गोवंश की चिंता किसी को नहीं। सो रही है महापालिका और सरकारें

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नवी मुंबई। अपने लालच के कारण सिडको ने विकास के क्रम में जिस भांति धन के लालच में सारी जमीन भवन निर्माताओं को बेच दी और किसी भी नगर की प्लानिंग में किसी भी पशु अथवा गाय के लिए कोई भी न जगह दी और न ही इसकी व्यवस्था की। लगभग इसी तर्ज पर ठाणे नगर महापालिका गौशालाओं के विषय में पशुधन विकास के विषय में किसी विलेन की भांति काम कर रही है। ग्रामीण आदि रिसर्च एंड वेदिक इन्नोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित भारत की गोसेवा अभियान के अंतर्गत गौशालाओं के सर्वेक्षण हेतु निकले गर्वित के अध्यक्ष विपुल लखनवी को हर जगह निराशा हाथ लगी है। इसी संदर्भ में शील फाटा डोंबिवली रोड पर स्थित संत शामला राम गौशाला एवं गोवर्धन गौशाला का भ्रमण केवल थाने नगरपालिका की उदासीनता को बयां करता दिखता है। निजी रूप से यदि कोई गोवंश की सेवा करना चाहता है तो उसको सरकारी रुकावटें और अड़चनें अपना काम करने नहीं देती। एक विशाल शिव मंदिर के पीछे स्थित ज्ञानेश्वर मुंडे महाराज द्वारा अपने गुरु को दान में दी गई अथवा अन्य प्रकार से बीमार या अपंग गाय की सेवा हेतु अपने मकान में गौशाला का निर्माण कर सामने की भूमि पर गोवंश को पालना पड़ रहा है। बरसात के मौसम में जब पानी भर जाता है तो कई दिनों तक गोवंश को ऊंचाई पर खड़ा रहना पड़ता है। उस क्षेत्र के नगरसेवक बाबा पाटिल से कई बार अनुरोध करने के बाद भी इस गौशाला को कोई भी सहयोग प्राप्त नहीं हो पाया। क्या ठाणे नगर महापालिका उस सामने की अनुपयुक्त भूमि को लीज पर अथवा भाड़े पर नहीं दे सकती कि वहां पर गोवंश की सेवा हो सके।

सोती हुई सरकारों को कौन जगाने की कोशिश करेगा क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गोवर्धन संरक्षण अथवा गोपालन के लिए की जा रही सभी कोशिश व्यर्थ चली जाएगी। क्या बड़े-बड़े दावे करने वाली राज्य सरकारें जो अपने को सनातन का रक्षक कहने के नारे लगाती है इन गो वंश के संरक्षण पर ध्यान नहीं देंगी? कहने को तो नगर निर्माण का विकास करना है इसके नाम पर किसानों की भूमि छीन कर भवन निर्माताओं को दे तो दी जाती है लेकिन वहां पर कहीं पर पशुपालन अथवा गोवंश की रक्षा के लिए कोई योजना नहीं चलाई जाती। बड़े-बड़े बिल्डर किसी भी तरीके से इन सरकारी संस्थाओं को मैनेज कर लेते हैं और स्थानीय नेताओं को मिलाकर किसानों की जमीन को ओने पौने दाम पर हड़पने का प्रयास करते हैं जो किसान अपनी जमीन नहीं देता है उसको धमकी तक दी जाती है इस तरह की खबरें भी प्राप्त हुई है। यह समय की मांग है की वर्तमान की सरकार और केंद्र सरकार गोपालन की दिशा में सकारात्मक कदम उठाएं इस दिशा में इसी समिति का गठन करें और पशुपालन गोवंश की रक्षा का प्रयास किया जाए।

यह भी सही है कई सरकारों ने इन पशुओं को खाने के लिए भोजन के रूप में बनाने के लिए बहुत कुछ योजनाएं चलाई लेकिन अब सरकारों को पशुपालन गोवंश को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए। धन्य हो कुछ गोसेवक जिनके कारण आवारा और लावारिस कमजोर बेबस गौ माताओं को सहारा दिया जा रहा है। ग्रामीण आदि रिसर्च एवं वैदिक इन्नोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित भारत के संयोजक अध्यक्ष विपुल लखनवी गौ सेवा के अंतर्गत आसपास के क्षेत्रों में गैर व्यवसायिक गौशालाओं को ढूंढ कर जनता के सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे एक तरफ तो गौ प्रेमियों को गौ सेवा के लिए भटकना न पड़े और साथ ही गौ सेवकों को आर्थिक सहायता प्राप्त हो सके। अब यह समय की मांग है की आम जनता को भी स्वयं अपने स्वास्थ्य के लिए गौ माता के पंचगव्य सेवन से होने वाली लाभ के लिए आगे आना होगा नहीं तो नकली केमिकल युक्त दूध हम पीते रहेंगे और विभिन्न प्रकार के रोगों से मरते रहेंगे।