ओ अमेरिका! हमने तुम्हारा रास्ता नहीं काटा था, अब मेरे लिए जगह बनाना सीख लो

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(www.arya-tv.com) अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन गणतंत्र दिवस के अतिथि के रूप में भारत नहीं आ रहे हैं। वो 27 जनवरी को संभावित क्वाड समिट में भी शायद ही शामिल हों।

इस खबर के बाद कुछ लोगों ने भारत-अमेरिका के रिश्ते को कमजोर, टूटने के कगार पर या महत्वहीन बताना शुरू कर दिया। कुछ का कहना है कि भारत बाइडेन को अपना दोस्त समझने की भूल कर रहा है।

हमेशा की तरह अमेरिका को एक अनिश्चित साथी बताया जा रहा है, जो मौका मिलने पर कभी भी पाकिस्तान या चीन का पक्ष ले लेगा। वहीं, कुछ का कहना है कि अमेरिका कनाडा स्थित खालिस्तानी आतंकवादी पन्नू के मामले में भारत को सजा दे रहा है।

द्विपक्षीय रिश्तों में पन्नू की बाधा

पन्नू का मुद्दा निस्संदेह गंभीर है। यह रणनीतिक रिश्ते को तो नहीं हिलाएगा, लेकिन कुछ समय तक राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर परेशानी का सबब बना रहेगा।

पांच भारतीय-अमेरिकी सांसदों ने चिंता जताई है और अमेरिकी अधिकारियों ने ‘मानहानि’ की बात करते हुए भारत पर प्रतिबंध लगाने का संकेत दिया है। लेकिन अब न्यूयॉर्क और दिल्ली में अलग-अलग अदालतों में मामले चल रहे हैं,

इसलिए भारत का जवाब कानूनी तौर पर आएगा। आरोपों और बचाव पक्ष में कई कमियां नजर आएंगी। हकीकत यह है कि अमेरिका अब एक खांटी आतंकवादी का बचाव करने जा रहा है।

लेकिन रिश्ता बहुत मजबूत है

दोनों ही देश चाहते हैं कि पन्नू का मुद्दा हवा हो जाए। बाइडेन के आने या न आने से भी कई महत्वपूर्ण मुद्दे सामने हैं। मोदी और बाइडेन इस साल पहले ही दो बार मिल चुके हैं, इसलिए ऐसा नहीं है कि रिश्ता कमजोर है।

पन्नू का मामला सामने आने के बाद भी दोनों देशों ने अपने संबंधों को मजबूत किया है, जिसमें 2+2 वार्ता भी शामिल है। भारत और अमेरिका के बीच कई महत्वपूर्ण सहयोग चल रहे हैं,

जैसे – आईसीईटी, स्पेस, सप्लाई चेन आदि। एक भारतीय पत्रकार से बात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने स्पष्ट किया, ‘अमेरिका और

भारत दुनिया में सबसे करीबी साझेदारों में से हैं… सभी क्षेत्रों में… यह काम जारी रहेगा।’ सुलिवान खुद जनवरी में इनोवेशन हैंडशेक में शामिल होंगे।

तकनीक का मंत्र

हाल ही में हुए कामों को देखने से पता चलता है कि भारत और अमेरिका तकनीक के अलग-अलग क्षेत्रों में कितने ज्यादा घुल-मिलकर काम करने वाले हैं। भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से ताकत पाई क्वांटम कंप्यूटिंग में अपना भविष्य बनाना चाहता है।

यहां नई तकनीकों को अपनाने को लेकर एक खास उमंग और रोमांच है, जो पश्चिमी देशों में नहीं दिखता। वहां एआई और क्वांटम को खतरे के नजरिए से देखा जाता है, जबकि भारत इसे फायदे के रूप में देखता है।

ये सोच ऊपर से ही आती हैं- मोदी मंदिरों और एआई दोनों के लिए उतनी ही लगन से काम करते हैं। भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां टेक ब्रेनपावर का तेजी से विकास हो रहा है।

अमेरिका उनकी ताकत को सबसे पहले पहचानने वालों में से एक है। तकनीक ही जियोपॉलिटिक्स की दिशा तय करती है। भारत, अमेरिका और दक्षिण कोरिया मिलकर 2024 में टेक डायलॉग शुरू कर रहे हैं।

कोरिया को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की जरूरत है और भारत-अमेरिका इसमें सबसे अच्छा रास्ता हैं।

और ये चीन का मसला

चीन की चुनौती उसकी तकनीक से ही जुड़ी है। अमेरिका और भारत मिलकर चीन से बिल्कुल अलग नियमों वाला टेक फ्यूचर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। असली सवाल ये है कि क्या भारत और अमेरिका अपना टेक यूनिवर्स चीन से ज्यादा आकर्षक बना सकते हैं।

चीनी तकनीक में पैसा, हार्डवेयर और तानाशाही का समावेश होता है। भारत-अमेरिका का साथ एक अलग माहौल देता है। सवाल ये है कि क्या ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ORAN) और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) के जरिए ओपन सोर्स टेक फ्यूचर दुनिया को अपनी ओर खींच पाएंगे?

यहीं पर पुरानी शैली की मानव केंद्रित राजनीति काम आती है। विश्वसनीय चुनाव वाले लोकतंत्र वह स्थिरता सुनिश्चित करते हैं, जिसे ग्लोबल साउथ को तलाश है। भारत ने शांतिपूर्ण चुनाव और ज्यादा मतदान के साथ अपना राजनीतिक स्थिरता दिखाई है।

हम यहां बैठकर लोकतंत्र की ताकत को शायद ही समझते हैं, लेकिन दुनिया इसे देख रही है। अमेरिका को 2024 में फिर चुनाव की आग में तपना होगा और दुनिया उसकी चिंता कर रही है।

ग्लोबल साउथ की नाराजगी

दुनिया का एक बड़ा हिस्सा, जिसे ग्लोबल साउथ कहते हैं, अमेरिका और पश्चिमी देशों से नाराज है और इसके पीछे ठोस वजहें हैं। अमेरिका अपने पुराने रौब को हासिल करने की कोशिश कर रहा है, मगर उसके लिए टिकटॉक से ज्यादा फायदेमंद साथी भारत है।

सबसे अहम बात ये है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भारत सबसे ज्यादा जोश दिखा रहा है, इतना जोश कि न गरीब ग्लोबल साउथ समझ पाता है और न उपदेश देने वाला ऊब चुका ग्लोबल नॉर्थ।

जलते विश्व के सामने भारत-अमेरिकी समझौता ग्रहों की रक्षा के एक नए और गहरे अर्थ का रूप ले लेता है।

स्वर्ग में बनी जोड़ी

इस रिश्ते को पन्नू जैसे झगड़े हटाकर देखें तो समझ आता है कि ये ‘स्वर्ग में बनी जोड़ी’ जैसा मिलन है- अमेरिका और भारत दो अप्सराएं हैं जो आपस में रिश्ता जोड़ रहे हैं। दोनों देश बड़े लोकतंत्र हैं, जिद्दी और राय रखने वाले।

अमेरिका को भारत की सुरक्षा चिंताओं से निपटने का बेहतर तरीका इजाद करना होगा- हमें मत बताओ कि खालिस्तान कोई ‘छोटा’ मुद्दा है। कदम बढ़ाता भारत वही काम करेगा, जो अमेरिका ने अपने शुरुआती दौर में किए थे।

भारत के लिए जगह बनाओ, जैसा भारत ने अमेरिका के लिए बनाई है।