(www.arya-tv.com) फूल यानी करोड़ों लोगों की श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक। हर रोज लोग मंदिरों में हजारों टन फूल चढ़ाते हैं, लेकिन क्या आप कभी सोचा है कि है कि मंदिरों में चढ़ाए जाने के बाद इन फूलों का क्या होता है ? भारत में हर दिन मंदिरों में चढ़ाए लग करीब 80 करोड़ टन फूल नदियों में प्रवाहित किए जाते है।
नदियों में बहाए गए इन फूलों से प्रदूषण बढ़ता है। कानपुर के रहने वाले अंकित अग्रवाल जब अपने एक विदेशों दोस्त को गंगा घाट घूमाने गए तो उन्होंने देखा कि लोग नदियों में फूल डाल रहे हैं। उनके विदेशी दोस्त ने उनके इसका कारण पूछा तो अंकित उनके सवाल को काटते हुए निकल गए।
भगवान पर चढ़े फूलों से कमाई का तरीका खोजा
चेक रिपब्लिक से आए दोस्त के साथ गंगा किनारे बैठे अंकित को बुरा तो लग रहा था, लेकिन उनके पास उन सवालों के जवाब नहीं थे। उस दिन मकर संक्रांति थी। विदेशी दोस्त ने गंगा के मटमैले पानी में सैकड़ों लोगों को नहाते देखा तो परेशान हो गया। पूछा- लोग इतने गंदे पानी में क्यों नहा रहे हैं? इसे साफ क्यों नहीं करते? सरकार और सिस्टम पर दोष लगाकर अंकित बात टालने लगे।
विदेशी दोस्त ने कहा तुम खुद क्यों नहीं कुछ करते? उसी वक्त मंदिरों में भगवान पर चढ़ाए के फूलों से लदा एक टेम्पो आकर रुका और अपना सारा फूल गंगा में उड़ेल कर निकल गया। अंकित ने सोच लिया कि वो फैक्ट्रियों का तो कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन गंगा में बहाए जाने वाले फूलों का जरूर कुछ करेंगे। और यही से शुरुआत हुई Phool की। अंकित के जहन में ये बात बैठ गई कि आखिर इन फूलों से पानी में बहाए जाने से कैसे रोकें। सवाल के जवाब की तलाश आईआईटी कानपुर में जाकर खत्म हुई।
ऐसे हुई Phool की शुरुआत
मंदिरों से निकलने वाले फूलों को कैसे नदियों में बहाए जाने से रोकें, जब अंकित ने इस पर रिसर्च किया तो पता चला कि वो इनके अगरबत्ती, धूपबत्ती और फ्लेदर (फूलों से बना लेदर) तक बना सकते हैं। फिर क्या था, स्विट्ज़रलैंड की अपनी नौकरी छोड़कर अंकित ने 72000 रुपये की अपनी सेविंग से फूल डॉट कॉम (phool.com) की शुरुआत की।
हालांकि ये काम इतना आसान नहीं थी। फूल से अगरबत्ती बनाने का काम उस वक्त भारत में नया था, न डेटा था न तकनीक। आईआईटी कानपुर की मदद से उन्होंने फूलों के प्रोसेसिंग से लेकर अगरबत्ती स्टीक बनाने तक का काम सीखा।
4 किलो फूल और 72000 रुपये
अंकित मंदिरों के पास चढ़ाए हुए फूल मांगने गए, लेकिन उन्हें मना कर दिया। काफी समझाने के बाद उन्हें 4 किलो फूल मिले। साल 2017 में अंकित ने Phool की नींव रखी। शुरुआत अकेले की, खुद अपने हाथों से मंदिरों में चढ़ाए फूलों को इकट्ठा करते, उसे छांटते, साफ करते और प्रोसेसिंग के बाद अगरबत्ती बनाते। बाद में उनके कॉलेज के दोस्त अपूर्व भी उनके साथ जुड़ गए। अपूर्व के पास ब्रांडिंग, मार्केटिंग का आइडिया था। दोनों ने Phool को बढ़ाने का काम शुरू किया।
मंदिरों में जाकर अपनी गाड़ियों से फूल उठाकर उन्हें फैक्ट्री में लाकर फूलों से नमी हटाई जाती है। फिर उन्हें सुखाया जाता है। इसके बाद फूल के बीच का भाग और पत्तियों को अलग कर लेते हैं। मशीन में डालकर उन्हें पेस्टिसाइड वगैरह को अलग करते हैं। जिसके बाद एक पाउडर बन जाता है, जिसे आटे की तरह गूंथ लिया जाता है। इसी आटे से हाथों की मदद से अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाई जाती है।
आज 550 महिलाओं को दिया रोजगार, 200 करोड़ की कंपनी
फूल का ये आइडिया इतनी आसानी से नहीं शुरू हुई। शुरुआत में मंदिरों को फूल देने के लिए राजी करने से लेकर जगह और निवेश को लेकर काफी मुश्किल हुई। आज कंपनी के साथ 550 से ज्यादा महिलाएं काम करती है। कंपनी के पास 8 फैक्ट्रियां जहां, जहां आज भी हाथों से अगरबत्ती बनाने का काम किया जाता है। जिस की शुरुआत अंकित ने 72000 रुपये से की, आज वो 200 करोड़ रुपये की हो चुकी है।
आलिया भट्ट में भी किया निवेश
अल्फा, DRK फाउंडेशन, IIT कानपुर , IAN फंड और सैन फ्रांसिस्को के ड्रेपर रिचर्ड्स कपलान फाउंडेशन से फंडिग मिली है। ने मिलकर 1.4 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। जब आलिया भट्ट को इस कंपनी के बारे में पता चला तो उनके काम के बारे में जानकर उन्होने भी फूल में निवेश किया है। आज कंपनी न केवल पांच से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रही है, बल्कि फूलों से होने वाले प्रदूषण से कम करने में मदद कर रही है।