‘इंदिरा गांधी नहीं, एक जनरल की साजिश से हुए पाकिस्‍तान के टुकड़े, 1971 की जंग के बाद बना था बांग्‍लादेश’

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(www.arya-tv.com) 16 दिसंबर 1971, यह वह तारीख है जो पाकिस्‍तान और इसकी सेना के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। इस दिन पाकिस्‍तानी सेना के जनरल नियाजी ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया था।

साथ ही पाकिस्‍तानी सेना के 93000 सैनिकों को भी बंदी बना लिया गया था। साथ ही पाकिस्‍तान के भी टुकड़े हो गए और पूर्वी पाकिस्‍तान एक अलग देश बन गया जिसे अब बांग्‍लादेश के तौर पर जानते हैं। कई पाकिस्‍तानी विशेषज्ञ और राजनेता मानते हैं।

कि भारत की तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पाकिस्‍तान को तोड़ने के लिए की गई हर कोशिश आखिरकार सफल हो गई थी। वहीं, इससे अलग पाकिस्‍तान के मशहूर जर्नलिस्‍ट हामिद मीर की मानें तो पाकिस्‍तान एक जनरल की साजिश के चलते टुकड़े-टुकड़े हो गया था।

जनरल अयूब का खतरनाक मंसूबा

पाकिस्‍तान के सीनियर जर्नलिस्‍ट हामिद मीर की मानें तो पाकिस्‍तान को हिन्‍दुस्‍तान ने नहीं तोड़ा था बल्कि वह अपनी गलतियों की वजह से टूटा था। लेकिन कोई आज तक इस बारे में कोई बात नहीं करता है।

16 दिसंबर 1971 वह तारीख है जब पाकिस्‍तान दो टुकड़ों में बंट गया था।पूर्वी पाकिस्‍तान यानी आज के बांग्‍लादेश का गठन इसी दिन पर हुआ था। मीर की मानें तो पाकिस्‍तान को तोड़ने का मंसूबा सन् 1962 में ही तैयार हो गया था।

वह साजिश भारत ने नहीं बनाई था बल्कि पाकिस्‍तानी जनरल अयूब खान के दिमाग की उपज थी।हामिद मीर ने बताया कि पाकिस्‍तान में बहुत से राजनीतिज्ञ कहते हैं कि शेख मुजीब ने तोड़ दिया था। वो उन्‍हें भारत का एजेंट करार देते हैं। वह बताते हैं।

कि ऑल इंडिया मुस्‍लिम लीग जिसने पाकिस्‍तान को बनाने का सपना सच किया था उसे ढाका में तैयार किया था। शेख मुजीब-उर-रहमान को जो लोग जासूस कहते हैं, वह कभी ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का ही हिस्‍सा थे।

बगांलियों से थी अयूब खान को नफरत

हामिद मीर के मुताबिक सन् 1958 में जब जनरल अयूब खान ने मार्शल लॉ लगाया तो उन्‍होंने हर सलाह को नजरअंदाज कर दिया। सन् 1962 में जनरल अयूब खान एक नया कानून लाने की तैयारी कर रहे थे।

लेकिन उनके कानून मंत्री जस्टिस इब्राहीम ने उन्‍हें समझाया कि जनरल जो कानून लाने की तैयारी में हैं, वह पाकिस्‍तान को तोड़कर रख देगा। डायरीज ऑफ जस्टिस इब्राहीम मोहम्‍मद में इस बारे में विस्‍तार से लिखा गया है।

जस्टिस इब्राहीम ने यह कहते हुए इस्‍तीफा दे दिया कि वह पाकिस्‍तान को तोड़ने की साजिश में शामिल नहीं होंगे। हामिद मीर ने कई किताबों के हवाले से बताया है कि जनरल अयूब को बंगालियों को पसंद नहीं करते थे।

अवामी लीग की जीत से बिगड़ा खेल

द एंड एंड द बिगनिंग हरबट फील्‍डमैन की किताब के हवाले से हामिद मीर ने बताया है कि एक अप्रैल 1971 को जनरल अयूब खान का ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ में एक इंटरव्‍यू छपा था।

इसमें उन्‍होंने कहा था, ‘मैंने पूर्वी पाकिस्‍तान की आजादी की पेशकश की थी लेकिन मैं कुछ कर नहीं सका।’ हामिद मीर कहते हैं कि पाकिस्‍तान को तोड़ने की साजिश 1962 में ही बन चुकी थी।

पाकिस्‍तान के जनरल याह्या खान इस बात का अंदाजा नहीं लगा सके थे आवामी लीग को पूर्वी पाकिस्‍तान में हुए चुनावों में बड़ी सफलता मिल सकेगी। मिलिट्री इंटेलीजेंस भी इसमें पूरी तरह से असफल हो गई थी।

शेख मुजीब एक यूनाइटेड पाकिस्‍तान के पीएम बनाना चाहते थे। हालांकि चुनाव जीतने के बाद भी उन्‍हें सत्‍ता का हस्‍तांतरण नहीं किया गया था। फिर यहां पर बड़े स्‍तर पर एक विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। इस प्रदर्शन को दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्‍तान में एक सैन्‍य अभियान की शुरुआत की गई।

यु‍द्धविराम की जगह सरेंडर कर बैठे नियाजी

लेफ्टिनेंट जनरल याकूब अली खान ने इस मिलिट्री ऑपरेशन का विरोध किया। जनरल याकूब, पूर्वी पाकिस्‍तान में सेना की कमान संभाल रहे थे। उनकी जगह पर जनरल टिक्‍का खान को नियुक्‍त किया गया।

वह भी असफल रहे तो जनरल नियाजी को कमान सौंपी गई। हामिद मीर की मानें तो सन् 1971 में जनरल नियाजी को आत्‍मसमर्पण नहीं बल्कि युद्धविराम का आदेश दिया गया था। जनरल नियाजी उस समय पाकिस्‍तान की पूर्वी कमान के कमांडर थे।