शेयर बाजार की गिरावट स्वाभाविक है! मिली जुली सरकार गति में अधिक तेजी नहीं ला पाएगी।

Lucknow
  • विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

4 जून 2024 को चुनावी आंकड़े में भारतीय जनता पार्टी को कमजोर देखकर शेयर बाजार के बीएसई इंडेक्स ने लगभग 6000 अंक तक नीचे गोता लगाया। जो बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के इतिहास में आज तक की सबसे बड़ी गिरावट अंकों में कहीं जा सकती है। इस पर बहुत अधिक राजनीतिक चर्चा हो रही है लेकिन यह कांग्रेस के लिए भी आत्ममंथन का विषय हो सकता है अब वह भले इसको स्वीकार करें या न करें जब बाजार ने यह आहट देखी कि नरेंद्र मोदी अर्थव्यवस्था के सुधारो को लागू करने के लिए कमजोर हो गए हैं तब भय के कारण निवेशको ने अपना पैसा वसूलने का प्रयास किया।

कुछ इसी तरह 17 मई 2004 को जैसे ही कांग्रेस के आने की आहट बाजार को लगी शेयर बाजार 842 अंक लुढ़क गया। उस समय 129 साल के बीएसई के इतिहास में यह करीब 16% की सबसे बड़ी गिरावट थी। उसी दिन निफ्टी 17.47% गिरा था। उस समय भारत की दुनिया की 12वीं अर्थव्यवस्था था। और कांग्रेस के नेतृत्व में वामपंथियों की सरकार की आहट भर से निवेशकों ने बहुत बड़ा नुक़सान झेला। ये इतनी बड़ी गिरावट क्यों? बाजार हार्वर्ड छाप शिक्षितों से डरता है। क्या आपने उस गिरावट की, उस गिरावट से हुये निवेशकों के नुकसान की भरपाई की थी।

16 मई 2014 को सेंसेक्स ने एक दिन में 1,470 प्वाइंटस की छलांग लगाते हुए पहली बार 25,000 को बहुप्रतीक्षित आंकड़ा छुआ। क्यूं? बाजार को मोदी पर विश्वास रहता है। और अगले दस सालों में मोदी के मजबूत व कुशल नेतृत्व में अर्थव्यवस्था के साथ साथ सेंसेक्स ने 70,000 तक का आंकड़ा छुआ है। ये होता है निवेशकों को रिटर्न देना। और, ये मोदी जी की ही नीतियों का परिणाम है कि आज रिटेल निवेशक UPI तक से अपने मोबाइल से बाजार में अपना पैसा निवेश कर रहे हैं। आज हमारा शेयर बाजार FIIs के इशारों पर नहीं बल्कि सक्षम होते DIIs के निवेश से बढ़ रहा है। आज भारत पांचवीं अर्थव्यवस्था है और तीसरी बनने को अग्रसर है।

ये आपको आपके चिंदबरम, जयराम, पित्रोदा, राजन, कौशिक जैसे विद्वान नहीं बतायेंगे। क्योंकि वह सब बहुत अधिक पढ़े लिखे हैं लेकिन निवेश करने वाला आपको उसके मन की बात अवश्य बताया जरा पूछ कर देखिए।

25 जुलाई 1990 को बीएसई सेंसेक्स ने पहली बार 1 हजार के स्तर को छुआ था। यानि 115 साल लगे 1 हजार के स्तर तक पहुंचने में। यही वो दौर था जिसमें नेहरू जी, इंदिरा जी और राजीव जी जैसे प्रधानमंत्री देश‌ को दमघोंटू नेतृत्व दे रहे थे। लाइसेंस परमिट राज से उद्यमिता का गला घोंटने की नीयत से नीतियां बनती और चलती थी। दिमाग पर चढ़ी समाजवादी परतों ने 1990 तक आते आते देश को कंगाल कर दिया था। यह तो देश का हर नागरिक जानता होगा और उसको जानना चाहिए।

फिर शुरू हुआ नरसिम्हा राव जी के नेतृत्व में उदारीकरण, वैश्वीकरण और उदारीकरण का दौर । अब नौ हजार के अगले स्तर (यानि 1 हजार से 10 हजार तक) को छूने में करीब 16 साल लग गये। नरसिम्हा राव जी की आर्थिक नीतियों व आगे अटल बिहारी वाजपेई जी के दो कार्यकालों में जो निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया उससे मजबूत आर्थिक विकास की दृढ़ नींव रखी जा चुकी थी। इन दोनों प्रधानमंत्रीयों के योगदान का असर कुछ वर्षों तक कांग्रेस और वामपंथियों के यूपीए के शासनकाल में दिखा।

