(www.arya-tv.com)बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में संत कबीर अकादमी, संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश एवं बीबीएयू शिक्षाविभाग के संयुक्त तत्वाधान में ‘निर्गुण काव्यधारा और एकात्मता के संदर्भ में महायोगी गोरखनाथ और संत कबीर का योगदान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता डीन ऑफ अकादमिक अफेयर्स प्रो० राणा प्रताप सिंह ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर हिन्दुस्तानी अकादमी प्रयाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ० उदय प्रताप सिंह मौजूद रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर हिन्दी एवं आधुनिक भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रो० सूर्य प्रसाद दीक्षित, भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन विद्यापीठ, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्रो० मजहर आसिफ, संत कबीर अकादमी के सलाहकार आशुतोष द्विवेदी, संगोष्ठी निदेशक प्रो० हरिशंकर सिंह, सह निदेशक डॉ० राजशरण शाही एवं संगोष्ठी संयोजक डॉ० सुभाष मिश्रा उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन एवं बाबासाहेब को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई। इसके पश्चात आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। सर्वप्रथम प्रो० हरिशंकर सिंह ने सभी को कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। साथ ही डॉ० राजशरण शाही ने निर्गुण काव्यधारा और उससे संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी दी।
प्रो० राणा प्रताप सिंह ने सभी को संबोधित करते हुए कहा, कि हिन्दी भाषा के विलुप्त होते अस्तित्व को दोबारा पुनर्जीवित करने के लिए हमें हर संभव प्रयास करने होंगे। क्योंकि अगर भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना है, तो प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संरक्षण आवश्यक है। हिन्दी और उसकी समकालीन भाषायें इसमें अपनी अहम भूमिका रखतीं हैं।
डॉ० उदय प्रताप सिंह ने अपने विचार रखते हुए कहा, कि निर्गुण भक्ति मार्ग में ईश्वर को साकार और अवतारी न मानकर निराकार, अजन्मा माना गया है। कबीर दास जी का मानना था कि ईश्वर समस्त जातियों के लिए समान है और उन्हें सच्चे चिंतन व आराधना के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रो० सूर्य प्रकाश दीक्षित ने कहा, कि आज वह समय है जब हम सभी को निर्गुण व सगुण काव्यधारा दोनों को एक मानकर एकीकृत होकर विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि दोनों ही काव्यधारायें एक- दूसरे की पूरक है एवं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से जुड़ी हुई है ।
प्रो० मजहर आसिफ ने चर्चा के दौरान कहा कि भारतीय भूमि ज्ञान की गंगा की तरह है। मध्यकालीन भाषायी युग में संत कबीर व गोरखनाथ जैसे अनेकों पैगम्बरों, गुरुओं और प्रतिष्ठित विद्वानों ने इंसानियत की बातें बतायी हैं। ये दोनों ही गुरु भारत के विश्वगुरु होने की आखिरी मोहर जैसे है, जिनके आदर्श आज के समाज के लिए प्रेरणादायी है।
इसके अतिरिक्त आशुतोष द्विवेदी ने सभी को सरकार द्वारा संचालित संत कबीर अकादमी के बारे में बताया कि किस प्रकार यह अकादमी भाषा साहित्य को आज भी जीवित रखने का कार्य कर रही है। अंत में धन्यवाद ज्ञापन का कार्य डॉ० सुभाष मिश्रा द्वारा किया गया। कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के विभिन्न शिक्षक, देश भर से आये प्रतिभागी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।