- विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत
(www.arya-tv.com)पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक धार्मिक समारोह में राम के विषय में बोलते हुए विश्व के देश के बारे में बताया और उन्होंने इंडोनेशिया का नाम लेकर वक्तव्य दिया था कि “उनके पूछने पर इंडोनेशिया के लोगों ने कहा हमारा रहन-सहन और धर्म तो मुस्लिम है लेकिन राम तो हमारे पूर्वज है हम उनको कैसे भूल सकते हैं”।
चलिए आज इंडोनेशिया के विषय में जहां पर प्रतिदिन राम की रामलीला कई स्थानों पर संपन्न होती है। उसपर कुछ जानकारी प्राप्त करते हैं। जिससे यह सिद्ध हो जाता है प्रभु श्री राम अमर है और एक समय में पूरे विश्व में उनका साम्राज्य था क्योंकि किसी न किसी रूप में कई देशों में उनको आज श्रीराम को पूजा जाता है। विश्व की कई भाषाओं में रामायण मिल जाती है ।
वह बात अलग है भारत में पहले की कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया था की राम सिर्फ एक भ्रम है राम का कोई अस्तित्व नहीं और यह केवल एक कथा है जिसको की काव्य के रूप में लिखा गया है लेकिन अधिक आश्चर्य इस बात का है कि आज सभी कांग्रेसी और विपक्ष, राम के नाम को कोसने वाले लोग भी राम की ही बात करते नजर आते हैं। राम का तिलक लगाकर राम मंदिर पर अपनी पार्टी के प्रयासों को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। सनातन के नाम से बिदकने वाले नेता आज मंदिरों में जाकर टीका लगाकर अपने को बड़े से बड़ा हिंदू सिद्ध करने की होड़ में लगे हुए हैं। यही सब सब राम नाम के चमत्कार को दर्शाता है।
इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में स्थित एक देश है जो करीब सत्रह हज़ार द्वीपों का समूह है. इस देश में आज दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है।
भारत की तरह ही यह देश भी तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय तक डचों के अधीन थी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे डचों से आजादी मिली। डचों से आजादी के लिये इण्डोनेशियाई लोगों के संघर्ष के दौरान एक बड़ी रोचक घटना हुई।
इंडोनेशिया के कई द्वीपों को आजादी मिल गई थी पर एक द्वीप पर डच अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं थे। डचों का कहना था कि इंडोनेशिया इस बात का कोई प्रमाण नहीं दे पाया है कि यह द्वीप कभी उसका हिस्सा रहा है, इसलिये हम उसे छोड़ नहीं सकते। जब डचों के तरफ से ये बात उठी तो इंडोनेशिया यह मामला लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चला गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इंडोनेशिया को सबूत पेश करने को कहा तो इंडो लोग अपने यहाँ की प्रचलित रामकथा के दस्तावेज लेकर वहां पहुँच गये और कहा कि जब सीता माता की खोज करने के लिये वानरराज सुग्रीव ने हर दिशा में अपने दूत भेजे थे तो उनके कुछ दूत माता की खोज करते-करते हमारे इस द्वीप तक भी पहुंचे थे पर चूँकि वानरराज का आदेश था कि माता का खोज न कर सकने वाले वापस लौट कर नहीं आ सकते तो जो दूत यहाँ इस द्वीप पर आये थे वो यहीं बस गए और उनकी ही संताने इन द्वीपों पर आज आबाद है और हम उनके वंशज है।
बाद में उन्हीं दस्तावेजों को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वो द्वीप इंडोनेशिया को सौंप दिया। जिसका अर्थ ये है कि हिन्दू संस्कृति के चिन्ह विश्व के हर भूभाग में मिलते हैं और इन चिन्हों में साम्यता ये है कि श्रीराम इसमें हर जगह हैं। भारत के सुदुर पूर्व में बसे जावा, सुमात्रा, मलेशिया और इंडोनेशिया हो या दक्षिण में बसा श्रीलंका या फिर चीन, मंगोलिया या फिर मध्य-पूर्व के देशों के साथ-साथ अरब-प्रायद्वीप के देश, राम नाम और रामकथा का व्याप किसी न किसी रूप में हर जगह है।
अमेरिका और योरोप की माया, इंका या आयर सभ्यताओं में भी राम हैं तो मिश्री लोककथायें भी राम और रामकथा से भरी पड़ी हैं. इटली, तुर्की, साइप्रस और न जाने कितने देश हैं जहाँ राम-कथा आज भी किसी न किसी रूप में सुनी और सुनाई जाती है।
भारतीय संस्कृति के विश्व-संचार का सबसे बड़ा कारण राम हैं। राम विष्णु के ऐसे प्रथम अवतार थे जिनके जीवन-वृत को कलम-बद्ध किया गया ताकि दुनिया उनके इस धराधाम को छोड़ने के बाद भी उनके द्वारा स्थापित आदर्शों से विरत न हो और मानव-जीवन, समाज-जीवन और राष्ट्र-जीवन के हरेक पहलू पर दिशा-दर्शन देने वाला ग्रन्थ मानव-जाति के पास उपलब्ध रहे। इसलिये हरेक ने अपने समाज को राम से जोड़े रखा। आज दुनिया के देशों में भारत को बुद्ध का देश तो कहा जाता है पर राम का देश कहने से लोग बचते हैं। दलील है कि बुद्ध दुनिया के देशों को भारत से जोड़ने का माध्यम हैं पर सच ये है कि दुनिया में बुद्ध से अधिक व्याप राम का और रामकथा का है।
भगवान बुद्ध तो बहुत बाद के कालखंड में अवतरित हुए पर उनसे काफी पहले से दुनिया को श्रीराम का नाम और उनकी पावन रामकथा ने परस्पर जोड़े रखा था और चूँकि भारत-भूमि को श्रीराम अवतरण का सौभाग्य प्राप्त था इसलिये भारत उनके लिये पुण्य-भूमि थी. राम भारत भूमि को उत्तर से दक्षिण तक एक करने के कारण राष्ट्र-नायक भी हैं। भारत को दुनिया में जितना सम्मान राम और रामकथा ने दिलवाया है, इतिहास में उनके सिवा और कौन दूसरा है जो इस गौरव का शतांश हासिल करने योग्य भी है!
आज जो लोग राम को छोड़कर भारत को विश्वगुरु बनाने का स्वप्न संजोये बैठे हैं उनसे सीधा प्रश्न है राम के बिना कैसा भारत और कैसी गुरुता ? राम को छोड़कर किस आदर्श-राज्य की बात ? राम की अयोध्या को पददलित और उपेक्षित कर भारत के कल्याण की कैसी कामना ? राम का नाम छोड़कर वंचितों और वनवासियों के उद्धार का कैसा स्वप्न ?
सब जानते हैं जगतगुरु रामभद्राचार्य के कारण राम मंदिर का केस सुप्रीम कोर्ट में जीता गया और उनकी मांग है कि रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाए बहुत सारे लोग इस पक्ष में है और ऐसा लगता है आने वाले समय में रामचरितमानस को और श्रीमद्भभगवद्गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करना ही होगा। अब इस पर क्या होना है यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा हम और आप तो केवल राम से ही राम कथा के प्रचार की और इसको राष्ट्रीय ग्रंथ बनाने की प्रार्थना कर सकते हैं।