लेहमन ब्रदर्स के दिवालिया होने से शुरू हुआ वैश्विक रिसेशन व बाद में सत्यम घोटाला और कांग्रेसी नेताओ के भ्रष्टाचार के नये नये सोपान ने न केवल अर्थव्यवस्था को रसातल में ढकेला बल्कि Participator Notes और FIIs के स्टेरॉयड पर रहते हुए इन दस सालों में सेंसेक्स महज 15,000 ही बढ़ सका। 25 मई 2004 को सेंसेक्स 5000 पर था और 2014 के शुरुआत में 20,000 के करीब। वही नरसिंग राव के समय से आर्थिक सुधारो में हर्षद मेहता केतन पारीख कामत जैसे तमाम लोग देश के पैसे को लूटने में लग गए थे। तमाम नकली शेयर बनाकर मार्केट से पैसा लूटा गया और मैं स्वयं इसका शिकार हुआ हूं मेरे पास भी टेंटेड शेयर है। उनके सर्टिफिकेट अभी भी मैं संभाल कर रखे हैं।

वर्तमान में बाजार में ये गिरावट आई है कांग्रेस की 99 सीट्स की वजह से, उसके चिंदी गठबंधन की 232 सीट्स आने की वजह से। सेंसेक्स गिरा है क्योंकि उसे इस इंडिगठबंधन के कुकृत्यों का अनुभव है।‌ आज जब मोदी सरकार अकेले बहुमत नहीं ला पाई तो मार्केट के जानकार यह बताते हैं अब शेयर मार्केट उसे तेजी से तो नहीं बढ़ेगी और निवेशकों को रिटर्न के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि विदेशी पैसा आने में अब गतिशीलता कम हो सकती है। इसका ठीकरा क्या कांग्रेस के नेता अपने सर पर फोंड़ेंगे

बाजार रियक्ट करता है। हर दिन हर मिनट कर सकता है। बहुतेरे कारणों से करता है। ये कारण राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय, तनाव-युद्द, राजनैतिक, समाजिक, तकनीकी और प्राकृतिक आपदा जैसे कुछ भी हो सकते हैं। और यहां तो विश्व के सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्री की सत्ता परिवर्तन के आसार तक बन गये थे। जो गठबंधन की सरकार पर आकर रूके। ये बातें हर कोई जानता है। उसमें घोटालों को मत घुसेड़ो। ये बाजार का स्वभाव है। ये जो 04 जून को हुआ है न ये BLACK SWAN EVENT की श्रेणी की घटना है। तो बाजार का इस तरह से रियक्ट करना अप्रत्याशित कतई नहीं है। वो आपसे डरा है, आपके सहयोगियों से डरा है। उसकी गिरावट की जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ आपकी विरासत, नियत और नीतियां हैं। तो निवेशकों के नुकसान की भरपाई आपसे होने चाहिए। इसके अतिरिक्त आपने गारंटी पत्र के द्वारा महिलाओं को क्या-क्या आश्वासन दिए हैं। उसको नेट पर आसानी से देखा जा सकता है। आपके इस तरह के झूठे आश्वासन झूठी बातें झूठे गारंटी पत्र आम निवेशकों के हृदय में भय पैदा करते हैं। अब जिम्मेदार कौन है कांग्रेस खुद या कोई और?

राहुल गांधी ने बे-सिर-पैर की बात को घोटाले का नाम देकर अपने ईकोसिस्टम के माध्यम से देश में अस्थिरता और भ्रम पैदा करने का कुत्सित प्रयास किया है। वो आपको अधिक माइलेज नहीं देगा। इस तरह के कुत्सित प्रयास आप पिछले दस सालों से हर मंच से कर रहे हो और सुप्रीम कोर्ट में जाकर चारों खाने चित हो जाते हो । वहां ना आपके तथाकथित सबूत चलते हैं न आपके वकीलों की खोखली दलीलें। भारत की जनता अब कांग्रेस के नेताओं से पूछना चाहती है कि आखिर आप कब तक देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहेंगे और देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहेंगे क्या आप कभी सुधरेंगे नहीं यह एक लाख टके का प्रश्न है? क्या सत्ता प्राप्ति के लिए आप किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं? अब देखना यह है आप किस स्तर तक राजनीति में गिरेंगे और देश को किस बर्बादी तक ले जाने की कोशिश करेंगे!

आपने चीन के साथ तो छुप कर समझौता कर लिया था अब आप पाकिस्तान सहित अनेक विरोधी देश के साथ भी समझौता कर लीजिए तभी भी वही होना है जो ईश्वर ने लिख कर रखा है!