‘पुलिस के लिए बनाया जाए जांच कोड’, जब सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए 2 दोषियों को किया बरी

# ## National

(www.arya-tv.com) सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल के लड़के के अपहरण और हत्या से जुड़े 10 साल पुराने मामले में तीनों आरोपियों को बरी कर दिया. इन आरोपियो में दो लोगों को निचली अदालत से फांसी की सजा मिली थी और एक आरोपी को उम्रकैद की सजा मिली हुई थी. नाबालिग के मर्डर केस में 3 आरोपियों को बरी करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ,जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस पीवी संजीव कुमार की बेंच ने मामले में निराशाजनक पुलिस जांच और अभियोजन पर कड़ी नाराजगी जताई और साइंटिफिक जांच का मार्गदर्शन करने के लिए पुलिस के लिए एक जांच कोड बनाने की बात कही.

मामले की सुनवाई ने दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम गहरी चिंता के साथ पुलिस जांच के निराशाजनक मानकों पर गौर कर सकते हैं… जो अपरिवर्तनीय मानदंडों पर प्रतीत होते हैं. ऐसे में अब समय आ गया है कि पुलिस के लिए अपनी जांच के दौरान एक विस्तृत प्रक्रिया के साथ एक सुसंगत और भरोसेमंद जांच कोड तैयार किया जाए …ताकि दोषी तकनीकी बातों के आधार पर छूट न जाए. हमारे देश में ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है. हमें और कुछ कहने की जरूरत नहीं है.

दरअसल, कोर्ट 2017 के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई कर रही था. हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में तीन आरोपियों की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था. ट्रायल कोर्ट ने 2016 में उन्हें दोषी ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर था क्योंकि अपहरण और हत्या का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबूतों और घटनाओं के कथित अनुक्रम में ‘गंभीर खामियां’ और ‘बहुत सारी विसंगतियां’ थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि अक्सर पुलिस उन लोगों को पकड़ने और उनके खिलाफ मामला बनाने में अति उत्साही पाई जाती है, जिन्हें वे दोषी मानते हैं. वे उचित प्रक्रिया की बिल्कुल भी परवाह नहीं करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे सबूतों की शृंखला में केवल कमियां और कमजोर कड़ियां पैदा होती हैं, जैसा कि वर्तमान जांच में हुआ था. इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस ने हिरासत में दिए गए कबूलनामे पर भरोसा करके गलती की है. इसके अलावा कोर्ट ने पाया कि पंचनामा और जब्ती कानून के अनुसार तैयार नहीं किए गए थे. कथित तौर पर फिरौती की कॉल करने के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के मालिकों से पूछताछ करने में पुलिस की विफलता को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक चौंकाने वाली चूक करार दिया, जो लापरवाहीपूर्ण जांच का संकेत देती है.