट जैसे उच्च-तापमान वाले खनिज मौजूद हैं।

लूना में मिला विशाल गड्ढा उल्कापिंडों के गिरने से बने क्रेटर के भारत में मिलने का चौथा मामला है। इतना ही नहीं, लूना में जो उल्कापिंड गिरा था, वह समयावधि के हिसाब भारत में गिरने वाले उल्कापिंडों में सबसे युवा है। यानी अबतक जो 4 उल्कापिंडों के गिरने के प्रमाण हैं,

उनमें यह सबसे आखिर में गिरा होगा। भारत में जिन अन्य जगहों पर उल्कापिंड के गिरने से बने विशाल गड्ढे यानी क्रेटर हैं वो हैं- ढाला (मध्य प्रदेश), रामगढ़ (राजस्थान) और लोनार (महाराष्ट्र)।

उल्कापिंड के आकार के 10-20 गुना बड़े आकार में बनते हैं क्रेटर
उल्कापिंड से बने क्रेटर यानी विशाल गड्ढे उसके आकार से 10-20 गुना से भी ज्यादा बड़े होते हैं। केरल यूनिवर्सिटी की टीम ने 1 मीटर का गड्ढा खोदा था और उन्हें करी 10 सेंटीमीटर की ही गहराई में सैंपल मिल गए थे। यह इस बात का संकेत है कि ये सबसे युवा क्रेटर है।

साजिन कुमार बताते हैं, ‘यह सिंधु नदी का एक ऐक्टिव स्ट्रेच है। इसलिए इस इलाके में कई नदियों से बहकर गाद आती है। हमें बहुत ही कम गहराई में सैंपल मिल गया जो संकेत है कि यह क्रेटर सबसे युवा है।’

वह आगे बताते हैं, ‘इस इलाके में सैंपल लेने के लिए हम 4 बार गए। दलदली भूमि होने की वजह से सैंपल इकट्ठा करना बहुत मुश्किल है। लेकिन जुलाई 2022 में हम खुशकिस्मत रहे। हमें जांच के लिए सूखा सैंपल मिल गया।’

साजिन कुमार बताते हैं, ‘लूना के बारे में कहा जाता है कि यहां उल्कापिंड गिरने से बना गड्ढा मौजूद है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि धरती पर बना विशाल गड्ढा उल्कापिंड की वजह से ही बना हो। ज्वालामुखी विस्फोट से भी ऐसे भी क्रेटर बनते हैं।’